दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने एक महिला के खिलाफ झूठी गवाही की कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया है, जिसने वर्ष 2019 में एक पुरुष पर बलात्कार का झूठा आरोप लगाया था। इस मामले की सुनवाई अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (ASJ) अनुज अग्रवाल की अदालत में हुई, जिन्होंने शिकायतकर्ता महिला को आपराधिक न्याय प्रणाली के दुरुपयोग और आरोपी की प्रतिष्ठा धूमिल करने पर फटकार लगाई।
4 अप्रैल को पारित आदेश में अदालत ने महिला की “झूठे छेड़छाड़ के मामलों की आदत” पर सख्त आपत्ति जताई। उज्जैन निवासी शिकायतकर्ता ने दावा किया था कि दिल्ली के एक होटल में उसके साथ बलात्कार हुआ था, लेकिन ट्रायल के दौरान उसने जबरन यौन संबंध की कोई बात नहीं कही। इससे अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि दोनों के बीच संबंध सहमति से बने थे।
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि महिला ने देश के विभिन्न राज्यों में ऐसे कम से कम छह और मामले दर्ज कराए हैं। इनमें से एक मामले में आरोपी को बरी कर दिया गया था, और खुद महिला के खिलाफ अमृतसर और राजस्थान में जबरन वसूली के मामलों में गिरफ्तारी भी हो चुकी है।

न्यायाधीश ने कहा, “शिकायतकर्ता ने न केवल कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया है, बल्कि आरोपी को अत्यधिक मानसिक आघात भी पहुंचाया है। किसी की प्रतिष्ठा बनाने में उम्र लग जाती है, लेकिन कुछ झूठ ही उसे बर्बाद करने के लिए काफी होते हैं… केवल बरी हो जाना उस पीड़ा की भरपाई नहीं कर सकता जो झूठे यौन उत्पीड़न के आरोपों के चलते आरोपी को सहनी पड़ती है।”
अदालत का यह फैसला झूठे बलात्कार के आरोपों के मामलों में एक सख्त और दुर्लभ कदम माना जा रहा है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह निर्णय ऐसे मामलों में गहन जांच और न्यायिक सतर्कता की दिशा में एक संकेत हो सकता है, विशेष रूप से तब जब किसी के खिलाफ कानून के दुरुपयोग का पैटर्न सामने आए।
मामले का शीर्षक: राज्य बनाम संदीप कुमार @ संदीप ढैया (SC/95/2020)