दिल्ली कोर्ट में ‘ब्लैक मैजिक’ संदेह के बीच सर्जन दोषी करार, चावल फेंककर कार्यवाही में बाधा डालने पर सजा

दिल्ली की एक अदालत ने एक सर्जन को भारतीय दंड संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita), 2023 की धारा 267 के तहत दोषी ठहराया, जिसने अदालत की कार्यवाही के दौरान जानबूझकर चावल फेंककर सुनवाई में बाधा डाली। इस असामान्य घटना से अदालत की कार्यवाही करीब 20 मिनट तक ठप रही। वकीलों ने इसे ‘ब्लैक मैजिक’ की कोशिश बताते हुए आपत्ति जताई। आरोपी ने दोष स्वीकार किया और उसे “अदालत उठने तक” की सजा और ₹2,000 का जुर्माना लगाया गया।

घटना की पृष्ठभूमि

यह मामला 11 अगस्त 2025 को State Vs. चंदर विभाष में सुनवाई के दौरान हुआ। आरोपी डॉ. चंदर विभाष अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शेफाली बरनाला टंडन की अदालत में पेश थे। अदालत के ऑर्डरली विक्की सिंह और नायब कोर्ट (प्रॉसिक्यूशन) हेड कांस्टेबल नवीन ने जज को बताया कि आरोपी ने जज के डाइस के नीचे चावल फेंके। अदालत में मौजूद कई वकीलों ने भी इसकी पुष्टि की।

जब जज ने कारण पूछा तो आरोपी ने कहा कि उनके हाथ में कुछ चावल थे जो “बस गिर गए”। हालांकि, आदेश में दर्ज है कि वह यह नहीं बता पाए कि अदालत में प्रवेश करते समय और सुनवाई के दौरान उनके हाथ में चावल क्यों थे। अदालत के रीडर और सीनियर पी.ए. ने बताया कि इससे पहले 2 अगस्त 2025 को भी अदालत के फर्श पर चावल पाए गए थे, जब अदालत अवकाश पर थी, और उस दिन भी आरोपी की भौतिक उपस्थिति दर्ज थी।

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वकीलों ने जज से कहा कि “वे डाइस के पास जाने में हिचकिचा रहे हैं” और तुरंत सफाई करवाई जाए। अदालत की कार्यवाही रोककर झाड़ूदार को बुलाया गया। पहले आरोपी को खुद चावल इकट्ठा करने को कहा गया, लेकिन बाद में उन्होंने घुटनों के बल बैठकर माफी मांगी।

अदालत की टिप्पणियां और निर्णय

ए.एस.जे. टंडन ने माना कि आरोपी की हरकत से कार्यवाही 15-20 मिनट बाधित हुई और तुरंत धारा 267, BNS के तहत अपराध का संज्ञान लिया, जिसमें किसी भी न्यायिक कार्यवाही के दौरान लोक सेवक का अपमान या बाधा डालने पर छह माह की कैद, जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।

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जज ने कहा, “कोर्टरूम वह स्थान है जहां न्याय की तलाश और डिलीवरी होती है, और इसकी गरिमा बनाए रखना Rule of Law के लिए अनिवार्य है।” आदेश में दर्ज किया गया कि “अदालत की अवमानना या न्यायिक कार्यवाही में बाधा न केवल कोर्ट की प्रक्रिया को कमजोर करती है, बल्कि हमारे विधि तंत्र की नींव को भी हिला देती है।”

अदालत ने महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन कानून, 2013 का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे कृत्य जनता की अज्ञानता का लाभ उठाते हैं और कानून इन्हें समाप्त करने के उद्देश्य से बनाया गया है।

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जज ने हैरानी जताते हुए कहा, “यह बहुत चौंकाने वाला है कि एक सर्जन, जो शिक्षित और प्रतिष्ठित वर्ग से है, इस तरह का अनुचित व्यवहार करे।” आरोपी के वकीलों ने बताया कि उन्हें “किसी ने गुमराह किया” और वह पश्चाताप कर रहे हैं।

आरोपी के दोष स्वीकारने और माफी मांगने पर अदालत ने उन्हें “अदालत उठने तक” की कैद और ₹2,000 का जुर्माना लगाया, जो तुरंत जमा किया गया। जिस मूल मामले में वह पेश थे, उसकी सुनवाई अब 18 अगस्त 2025 को होगी।

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