दिल्ली की एक अदालत के कर्मचारी के खिलाफ करोड़ों रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम (Prevention of Corruption Act) के तहत मामला दर्ज किया गया है। आरोप है कि यह रिश्वत एक सेशंस जज की ओर से मांगी गई थी, जो हाल ही तक राउज़ एवेन्यू स्थित एक विशेष सीबीआई कोर्ट में पदस्थ थे। मामले की जांच के दौरान उक्त जज का तबादला कर दिया गया है, हालांकि फिलहाल उनके खिलाफ सीधे तौर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
पुलिस एफआईआर में अहलमद (रिकॉर्ड कीपर) के रूप में कार्यरत मुकेश और एक चार्टर्ड अकाउंटेंट विशाल को नामजद किया गया है। आरोप है कि विशाल ने जमानत के लिए 40 लाख रुपये की रिश्वत दी थी।
दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (ACB) को इस मामले की पहली शिकायत जनवरी में अधिवक्ता प्रसून वशिष्ठ से मिली, जो जीएसटी चोरी के एक मामले में गिरफ्तार की गई बबिता शर्मा के बहनोई हैं। शिकायत के अनुसार, अक्टूबर 2023 में कुछ कोर्ट अधिकारियों ने वशिष्ठ से संपर्क कर बबिता शर्मा समेत अन्य आरोपियों को जमानत दिलाने के लिए भारी रकम की मांग की।
वशिष्ठ ने शिकायत में कहा, “मुझे कोर्ट रूम नंबर 608 के पास एक कमरे में बुलाया गया, जहां उन्होंने बबिता शर्मा के लिए 85 लाख और अन्य तीन आरोपियों—राज सिंह सैनी, मुकेश सैनी और नरेंद्र सैनी—के लिए एक-एक करोड़ रुपये की मांग की।”
जब परिवार ने रिश्वत देने से इनकार किया, तो बबिता शर्मा की जमानत अर्जी को कथित तौर पर बेवजह लंबा खींचा गया और अंततः खारिज कर दिया गया। वशिष्ठ ने आगे आरोप लगाया कि राज सिंह सैनी ने बाद में परिवार से संपर्क कर कहा कि उसने पैसे देकर जमानत ली है और उन्हें भी यही करने की सलाह दी।
सूत्रों के अनुसार, “शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि जज ने धमकी दी थी कि अगर पैसे नहीं दिए गए तो बबिता शर्मा को हर पेशी में घंटों खड़ा रखा जाएगा और उन्हें ‘अपरिवर्तनीय नुकसान’ झेलना पड़ेगा।”
ऑडियो रिकॉर्डिंग के बाद जांच में तेजी
इस मामले में एक अन्य आरोपी, विकेश कुमार बंसल ने भी एक शिकायत दर्ज कराई और एक ऑडियो रिकॉर्डिंग सौंपी, जिसमें कथित रूप से मुकेश को जमानत के बदले 15–20 लाख रुपये की मांग करते सुना जा सकता है। बंसल पहले से हाई कोर्ट द्वारा दी गई अंतरिम जमानत पर था।
बंसल के अनुसार, सह-आरोपी विशाल ने भी उसे बताया कि उसने 40 लाख रुपये देकर जमानत पाई थी। विशाल ने आगे बताया कि सैनी बंधुओं ने एक-एक करोड़, ट्रांसपोर्टरों ने 15-15 लाख और दो अन्य व्यक्तियों ने, जिनमें एक मनोज भी शामिल है, 10-10 लाख रुपये दिए थे।
तीन ऑडियो ट्रांसक्रिप्ट 24 जनवरी को एक पंच गवाह की उपस्थिति में तैयार किए गए और 29 जनवरी को विधि, न्याय और विधायी मामलों के विभाग को सौंपे गए।
हाई कोर्ट से अभियोजन स्वीकृति नामंजूर, लेकिन जांच जारी
इस सबूत के आधार पर ACB ने संबंधित जज के खिलाफ अभियोजन की स्वीकृति मांगी, लेकिन 13 फरवरी को दिल्ली हाई कोर्ट ने सबूतों की कमी के चलते इसे नामंजूर कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने जांच एजेंसी को जांच जारी रखने और पर्याप्त सबूत मिलने पर नई अर्जी दायर करने की अनुमति दी।
20 मई को संबंधित जज का राउज़ एवेन्यू कोर्ट से तबादला कर दिया गया।
ACB ने पाया कि मुकेश पूछताछ से बचने और गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे। इसके बाद उनके खिलाफ केस दर्ज कर चार्टर्ड अकाउंटेंट विशाल को गिरफ्तार कर लिया गया।
मुकेश ने 22 मई को अग्रिम जमानत की अर्जी दी, जिसे दिल्ली की अदालत ने खारिज कर दिया।