मृतका को रोते हुए देखना मात्र दहेज उत्पीड़न सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला के पति और ससुराल पक्ष को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए और 34 के आरोपों से बरी करने के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि केवल यह तथ्य कि मृतका को उसके भाई-बहनों ने रोते हुए देखा था, अपने आप में दहेज उत्पीड़न का मामला सिद्ध नहीं करता। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने कहा कि लगाए गए आरोप अस्पष्ट हैं, जिनमें कोई ठोस घटना या विशिष्ट विवरण नहीं है, और इस प्रकार यह अपराध नहीं बनता।

मामले की पृष्ठभूमि

मामला इस आरोप से संबंधित है कि मृतका का विवाह दिसंबर 2010 में होने के बाद से उस पर दहेज की मांग और उत्पीड़न किया जाता था। परिजनों का कहना था कि विवाह में लगभग ₹4 लाख खर्च किए गए और बाद में सोने का कंगन, मोटरसाइकिल तथा नकद की मांग की गई। महिला, जिसकी दो बेटियां थीं, 31 मार्च 2014 को निधन हो गया।

अप्रैल 2014 में संबंधित थाना में धारा 304बी/498ए/34 IPC के तहत एफआईआर दर्ज की गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण निमोनिया (प्राकृतिक कारण) बताया जाने के बाद अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने धारा 304बी के तहत आरोपों से आरोपियों को बरी कर दिया और मामला धारा 498ए/34 IPC के तहत विचारण के लिए मजिस्ट्रेट को भेजा। जून 2016 में मजिस्ट्रेट ने सबूतों की कमी के आधार पर आरोपियों को इन धाराओं से भी बरी कर दिया। यह आदेश अप्रैल 2017 में पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा भी बरकरार रखा गया।

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याचिकाकर्ता के तर्क

याचिकाकर्ता का कहना था कि—

  • आरोप तय करते समय केवल अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों पर विचार होना चाहिए, बचाव पक्ष के तर्कों पर नहीं।
  • धारा 161 और 164 दं.प्र.सं. के तहत दर्ज परिजनों के बयान दहेज उत्पीड़न और मांग के आरोपों को दर्शाते हैं।
  • मेडिकल तथ्यों जैसे मुंह और नाक से झाग निकलना और पेट में अर्ध-ठोस पदार्थ पाए जाने को नजरअंदाज किया गया।
  • भले ही मौत निमोनिया से हुई हो, आरोपियों ने उचित इलाज उपलब्ध नहीं कराया।
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प्रतिवादियों का पक्ष

प्रतिवादियों ने सभी आरोपों से इनकार किया और कहा कि याचिका समय सीमा से बाहर है तथा दुर्भावनापूर्ण उद्देश्य से दायर की गई है।

अदालत का विश्लेषण और निर्णय

न्यायालय ने कहा कि धारा 498ए IPC तभी लागू होती है जब या तो महिला के साथ ऐसा उत्पीड़न हो जो उसे आत्महत्या के लिए प्रेरित करने या गंभीर चोट पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया हो, या फिर दहेज की अवैध मांग को पूरा करने के लिए उसे परेशान किया गया हो।

मौत का कारण निमोनिया होने से धारा 498ए के स्पष्टीकरण का क्लॉज (a) लागू नहीं होता। क्लॉज (b) के तहत, अदालत ने पाया कि आरोप सामान्य प्रकृति के थे, जिनमें तिथियां, ठोस सबूत या विशेष घटनाएं नहीं थीं। प्रारंभिक और बाद के बयानों में विरोधाभास पाए गए।

अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि मृतका के भाई और बहन के बयान, जिनमें उन्होंने कहा कि होली के मौके पर उन्होंने उसे रोते हुए देखा, अपने आप में दहेज उत्पीड़न का मामला साबित नहीं करते।

“केवल यह तथ्य कि मृतका रो रही थी, अपने आप में दहेज उत्पीड़न का मामला नहीं बनाता।”

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न्यायालय ने जयहदीपसिंह प्रवीनसिंह चावड़ा बनाम गुजरात राज्य (2025) 2 एससीसी 116, दारा लक्ष्मी नारायण बनाम तेलंगाना राज्य (2024) और दिगंबर मामलों का हवाला देते हुए कहा कि अस्पष्ट और बिना ठोस घटनाओं वाले आरोप धारा 498ए के तहत अपराध नहीं बनाते।

अदालत ने कहा:

“वर्तमान याचिका में कोई दम नहीं है, जिसे खारिज किया जाता है।”

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