सीपीसी आदेश XII नियम 6 कोर्ट को स्वीकार किए गए दावों पर स्वप्रेरणा से निर्णय पारित करने या मुकदमा खारिज करने का अधिकार देता है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मेजर जनरल बुध सिंह की संपत्तियों के बंटवारे को लेकर दायर सरोज सल्कन की अपील को खारिज करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की ऑर्डर XII रूल 6 के तहत अदालत, किसी भी पक्ष की याचिका के बिना भी, यदि दावा स्पष्ट रूप से स्वीकार किया गया हो या वाद स्पष्ट रूप से निराधार हो, तो मुकदमा खारिज कर सकती है। कोर्ट ने यह भी कहा कि हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) के अस्तित्व को लेकर पर्याप्त दलीलें नहीं दी गई थीं, और पूर्व में पारित डिक्लेरेटरी डिक्रीज़ से संपत्तियों का स्वामित्व पहले ही तय हो चुका था।

पृष्ठभूमि:
अपीलकर्ता सरोज सल्कन ने वर्ष 2007 में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 6 के तहत एक वाद दायर किया था, जिसमें उन्होंने यह दावा किया कि उनके दिवंगत पिता मेजर जनरल बुध सिंह द्वारा निर्मित पांच संपत्तियाँ एक HUF की संपत्ति हैं और उनका बंटवारा होना चाहिए। इन संपत्तियों में सोनीपत के बरोटा और भटगांव की ज़मीन, कालूपुर की ज़मीन, एक डेयरी प्लॉट और नई दिल्ली के आनंद निकेतन स्थित मकान शामिल था।

दिल्ली हाईकोर्ट के एकल पीठ ने इस वाद को ऑर्डर XII रूल 6 CPC के तहत मुद्दे तय किए बिना ही खारिज कर दिया था। बाद में डिवीजन बेंच ने 15 नवंबर 2022 को इस निर्णय की पुष्टि की।

अपीलकर्ता की दलीलें:
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री दुश्यंत दवे ने तर्क दिया कि ऑर्डर XII रूल 6 के तहत वाद खारिज करना केवल प्रतिवादी की याचिका पर ही संभव है, कोर्ट स्वयं ऐसा नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि वादी की याचिका में HUF के अस्तित्व का स्पष्ट वर्णन है और पूर्व में हुए वादों में इस संरचना को स्वीकार किया गया था। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पहले के वादों में पारित डिक्रीज़ मिलीभगत के तहत भूमि सीमा अधिनियम को चकमा देने के उद्देश्य से ली गई थीं।

उत्तरदाता संख्या 6 (अपीलकर्ता की बहन) की ओर से पेश हुए अधिवक्ता श्री निधेश गुप्ता ने तर्क दिया कि बरोटा और आनंद निकेतन की संपत्तियाँ पुश्तैनी हैं, और बिना मुकदमे के ये HUF से अलग नहीं की जा सकती थीं।

प्रतिवादियों की दलीलें:
वरिष्ठ अधिवक्ता श्री पी.एस. पतवालिया ने प्रतिवादी संख्या 2 की ओर से प्रस्तुत होकर कहा कि कालूपुर और डेयरी प्लॉट को लेकर कोई स्पष्ट विवरण याचिका में नहीं दिया गया है और अपीलकर्ता ने स्वयं कई संपत्तियों पर दावा छोड़ दिया है। उन्होंने 1972 से 1984 तक की चार डिक्लेरेटरी डिक्रीज़ का हवाला दिया, जिनसे यह स्पष्ट होता है कि उक्त संपत्तियाँ किसी HUF का हिस्सा नहीं थीं और उनका स्वामित्व अन्य व्यक्तियों (जैसे अनुप सिंह एवं उनके पुत्रों) के पक्ष में तय हो चुका था।

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यह भी कहा गया कि बरोटा की ज़मीन मेजर जनरल बुध सिंह को वीरता पुरस्कार के तहत दी गई थी, अतः वह उनकी स्वअर्जित संपत्ति थी। आनंद निकेतन का मकान 1970 में एक रजिस्टर्ड लीज़ डीड के माध्यम से अनुप सिंह को हस्तांतरित कर दिया गया था और उस पर स्वामित्व को चुनौती देने की मियाद भी बीत चुकी थी।

सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने कहा:

“ऑर्डर 12, रूल 6 कोर्ट को बहुत विस्तृत विवेकाधिकार प्रदान करता है… इस नियम के तहत, कोर्ट मुकदमे के किसी भी चरण में, किसी भी पक्ष की याचिका पर या स्वयं संज्ञान लेते हुए… तथ्य की स्वीकृति के आधार पर उपयुक्त निर्णय पारित कर सकती है…”

कोर्ट ने कहा कि पूर्व की डिक्रीज़ से यह स्पष्ट हो चुका है कि बरोटा और आनंद निकेतन की संपत्तियाँ स्वअर्जित थीं और उनका या तो पहले ही विभाजन हो चुका था या वे हस्तांतरित हो चुकी थीं। अपीलकर्ता एवं उनकी बहन या तो उन वादों में पक्षकार थीं या उनकी जानकारी में थीं, अतः वे अब उन्हीं मुद्दों को दोबारा अदालत में नहीं उठा सकतीं।

हिन्दू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 6 के संदर्भ में कोर्ट ने कहा:

“वाद संख्या II, III और IV में पारित डिक्रीज़ इस तथ्य को स्वीकार करने के समान हैं कि 20 दिसंबर 2004 से पूर्व ही पक्षकारों के बीच विभाजन हो चुका था। फलतः, संशोधित धारा 6 की उपधारा (1) में सम्मिलित प्रावधान लागू होता है…”

इसलिए, संशोधित धारा 6 के तहत प्राप्त अधिकारों का दावा उन मामलों में नहीं किया जा सकता जिनमें 2004 से पहले ही विभाजन हो चुका हो।

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निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को खारिज करते हुए यह दोहराया कि ऑर्डर XII रूल 6 CPC के तहत, कोर्ट स्वयं संज्ञान लेकर भी किसी मुकदमे को वादी के कथनों एवं तथ्यों की स्वीकृति के आधार पर खारिज कर सकती है। पूर्व डिक्रीज़, HUF के अस्तित्व को लेकर अस्पष्ट विवरण, और लिमिटेशन एक्ट के तहत दावे की समयावधि समाप्त होने के आधार पर कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि वाद में कोई दम नहीं है।

“वाद अधकचरी बातों पर आधारित है… इसकी शुरुआत वादी द्वारा न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग है… एकल पीठ ने ऑर्डर XII रूल 6 के अंतर्गत अपने अधिकारों का सही ढंग से प्रयोग करते हुए इसे आरंभ में ही समाप्त कर दिया।”

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