सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि कोई व्यक्ति “उचित पक्षकार” (proper party) है, तो अदालत वादी (plaintiff) की सहमति के बिना भी उसे वाद में शामिल कर सकती है। यह निर्णय M/s J N Real Estate बनाम शैलेन्द्र प्रधान एवं अन्य, सिविल अपील संख्याएं 5405-5406 / 2025 में सुनाया गया, जिसमें न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की खंडपीठ ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें एक संपत्ति खरीदार को वाद से हटाने का निर्देश दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
विवाद एक भूमि से संबंधित है जो मूल रूप से स्वर्गीय इंद्रमोहन प्रधान के स्वामित्व में थी। दो परस्पर विरोधी वसीयतें थीं—एक दिनांक 03.02.2001, जो कि समीर घोष (प्रतिवादी संख्या 3) के पक्ष में थी, और दूसरी दिनांक 07.07.2001, जो कि मृतक के पुत्रों (प्रतिवादी संख्या 1 और 2) के पक्ष में थी। समीर घोष को पहली वसीयत के आधार पर वर्ष 2005 में प्रोबेट प्रमाणपत्र मिल गया था।
समीर घोष ने वादग्रस्त संपत्ति को M/s J N Real Estate (अपीलकर्ता/प्रतिवादी संख्या 8) को 2009 में एक विक्रय विलेख के माध्यम से बेचा, जिसे वर्ष 2014 में पंजीकृत किया गया। दूसरी ओर, मृतक के पुत्रों ने संपत्ति को अन्य व्यक्तियों को बेचने का प्रयास किया, जिनमें वादी और प्रतिवादी संख्या 4 (शैलेन्द्र प्रधान) शामिल थे। इससे तीन अलग-अलग दीवानी वाद उत्पन्न हुए।
इनमें से एक वाद—नियमित दीवानी वाद संख्या 360-A/2007—वादी द्वारा विशिष्ट निष्पादन (specific performance) की मांग के लिए दायर किया गया था, जिसमें प्रोबेट और वसीयत को अमान्य घोषित करने की प्रार्थना की गई थी। उसी वाद में अपीलकर्ता ने आदेश 1 नियम 10 सीपीसी के तहत पक्षकार बनाए जाने का आवेदन दिया।
निचली अदालत और हाईकोर्ट की कार्यवाही
ट्रायल कोर्ट ने इस आधार पर आवेदन स्वीकार कर लिया कि अपीलकर्ता ने पंजीकृत विक्रय विलेख के माध्यम से संपत्ति खरीदी थी और उसका वादग्रस्त भूमि में वास्तविक हित है।
हालांकि, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अनुच्छेद 227 के तहत अपनी पर्यवेक्षणीय शक्ति का प्रयोग करते हुए ट्रायल कोर्ट के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि खरीदार के पास विक्रय से संबंधित पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं और दस्तावेज संदिग्ध प्रतीत होते हैं। इसके साथ ही, हाईकोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता न तो आवश्यक पक्षकार (necessary party) है और न ही उचित पक्षकार (proper party)।
अपीलकर्ता द्वारा दायर पुनर्विचार याचिकाएं भी हाईकोर्ट ने खारिज कर दीं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के दृष्टिकोण से असहमति जताई और ट्रायल कोर्ट के आदेश को बहाल किया। न्यायालय ने आदेश 1 नियम 10 सीपीसी की व्याख्या करते हुए कहा:
“कोई पक्षकार यदि आवश्यक न भी हो, तो भी वह उचित पक्षकार हो सकता है। आवश्यक पक्षकार वह होता है जिसके बिना कोई प्रभावी डिक्री पारित नहीं की जा सकती, जबकि उचित पक्षकार वह होता है जिसकी उपस्थिति से न्यायालय प्रभावी रूप से सभी मुद्दों पर निर्णय कर सकता है।”
कोर्ट ने Mumbai International Airport Pvt. Ltd. बनाम Regency Convention Centre and Hotels Pvt. Ltd., (2010) 7 SCC 417 का हवाला देते हुए कहा कि विशिष्ट निष्पादन वादों में भी न्यायालय को यह विवेकाधिकार प्राप्त है कि वह उचित पक्षकार को वाद में शामिल कर सके, भले ही वादी इसके विरुद्ध हो।
कोर्ट ने विशेष रूप से कहा:
“यदि कोई व्यक्ति आवश्यक या उचित पक्षकार है, तो न्यायालय उसे वादी की इच्छा के विरुद्ध भी वाद में शामिल करने का अधिकार रखता है।”
साथ ही, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि दस्तावेजों की वैधता और लेन-देन की प्रामाणिकता ट्रायल का विषय है और इन आधारों पर प्रारंभिक चरण में पक्षकार बनाए जाने से इनकार नहीं किया जा सकता।
निष्कर्ष
अपीलों को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दिनांक 12.06.2023 और 12.12.2023 को पारित हाईकोर्ट के आदेशों को रद्द कर दिया और ट्रायल कोर्ट द्वारा अपीलकर्ता को पक्षकार बनाए जाने के आदेश को बहाल कर दिया।
कोर्ट ने अंत में कहा:
“वाद में विवादों के प्रभावी और उचित निर्णय के लिए अपीलकर्ता की उपस्थिति आवश्यक है… हम इस स्तर पर लेन-देन की वैधता पर कोई टिप्पणी नहीं करते। सभी पक्षों को ट्रायल कोर्ट के समक्ष अपने-अपने तर्क प्रस्तुत करने की स्वतंत्रता दी जाती है।”