इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह दोहराया है कि यदि कोई जोड़ा अपनी मर्जी से परिवार की इच्छा के विरुद्ध विवाह करता है, तो वह केवल इस आधार पर पुलिस सुरक्षा की मांग नहीं कर सकता जब तक कि उनके जीवन या स्वतंत्रता को वास्तविक खतरा न हो। यह निर्णय न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव ने रिट – सिविल संख्या 2966 सन् 2025: श्रीमती श्रेया केसवनि व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य में 4 अप्रैल 2025 को सुनाया।
पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता एक विवाहित जोड़ा था, जिसने अदालत से यह निर्देश दिए जाने की प्रार्थना की थी कि राज्य सरकार और उनके परिजनों सहित अन्य प्रतिवादीगण उनके वैवाहिक जीवन में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न करें। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता बसदेव निषाद और रामापति निषाद उपस्थित हुए।
न्यायालय की टिप्पणियां:
दोनों पक्षों को सुनने और दस्तावेजों का परीक्षण करने के बाद, न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ताओं के जीवन या स्वतंत्रता को कोई गंभीर खतरा नहीं है। न्यायालय ने स्पष्ट किया:
“इस प्रकार के मामलों में पुलिस सुरक्षा देने के लिए किसी आदेश की आवश्यकता नहीं है, जैसा कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (AIR 2006 SC 2522) के मामले में कहा गया है कि न्यायालय ऐसे युवाओं को संरक्षण देने के लिए नहीं हैं जिन्होंने सिर्फ अपनी इच्छा से विवाह किया है।”
न्यायालय ने यह भी पाया कि निजी प्रतिवादियों द्वारा किसी प्रकार की मानसिक या शारीरिक हानि की कोई सामग्री प्रस्तुत नहीं की गई। न्यायमूर्ति श्रीवास्तव ने आगे कहा:
“जहां मामला उपयुक्त हो, वहां न्यायालय सुरक्षा दे सकता है, लेकिन जिस प्रकार की सहायता याचिकाकर्ता मांग रहे हैं, वह उन्हें नहीं दी जा सकती। उन्हें एक-दूसरे का साथ देना और समाज का सामना करना सीखना होगा।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अदालत और पुलिस तब मदद कर सकते हैं जब किसी प्रकार का हमला या दुर्व्यवहार हो, लेकिन सामान्य रूप से सुरक्षा की मांग को अधिकार के रूप में नहीं माना जा सकता:
“वे सुरक्षा की मांग एक साधारण नियम या अधिकार के रूप में नहीं कर सकते।”
अन्य पहलू:
न्यायालय को यह भी सूचित किया गया कि याचिकाकर्ताओं ने पुलिस अधीक्षक चित्रकूट को एक आवेदन प्रस्तुत किया है। इस पर न्यायालय ने निर्देश दिया कि यदि पुलिस को कोई वास्तविक खतरा प्रतीत हो, तो वह कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करे।
इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह भी नोट किया कि न तो भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 175(3) के अंतर्गत कोई आवेदन दिया गया है और न ही निजी प्रतिवादियों के विरुद्ध कोई प्राथमिकी दर्ज कराई गई है।
इन तथ्यों के मद्देनज़र, न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए इसे निस्तारित कर दिया।
संदर्भ:
न्यूट्रल सिटेशन संख्या: 2025:AHC:47943
रिट – सिविल संख्या: 2966 सन् 2025
वाद पक्ष: श्रीमती श्रेया केसवनि व अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य