“कस्टमर को वैसे ही समझाइए जैसे आप अपने पति को समझाती हैं”—यह टिप्पणी मर्यादा भंग करने की मंशा से नहीं थी: बॉम्बे हाईकोर्ट ने IPC की धारा 509 के तहत मामला खारिज किया

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी के विरुद्ध IPC की धारा 509 के अंतर्गत चल रही आपराधिक कार्यवाही को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता महिला कर्मचारी की कार्यप्रणाली पर समीक्षा बैठक के दौरान की गई टिप्पणी—”कस्टमर को वैसे ही समझाइए जैसे आप अपने पति को समझाती हैं”—हालाँकि यह शब्द अपमानजनक हो सकते हैं, लेकिन यह साबित नहीं होता कि उनका उद्देश्य महिला की मर्यादा का अपमान करना था।

यह निर्णय न्यायमूर्ति अनिल एस. किलोर एवं न्यायमूर्ति प्रविण एस. पाटिल की खंडपीठ ने 23 अप्रैल 2025 को क्रिमिनल एप्लिकेशन (APL) नंबर 736/2023 में सुनाया।

प्रकरण की पृष्ठभूमि:
आवेदक सत्यस्वरूप हरिदास मेश्राम, जो उस समय स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में असिस्टेंट जनरल मैनेजर (AGM) के पद पर कार्यरत थे, ने धारा 482 CrPC के तहत यह याचिका दायर की थी, जिसमें एफआईआर संख्या 565/2022 दिनांक 14 नवंबर 2022 एवं चार्जशीट संख्या 152/2023 दिनांक 16 जून 2023 को रद्द करने का अनुरोध किया गया था।

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शिकायतकर्ता महिला बांदारा शाखा में वरिष्ठ लिपिक हैं। उनके अनुसार, 11 अगस्त 2021 को जब आवेदक शाखा में समीक्षा हेतु आए, तब उन्होंने कहा:

“कस्टमर को वैसे ही समझाइए जैसे आप अपने पति को समझाती हैं।”

महिला का आरोप है कि इस टिप्पणी से उनकी मर्यादा का अपमान हुआ। एफआईआर में 28 अगस्त 2022 और 16 सितंबर 2022 की घटनाओं का भी उल्लेख किया गया है, परंतु उनमें किसी अपमानजनक शब्द या संकेत का विवरण नहीं है।

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आवेदक की दलीलें:
आवेदक की ओर से अधिवक्ता ए.पी. मोडक ने प्रस्तुत किया कि:

  • धारा 509 IPC के तहत अपराध बनने के आवश्यक तत्व इस मामले में उपस्थित नहीं हैं।
  • यह टिप्पणी प्रशासनिक समीक्षा बैठक के दौरान प्रदर्शन सुधारने के उद्देश्य से की गई थी, न कि महिला की मर्यादा को ठेस पहुंचाने के लिए।
  • प्राइवेसी में हस्तक्षेप जैसा कोई तत्व भी नहीं है।
  • घटना के एक वर्ष बाद एफआईआर दर्ज कराई गई, जिससे मंशा पर संदेह होता है।
  • अधिकतम यह कहा जा सकता है कि शब्द अपमानजनक थे, पर आपराधिक नहीं

राज्य और शिकायतकर्ता की दलीलें:
सरकारी वकील सुश्री मयूरी देशमुख और शिकायतकर्ता की ओर से अधिवक्ता सुश्री आयुषी डांगरे ने याचिका का विरोध करते हुए कहा:

  • यह शब्द महिला के लिए अपमानजनक थे और सहकर्मियों के सामने बोले गए।
  • मर्यादा अपमानित करने की मंशा स्पष्ट रूप से झलकती है।
  • एक सामान्य व्यक्ति इस टिप्पणी को महिला की गरिमा पर हमला मानेगा।

उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय Varun Bhatia v. State & Anr., 2023 SCC OnLine Del 5288 तथा सुप्रीम कोर्ट के निर्णय State of Punjab v. Major Singh, 1966 Supp SCR 286 पर भरोसा जताया और कहा:

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“इस अपराध की परख महिला की प्रतिक्रिया से नहीं, बल्कि इस आधार पर की जानी चाहिए कि कोई सामान्य व्यक्ति उस कृत्य को मर्यादा भंग करने के इरादे से किया गया मानेगा या नहीं।”

अदालत की कानूनी समीक्षा:
पीठ ने धारा 509 IPC के आवश्यक तत्व स्पष्ट करते हुए कहा:

(1) महिला की मर्यादा का अपमान करने की मंशा होनी चाहिए;
(2) यह अपमान निम्न माध्यमों से हो:
(a) कोई शब्द बोलना, संकेत करना या वस्तु दिखाना; या
(b) महिला की निजता में हस्तक्षेप करना।

दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय को उद्धृत करते हुए न्यायालय ने दोहराया:

“इस धारा के केंद्र में ‘मंशा’ है—केवल वही शब्द, संकेत या कार्य धारा 509 के तहत अपराध माने जाएंगे, जो जानबूझकर महिला की मर्यादा का अपमान करने के उद्देश्य से किए जाएं।”

सुप्रीम कोर्ट के मेजर सिंह केस का हवाला देते हुए कहा गया:

“यह अपराध महिला की भावना पर आधारित नहीं है, बल्कि आरोपी की मंशा और ज्ञान पर आधारित है। यह देखा जाना चाहिए कि क्या कोई सामान्य व्यक्ति यह मानेगा कि आरोपी ने जानबूझकर या जानकर महिला की मर्यादा का अपमान करने वाला कार्य किया।”

न्यायालय के निष्कर्ष:
न्यायालय ने महत्वपूर्ण तथ्यों की ओर ध्यान दिलाया:

  • एफआईआर एक वर्ष से अधिक समय बाद दर्ज की गई थी।
  • टिप्पणी प्रशासनिक समीक्षा बैठक के दौरान की गई थी, ना कि व्यक्तिगत रूप से या गुप्त रूप में
  • कोई स्पष्ट मंशा नहीं दिखाई देती कि आरोपी ने जानबूझकर शिकायतकर्ता की मर्यादा का अपमान किया हो।
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न्यायालय ने कहा:

“यह टिप्पणी शिकायतकर्ता के कार्य में सुधार के उद्देश्य से कही गई थी। कोई ऐसा तत्व नहीं है जिससे यह साबित हो कि इसका उद्देश्य मर्यादा भंग करना था।”

28 अगस्त और 16 सितंबर 2022 की अन्य घटनाओं के बारे में कोर्ट ने कहा:

“ज्यादा से ज्यादा कहा जा सकता है कि उपयोग किए गए शब्द अपमानजनक थे, लेकिन उन्हें महिला की मर्यादा भंग करने वाला नहीं कहा जा सकता।”

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला:

“एफआईआर में किए गए आरोपों को उनकी संपूर्णता में स्वीकार भी कर लिया जाए, तो भी IPC की धारा 509 के तहत कोई अपराध सिद्ध नहीं होता।”

अंतिम आदेश:
न्यायालय ने आवेदक के विरुद्ध कार्यवाही को समाप्त करते हुए कहा:

“प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट, भंडारा की अदालत में लंबित नियमित आपराधिक मामला क्रमांक 182/2023… आवेदक सत्यस्वरूप हरिदास मेश्राम के विरुद्ध रद्द किया जाता है।”

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