पीड़िता की अप्रतिवादित एवं सुसंगत गवाही यदि अन्य साक्ष्यों से पुष्टि होती है तो उसके आधार पर सजा दी जा सकती है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट


छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यदि किसी पीड़िता की गवाही अप्रतिवादित, सुसंगत और अन्य साक्ष्यों जैसे चिकित्सा व दस्तावेज़ी प्रमाणों से पुष्ट हो, तो उसी के आधार पर दोषसिद्धि कायम रखी जा सकती है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा एवं न्यायमूर्ति रजनी दुबे की खंडपीठ ने यह निर्णय उन चार आपराधिक अपीलों पर सुनाया, जिनमें सामूहिक बलात्कार के पांच दोषियों ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी।

पृष्ठभूमि:

सीआरए क्रमांक 102, 122, 263 और 289/2024 के तहत विनीते कुमार, अब्बू बकर @ मोंटी, अशरफ अली @ छोटू, मोहित कुमार पैकरा @ जैन @ जयंत तथा मसूक रज़ा मंसूरी ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित दोषसिद्धि व सजा के आदेश को चुनौती दी थी। विशेष सत्र प्रकरण संख्या 67/2022 में उन्हें आईपीसी, पॉक्सो अधिनियम, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम तथा अनुसूचित जाति / जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया था।

प्रकरण की शुरुआत 1 अक्टूबर 2022 को हुई, जब पीड़िता (PW-2) ने थाना अजा, सूरजपुर में शिकायत दर्ज कराई कि आरोपियों ने उसे तीन बार अलग-अलग अवसरों पर अगवा कर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया और वीडियो बनाकर वायरल करने की धमकी दी। जांच के बाद अभियोग पत्र प्रस्तुत किया गया और ट्रायल कोर्ट ने दोष सिद्ध कर सजा दी।

अपीलकर्ताओं के तर्क:

अभियुक्तों के वकीलों ने तर्क दिया कि—

  • प्राथमिकी में देरी हुई और पीड़िता की गवाही विरोधाभासी है।
  • पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम सिद्ध नहीं हुई।
  • अनुसूचित जनजाति का जाति प्रमाण पत्र प्राथमिकी के बाद बना।
  • डीएनए रिपोर्ट से अभियुक्तों की संलिप्तता सिद्ध नहीं होती।
  • मोबाइल से कोई आपत्तिजनक वीडियो बरामद नहीं हुआ।

राज्य पक्ष की दलील:

शासकीय अधिवक्ता श्री शशांक ठाकुर ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि—

  • पीड़िता की गवाही सुसंगत है और मेडिकल रिपोर्ट से पुष्टि होती है।
  • पीड़िता गर्भवती हुई और उसने शिशु को जन्म दिया, जो घटनाओं की गंभीरता को दर्शाता है।
  • डीएनए की असंगति के बावजूद पीड़िता ने स्पष्ट रूप से आरोपियों की पहचान की और घटनाएं विस्तार से बताईं।
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न्यायालय के अवलोकन:

  1. पीड़िता की आयु:
    विद्यालय पंजी व जन्म प्रमाण पत्र में त्रुटियाँ थीं, और उनकी प्रामाणिकता संदेहास्पद थी। Alamelu v. State [(2011) 2 SCC 385] के आधार पर न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह सिद्ध नहीं कर सका कि पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी। अतः पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत सजा निरस्त की गई।
  2. पीड़िता की गवाही का मूल्यांकन:
    न्यायालय ने कहा—


    “पीड़िता की सुसंगत व स्पष्ट गवाही, उसके गर्भधारण और मेडिकल रिपोर्ट से पुष्ट होती है, जो आरोपियों के दोष को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है।”



    “केवल इस आधार पर कि डीएनए अभियुक्तों से मेल नहीं खाता, पीड़िता की गवाही को खारिज नहीं किया जा सकता।”

  3. अनुसूचित जनजाति अधिनियम:
    जाति प्रमाण पत्र घटना के लगभग 10 महीने बाद बना। कोर्ट ने कहा कि Patan Jamal Vali और Raju @ Umakant [2025 INSC 615] के अनुसार यदि अपराध का कारण जाति नहीं था, तो धारा 3(2)(v) लागू नहीं होती। अतः इस आरोप से सभी आरोपी बरी किए गए।
  4. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम:
    रिपोर्ट से यह स्पष्ट हुआ कि जब्त मोबाइल से कोई अश्लील वीडियो बरामद नहीं हुआ। केवल पीड़िता की गवाही के आधार पर आईटी अधिनियम की धारा 67-B के तहत दोषसिद्धि न्यायोचित नहीं मानी गई।
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निर्णय:

  • दोषसिद्धि यथावत: IPC की धाराएं 363, 366, 506, 376 और 376D
  • दोषमुक्त:
    • मसूक रज़ा, अब्बू बकर, अशरफ अली, विनीते कुमार: पॉक्सो की धारा 6, आईटी एक्ट की धारा 67-B व एससी/एसटी एक्ट की धारा 3(2)(v) से बरी।
    • मोहित कुमार: पॉक्सो की धारा 6 व आईटी एक्ट की धारा 67-B से दोषमुक्त।

ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई IPC के अंतर्गत सजाएँ यथावत रहेंगी और शेष सजा का निर्वहन हिरासत में बिताए गए समय को समायोजित कर किया जाएगा।

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