पीड़िता के बयान में तिथि को लेकर विरोधाभास: सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा

सुप्रीम कोर्ट ने अपहरण और बलात्कार के एक मामले में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा दोषियों को बरी किए जाने के फैसले को बरकरार रखा है। पीठ ने पाया कि पीड़िता के बयानों में गंभीर विरोधाभास हैं और अभियोजन पक्ष के पास कोई पुष्टिकरण साक्ष्य नहीं है। यह निर्णय जस्टिस एहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र की पीठ ने राज्य बनाम संजय कुमार तथा राज्य बनाम चमन शुक्ला, क्रिमिनल अपील संख्या 595–596/2016 में सुनाया।

पृष्ठभूमि

यह मामला एफआईआर संख्या 47/2012, दिनांक 31 मार्च 2012 को थाना बरमाणा, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश में दर्ज की गई शिकायत पर आधारित है। शिकायत के अनुसार, लगभग 14 वर्ष की आयु की पीड़िता 30 मार्च 2012 को श्री नैना देवी मंदिर गई थी, जहाँ से संजय कुमार ने कथित रूप से उसे अपनी कार में अगवा किया और रात को उसे थैला चक्की में ज्वाला देवी के घर ले गया, जहाँ उसके साथ बलात्कार किया गया।

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अगले दिन पीड़िता को सह-आरोपी चमन शुक्ला के घर ले जाया गया, जहाँ उस पर पुलिस को झूठा बयान देने का दबाव बनाया गया। 1 अप्रैल 2012 को पीड़िता को रामपुर पुलिस स्टेशन में प्रस्तुत किया गया। मामले की जांच के बाद आरोपी संजय कुमार के विरुद्ध धारा 363, 366, 376 और 201 सहपठित धारा 34 आईपीसी के तहत और चमन शुक्ला के विरुद्ध धारा 201/34 आईपीसी के तहत आरोप पत्र दाखिल किया गया।

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सेशंस कोर्ट ने दोनों को दोषी करार देते हुए संजय कुमार को 7 वर्ष की कठोर कारावास और चमन शुक्ला को 1 वर्ष की सादी कैद की सजा सुनाई।

हाई कोर्ट की राय

हालांकि, हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने 28 दिसंबर 2015 को सेशंस कोर्ट के फैसले को पलट दिया। हाई कोर्ट ने पीड़िता के बयानों में कई “महत्वपूर्ण विरोधाभास” पाए, विशेष रूप से बलात्कार की तिथि और स्थान को लेकर।

  • धारा 164 सीआरपीसी के अंतर्गत दिए गए बयान में पीड़िता ने कहा था कि घटना 31 मार्च 2012 की रात को चमन शुक्ला के घर पर हुई,
  • जबकि अदालत में उसने कहा कि यह घटना 30 मार्च 2012 को ज्वाला देवी के घर पर हुई थी।
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इसके अतिरिक्त हाई कोर्ट ने यह भी नोट किया कि:

  • पीड़िता ने दोनों घरों में किसी से इस घटना की कोई जानकारी नहीं दी।
  • जांच की अहम गवाह ज्वाला देवी (PW-6) ने अभियोजन की कहानी का समर्थन नहीं किया।
  • कोई वैज्ञानिक साक्ष्य, जैसे डीएनए रिपोर्ट, नहीं पेश किया गया।
  • जो एफआईआर दर्ज की गई थी, उसमें बलात्कार का उल्लेख नहीं था, केवल अपहरण का आरोप था।

इन सभी तथ्यों के आधार पर हाई कोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में असफल रहा और संदेह का लाभ आरोपियों को दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां और निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट की इन निष्कर्षों से सहमति जताई। पीठ ने कहा:

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“पीड़िता के बयान में बलात्कार की तिथि को लेकर गंभीर विरोधाभास है, और चूंकि आरोपी संजय कुमार 31.03.2012 की रात पीड़िता के साथ नहीं था… इसलिए उसके द्वारा बलात्कार किया जाना सिद्ध नहीं होता।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट द्वारा जो दृष्टिकोण अपनाया गया, वह रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों पर आधारित है और उसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

अतः राज्य द्वारा दायर दोनों आपराधिक अपीलें खारिज कर दी गईं।

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