सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कमर्शियल कोर्ट्स एक्ट, 2015 की धारा 12A के तहत ‘तत्काल अंतरिम राहत’ (urgent interim relief) की व्याख्या स्पष्ट की है, विशेषकर बौद्धिक संपदा (IP) उल्लंघन के मामलों में।
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक आराधे की बेंच ने माना कि जहां IP अधिकारों का निरंतर उल्लंघन हो रहा हो, वहां मुकदमा दायर करने में हुई देरी, अनिवार्य मध्यस्थता से छूट पाने के लिए जरूरी ‘तत्काल आवश्यकता’ को अपने आप में समाप्त नहीं कर देती।
कोर्ट ने नोवेन्को बिल्डिंग एंड इंडस्ट्री ए/एस (Novenco Building and Industry A/S) की अपील को स्वीकार करते हुए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के सिंगल और डिवीजन बेंच के फैसलों को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे को गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से सुनवाई के लिए हाईकोर्ट को वापस भेज दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता, नोवेन्को बिल्डिंग एंड इंडस्ट्री ए/एस, एक डेनिश कंपनी है जो ‘नोवेन्को ज़ेरएक्स’ (Novenco ZerAx) ब्रांड नाम से औद्योगिक पंखों का निर्माण करती है। कंपनी ने कहा कि उसने इसके लिए भारत में कई पेटेंट और डिजाइन रजिस्ट्रेशन हासिल किए थे।
1 सितंबर, 2017 को, प्रतिवादी नंबर 1, ज़ीरो एनर्जी इंजीनियरिंग सॉल्यूशंस प्रा. लिमिटेड (Xero Energy), के साथ भारत में इन पंखों के विपणन और बिक्री के लिए एक डीलरशिप समझौता किया गया। अपीलकर्ता के अनुसार, ज़ीरो एनर्जी के निदेशक ने समझौते का उल्लंघन करते हुए, प्रतिवादी नंबर 2, एरोनॉट फैंस इंडस्ट्री प्रा. लिमिटेड (Aeronaut Fans), नामक एक कंपनी बनाई और “भ्रामक रूप से समान नाम और दिखने वाले” पंखों का निर्माण और बिक्री शुरू कर दी।
अपीलकर्ता ने कहा कि उसे जुलाई 2022 में प्रतिस्पर्धी उत्पादों के विपणन के बारे में पता चला। स्पष्टीकरण मांगने वाले कई संचारों का जवाब नहीं मिलने पर, अपीलकर्ता ने 14 अक्टूबर, 2022 को डीलरशिप समाप्त कर दी और बाद में 23 दिसंबर, 2022 को एरोनॉट फैंस को ‘सीज़-एंड-डेसिस्ट’ (उल्लंघन रोकने) का नोटिस भेजा।
6 दिसंबर, 2023 को, अपीलकर्ता के एक तकनीकी विशेषज्ञ ने एरोनॉट फैंस द्वारा लगाए गए पंखों का निरीक्षण किया और 6 फरवरी, 2024 को उल्लंघन की पुष्टि करते हुए एक हलफनामा प्रस्तुत किया। मार्च-मई 2024 में पेटेंट और डिजाइन प्रमाण पत्र प्राप्त करने के बाद, अपीलकर्ता ने 4 जून, 2024 को हाईकोर्ट में पेटेंट और डिजाइन उल्लंघन का आरोप लगाते हुए एक कमर्शियल मुकदमा (COMS No. 13 of 2024) दायर किया।
मुकदमे के साथ, अपीलकर्ता ने एक अंतरिम निषेधाज्ञा (ad interim injunction) के लिए (आदेश XXXIX नियम 1 और 2 के तहत) और धारा 12A के तहत अनिवार्य पूर्व-संस्थागत मध्यस्थता (pre-institution mediation) से छूट के लिए, तात्कालिकता का हवाला देते हुए, एक आवेदन दायर किया।
प्रतिवादियों ने सीपीसी के आदेश VII नियम 11 के तहत वाद (plaint) को खारिज करने के लिए आवेदन दायर किया, जिसमें यह तर्क दिया गया कि धारा 12A का पालन न करने के कारण मुकदमा वर्जित था, क्योंकि मामले में कोई वास्तविक तात्कालिकता शामिल नहीं थी।
हाईकोर्ट की टिप्पणियां
हाईकोर्ट के सिंगल जज ने 28 अगस्त, 2024 को एक आदेश द्वारा प्रतिवादियों के आवेदन को स्वीकार कर लिया और वाद को खारिज कर दिया। सिंगल जज ने माना कि: (i) पंखों के निरीक्षण (दिसंबर 2023) और मुकदमा दायर करने (जून 2024) के बीच छह महीने की देरी हुई थी; (ii) तात्कालिकता की दलील असत्यापित थी क्योंकि अपीलकर्ता ने दिसंबर 2022 की शुरुआत में ही ‘सीज़-एंड-डेसिस्ट’ नोटिस जारी कर दिया था; और (iii) “वास्तविक तात्कालिकता” (genuine urgency) के अभाव में, अनिवार्य मध्यस्थता का पालन न करना घातक था।
हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने 13 नवंबर, 2024 के एक आदेश द्वारा इस आदेश की पुष्टि की। बेंच ने माना कि “पंखों के निरीक्षण और कमर्शियल मुकदमा दायर करने के बीच की देरी, तात्कालिकता की स्पष्ट कमी को प्रदर्शित करती है।” बेंच ने आगे कहा कि धारा 12A की आवश्यकता से छूट का दावा “केवल इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि अंतरिम राहत मांगी गई थी” और “बौद्धिक संपदा अधिकारों का मात्र निरंतर उल्लंघन, वैधानिक मध्यस्थता आवश्यकताओं को ओवरराइड नहीं कर सकता।”
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलीलें
अपीलकर्ता (नोवेन्को) की ओर से पेश वरिष्ठ वकील ने प्रस्तुत किया कि हाईकोर्ट ने तात्कालिकता के परीक्षण को लागू करने में गलती की है। यह तर्क दिया गया कि “बौद्धिक संपदा के निरंतर उल्लंघन के खिलाफ निषेधाज्ञा के लिए मुकदमा दायर करने में मात्र देरी, अपने आप में, उल्लंघनकर्ता के खिलाफ निषेधाज्ञा की राहत को अस्वीकार करने का आधार नहीं है,” इसके लिए मिडास हाइजीन इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम सुधीर भाटिया और अन्य मामले पर भरोसा किया गया।
प्रतिवादियों के वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने सही पाया कि कोई तात्कालिकता नहीं थी, यह देखते हुए कि वाद में “तात्कालिकता पर एक भी शब्द नहीं” था। ‘सीज़-एंड-डेसिस्ट’ नोटिस से डेढ़ साल और विशेषज्ञ की राय से चार महीने की देरी, तात्कालिकता की कमी को दर्शाती है, यह प्रस्तुत करते हुए कि “अंतरिम राहत के लिए मात्र आवेदन दायर करना, स्वतः तात्कालिकता को इंगित नहीं करता है।”
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने अपने विश्लेषण की शुरुआत धारा 12A के प्रावधान और हाल के न्यायिक निर्णयों, जिनमें पाटिल ऑटोमेशन प्रा. लिमिटेड बनाम रखेजा इंजीनियर्स प्रा. लिमिटेड, यामिनी मनोहर बनाम टी.के.डी. कीर्ति, और धनबाद फ्यूल्स (पी) लिमिटेड बनाम यूओआई शामिल हैं, के अध्ययन से की।
कोर्ट ने सिद्धांतों को स्पष्ट करते हुए कहा कि परीक्षण यह नहीं है कि अंतरिम राहत “वास्तव में दी जाएगी या नहीं,” बल्कि यह है कि क्या, वादी के दृष्टिकोण से, राहत के लिए प्रार्थना “विचारणीय” (contemplable) है।
कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट ने “तत्काल राहत के लिए परीक्षण की गलत व्याख्या की है।” फैसले में कहा गया: “…कोर्टों ने वादी के दृष्टिकोण से वाद और उसके साथ संलग्न दस्तावेजों से स्पष्ट होने वाली तात्कालिकता को देखने के बजाय, मामले के गुण-दोष के आधार पर तत्काल राहत के लिए अपीलकर्ता की पात्रता की जांच की है।”
इस परीक्षण को लागू करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि वर्तमान कार्रवाई का विषय “बौद्धिक संपदा का निरंतर उल्लंघन” है। कोर्ट ने कहा: “उल्लंघन करने वाले उत्पाद का निर्माण, बिक्री, या बिक्री के लिए प्रत्येक प्रस्ताव एक नया गलत और आवर्ती कार्रवाई का कारण (fresh wrong and recurring cause of action) बनता है।”
मिडास हाइजीन मामले पर भरोसा करते हुए, कोर्ट ने दोहराया कि “कार्रवाई करने में मात्र देरी, उल्लंघन को वैध नहीं बनाती है।”
फैसले ने यह स्थापित किया कि ऐसे मामलों में तात्कालिकता “गलती की प्रकृति में निहित” है। कोर्ट ने कहा, “वादी के दृष्टिकोण से, निरंतर उल्लंघन का प्रत्येक दिन उसकी बौद्धिक संपदा को नुकसान पहुंचाता है और उसकी बाजार स्थिति को कमजोर करता है,” “इसलिए, तात्कालिकता, कारण की उम्र में नहीं, बल्कि खतरे के बने रहने (persistence of the peril) में निहित है।”
कोर्ट ने इसमें एक जनहित का आयाम भी जोड़ा, यह देखते हुए कि, “जब नकल, नवाचार का मुखौटा पहनती है, तो यह उपभोक्ताओं के बीच भ्रम पैदा करती है, बाजार स्थल को दूषित करती है और व्यापार की पवित्रता में विश्वास को कम करती है। इसलिए, जनहित वह नैतिक धुरी बन जाता है जिस पर तात्कालिकता निर्भर करती है।”
सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि हाईकोर्ट का दृष्टिकोण, जो “इस आधार पर आगे बढ़ा कि समय बीतने… ने तात्कालिकता के तत्व को नकार दिया,” “इस कोर्ट के निर्णयों द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के विपरीत” था और “बौद्धिक संपदा के निरंतर उल्लंघन” को ध्यान में रखने में विफल रहा।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील को स्वीकार कर लिया और हाईकोर्ट के आक्षेपित निर्णयों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने दो समापन सिद्धांत निर्धारित किए:
“(i) बौद्धिक संपदा अधिकारों के निरंतर उल्लंघन का आरोप लगाने वाली कार्रवाइयों में, तात्कालिकता का आकलन जारी क्षति और धोखे को रोकने में जनहित के संदर्भ में किया जाना चाहिए, (ii) केवल मुकदमा दायर करने में देरी, अपने आप में, तात्कालिकता को समाप्त नहीं करती है जब उल्लंघन जारी हो।”
कमर्शियल सूट नंबर 13 ऑफ 2024 को कानून के अनुसार गुण-दोष के आधार पर सुनवाई के लिए हाईकोर्ट की फाइल में बहाल कर दिया गया है।




