“संविधान ही सर्वोच्च है”: राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति धनखड़ के ‘संसद सर्वोच्च’ बयान पर पलटवार किया

केंद्रीय शासन व्यवस्था में संसद और न्यायपालिका के बीच बढ़ते टकराव के बीच मंगलवार को वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया कि “संसद सर्वोच्च है”। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष सिब्बल ने स्पष्ट किया कि “न संसद, न कार्यपालिका — केवल संविधान सर्वोच्च है” और इसकी व्याख्या करने का अधिकार सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के पास है।

उपराष्ट्रपति का नाम लिए बिना सिब्बल ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा: “कानून कहता है: न संसद सर्वोच्च है, न कार्यपालिका। संविधान सर्वोच्च है। संविधान के प्रावधानों की व्याख्या सुप्रीम कोर्ट करता है। देश ने अब तक इसी तरह से कानून को समझा है।”

इसके बाद एक अन्य पोस्ट में उन्होंने हालिया सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का बचाव करते हुए कहा कि ये निर्णय संविधान के सिद्धांतों और राष्ट्रीय हित से प्रेरित हैं।

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“सुप्रीम कोर्ट: संसद को कानून बनाने की पूर्ण शक्ति प्राप्त है। सुप्रीम कोर्ट का दायित्व है संविधान की व्याख्या करना और पूर्ण न्याय करना (अनुच्छेद 142)। अदालत ने जो भी कहा: 1) वह संविधानिक मूल्यों के अनुरूप है, 2) और राष्ट्रीय हित से निर्देशित है।”

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उपराष्ट्रपति के बयान

सिब्बल की यह टिप्पणी उस समय आई है जब हाल ही में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में फिर से दोहराया कि “निर्वाचित जनप्रतिनिधि ही यह तय करेंगे कि संविधान का स्वरूप क्या होगा” और यह भी कहा कि “संविधान में संसद से ऊपर किसी अन्य सत्ता की कल्पना नहीं की गई है।”

धनखड़ का यह बयान उस फैसले की पृष्ठभूमि में आया है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति और राज्यपालों को विधायिका द्वारा पारित विधेयकों पर समयबद्ध निर्णय लेने की व्यवस्था लागू की थी। इस पर सरकार के कुछ वर्गों ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी।

उपराष्ट्रपति, जो स्वयं पूर्व वरिष्ठ अधिवक्ता रह चुके हैं, ने इस फैसले को “न्यायपालिका का अतिरेक” करार देते हुए सवाल उठाया: “हालिया फैसले में राष्ट्रपति को निर्देश दिया गया है। हम किस दिशा में जा रहे हैं? हमने कभी ऐसी लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी जहां जज कानून बनाएंगे, कार्यपालिका की भूमिका निभाएंगे, और संसद से भी ऊपर होंगे—बिना किसी जवाबदेही के।”

उन्होंने अनुच्छेद 142 को भी निशाने पर लेते हुए कहा: “अनुच्छेद 142 एक परमाणु हथियार है जो न्यायपालिका को 24×7 उपलब्ध है, और यह लोकतंत्र पर आक्रमण करने का हथियार बन गया है।”

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भाजपा नेताओं की प्रतिक्रिया

इस विवाद में भाजपा के कुछ नेताओं ने भी न्यायपालिका की आलोचना की। सांसद निशिकांत दुबे ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट “अपनी सीमाएं लांघ रहा है और देश में धार्मिक युद्ध भड़का रहा है”। वहीं भाजपा नेता दिनेश शर्मा ने कहा कि “राष्ट्रपति को कोई चुनौती नहीं दे सकता” और उनका कार्य न्यायिक समीक्षा से परे है।

हालांकि, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने इन बयानों से पार्टी को अलग करते हुए कहा: “ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं। भाजपा ऐसे बयानों से सहमत नहीं है और इन्हें पूरी तरह से खारिज करती है।”

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सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया

जैसे-जैसे यह विवाद गहराता गया, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने भी अपने विचार साझा किए। अगले मुख्य न्यायाधीश बनने जा रहे जज बीआर गवई ने कहा कि “न्यायपालिका पर बार-बार कार्यपालिका के क्षेत्र में हस्तक्षेप के आरोप लगते हैं”।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ जज जस्टिस सूर्यकांत ने मंगलवार को कहा: “न्यायपालिका को रोज़ाना निशाना बनाया जाता है… लेकिन हमें कोई चिंता नहीं है।”

इस बीच सरकार के शीर्ष सूत्रों ने एक संतुलित बयान जारी करते हुए कहा: “न्यायपालिका के प्रति सम्मान सर्वोपरि है और सभी लोकतांत्रिक संस्थाएं ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य की दिशा में मिलकर काम कर रही हैं।”

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