सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यह तय करने का निर्णय लिया कि क्या हत्या के दो मामलों में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को लगातार दो उम्रकैद की सज़ा देना कानूनन उचित है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने पहले ही इसे अवैध ठहराया है।
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने यह कहते हुए नोटिस जारी किया कि यह मुद्दा केवल इस प्रश्न तक सीमित रहेगा कि क्या भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दो बार दोषी ठहराए गए व्यक्ति को लगातार चलने वाली दो उम्रकैद की सज़ा देना वैध है। यह नोटिस आठ सप्ताह में प्रत्युत्तर के लिए returnable है।
यह मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 2015 के फैसले से जुड़ा है, जो कि 2010 में हुए दोहरे हत्याकांड से संबंधित है। हाईकोर्ट ने आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए मृत्युदंड की पुष्टि करने से इनकार किया, और उसकी जगह दो बार उम्रकैद की सज़ा सुनाई, जो कि आपस में क्रमशः चलने वाली थीं।
हाईकोर्ट ने माना कि उम्रकैद का अर्थ प्राकृतिक जीवन के अंत तक कारावास है, लेकिन कार्यपालिका द्वारा रिहाई, क्षमा या छूट जैसी राहतों के चलते अक्सर सज़ा की वास्तविक अवधि कम हो जाती है। इसीलिए, अदालत ने निर्देश दिया कि यदि पहली उम्रकैद की सज़ा में छूट मिलती है, तो दूसरी उम्रकैद की सज़ा पहले के पूरा होने के बाद शुरू होगी।
हाईकोर्ट ने कहा, “दो बार उम्रकैद की सज़ा तकनीकी रूप से अनावश्यक है, लेकिन यदि छूट दी जाती है तो दूसरी सज़ा की अवधि पहले की समाप्ति के बाद शुरू की जा सकती है।”
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने जुलाई 2016 में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ के निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था:
“हालांकि एक से अधिक हत्या या आजीवन कारावास से दंडनीय अन्य अपराधों के लिए एक से अधिक उम्रकैद की सज़ा दी जा सकती है, लेकिन उन्हें आपस में क्रमशः चलने के लिए नहीं कहा जा सकता।”
वकील ने दलील दी कि हाईकोर्ट का आदेश इस संवैधानिक निर्णय के खिलाफ है और इसके कारण दोषी को रिहाई या क्षमा के लिए आवेदन करने में अड़चन आ रही है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से कम से कम इस आदेश के उस हिस्से को हटाने का आग्रह किया।
इन दलीलों को सुनने के बाद पीठ ने नोटिस जारी किया और कहा कि अब यह जांच की जाएगी कि क्या दो बार हत्या के दोषी व्यक्ति को लगातार उम्रकैद देना वैधानिक है, खासकर जब सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने पहले ही इसके खिलाफ राय व्यक्त की है।
अब यह मामला आठ सप्ताह बाद फिर से सूचीबद्ध किया जाएगा। यह निर्णय भविष्य में एकाधिक उम्रकैद की सज़ाओं, छूट, और परोल से जुड़े मामलों में मार्गदर्शक बन सकता है।