भारतीय समाज में यह धारणा कि कोई लड़की यौन शोषण का झूठा आरोप नहीं लगाएगी, अब कमजोर पड़ रही है: केरल हाईकोर्ट

एर्नाकुलम, 13 मार्च 2025 – केरल हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में विवाह के नाम पर धोखा देकर दुष्कर्म करने के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ सभी आपराधिक कार्यवाही को निरस्त कर दिया। अदालत ने इस निर्णय में इस बात पर जोर दिया कि यौन शोषण के आरोपों का मूल्यांकन प्रत्येक मामले की विशेष परिस्थितियों के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि हर शिकायत को स्वतः सत्य मान लिया जाए।

अदालत का अवलोकन

न्यायमूर्ति ए. बधारुद्दीन ने अजीत बनाम केरल राज्य एवं अन्य मामले में निर्णय सुनाते हुए कहा कि वर्षों से भारतीय समाज में यह धारणा रही है कि कोई भी महिला यौन उत्पीड़न के झूठे आरोप नहीं लगाएगी, क्योंकि उसे इसके गंभीर सामाजिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। हालांकि, अदालत ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा:

“जहां यौन शोषण के आरोप लगाए गए हैं, वहां यह अवधारणा वर्षों तक बनी रही कि भारतीय समाज में कोई भी लड़की किसी व्यक्ति पर यौन शोषण या किसी अन्य तरह के दुर्व्यवहार का आरोप नहीं लगाएगी, क्योंकि इससे लड़की या महिला के अधिकारों को नुकसान हो सकता है। हालांकि, हाल के वर्षों में यह धारणा कमजोर पड़ी है, और इस श्रेणी के कुछ मामलों में आरोप बिना किसी ठोस साक्ष्य के लगाए गए हैं, ताकि आरोपी को झुकाने या उसकी अवैध मांगों को पूरा करने के लिए मजबूर किया जा सके। इसलिए, इस अवधारणा को बिना जांच-पड़ताल के आंख मूंदकर स्वीकार नहीं किया जा सकता, बल्कि प्रत्येक मामले में तथ्यों की सच्चाई की जांच आवश्यक है।”

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इस फैसले से न्यायिक दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत मिलता है। यह स्वीकार करता है कि जहां वास्तविक यौन अपराध के मामलों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है, वहीं यह भी जरूरी है कि झूठे आरोपों को कानून का दुरुपयोग करने के साधन के रूप में इस्तेमाल होने से रोका जाए।

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मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला क्राइम नंबर 69/2019 से जुड़ा है, जो कोप्पम पुलिस स्टेशन, पलक्कड़ में दर्ज किया गया था। इससे संबंधित मामला S.C. No. 921/2019 ओट्टापलम की सहायक सत्र अदालत में विचाराधीन था। आरोपी, अजीत, उम्र 27 वर्ष, पुत्र उन्नीकृष्णन, निवासी थृताला, पलक्कड़, ने Crl.M.C No. 1124/2020 के तहत दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत याचिका दायर कर कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी।

अभियोग पक्ष का आरोप था कि अजीत ने 30 मई 2014 से 20 अप्रैल 2019 के बीच शिकायतकर्ता के साथ विवाह का झूठा वादा कर संबंध बनाए और बाद में शादी करने से इनकार कर दिया। इसके बाद, शिकायतकर्ता ने अप्रैल 2019 में एफआईआर दर्ज करवाई, जिसमें दुष्कर्म का आरोप लगाया गया था। हालांकि, पांच साल की देरी से दायर शिकायत और आरोपों में सहमति संबंधी सबूतों ने इस मामले की वैधता पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया।

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कानूनी मुद्दे और तर्क

आरोपी के वकील यू.के. देवीदास ने तर्क दिया कि आरोप झूठे हैं और शिकायतकर्ता ने 2016 में भी इसी तरह का आरोप लगाया था, लेकिन जब अजीत ने उसे शादी का आश्वासन दिया, तो उसने मामला आगे नहीं बढ़ाया। उन्होंने इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित किया कि शिकायतकर्ता ने तीन वर्षों तक आरोपी से कोई संपर्क नहीं किया और फिर अचानक एफआईआर दर्ज करवाई, जो कि उसकी दुर्भावना को दर्शाता है।

वहीं, अभियोजन पक्ष के वकील लोक अभियोजक जीबू टी.एस. और के.वी. भद्र कुमारी ने दलील दी कि शिकायत सही थी और एफआईआर में देरी का मतलब यह नहीं कि अपराध नहीं हुआ।

अदालत का विश्लेषण और निर्णय

न्यायमूर्ति ए. बधारुद्दीन ने माना कि यौन शोषण की शिकायतों को संवेदनशीलता के साथ देखा जाना चाहिए, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि बिना तथ्यों की जांच किए हुए आरोपों को आंख मूंदकर स्वीकार नहीं किया जा सकता। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि हाल के वर्षों में ऐसे मामलों की संख्या बढ़ी है, जहां आरोप पूरी तरह से निराधार साबित हुए हैं और कुछ मामलों में इन्हें निजी स्वार्थ साधने के लिए इस्तेमाल किया गया है।

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“जब किसी व्यक्ति पर विवाह के नाम पर दुष्कर्म का आरोप लगाया जाता है और फिर तीन वर्षों तक किसी भी प्रकार की शिकायत या कानूनी कार्यवाही नहीं की जाती, तो यह तार्किक रूप से समझना मुश्किल हो जाता है।”

अदालत ने यह भी ध्यान दिया कि शिकायतकर्ता ने स्वयं एक हलफनामा दायर कर कहा कि उसे अब इस मामले में कोई शिकायत नहीं है। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि आईपीसी की धारा 376 के तहत आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए कोई ठोस आधार नहीं है और याचिका को स्वीकार करते हुए मुकदमे को समाप्त कर दिया।

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