आय छिपाने पर पत्नी को मौद्रिक भरण-पोषण का अधिकार नहीं, लेकिन डीवी एक्ट के तहत आवास का अधिकार बना रहेगा: दिल्ली हाई कोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई पत्नी जानबूझकर अपनी आय और रोजगार की स्थिति को अदालत से छिपाती है, तो वह ‘घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005’ (PWDV Act) के तहत मौद्रिक भरण-पोषण (monetary maintenance) पाने की हकदार नहीं है। हालांकि, कोर्ट ने यह महत्वपूर्ण टिप्पणी की है कि पत्नी द्वारा आय छिपाने का अर्थ यह नहीं है कि पति अपनी पत्नी और नाबालिग बच्चे को रहने के लिए घर उपलब्ध कराने की अपनी वैधानिक जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएगा।

हाईकोर्ट की एकल पीठ की जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने याचिकाकर्ता पत्नी द्वारा दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका (criminal revision petition) का निपटारा करते हुए यह फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने सत्र न्यायालय (Sessions Court) के उस निर्णय को बरकरार रखा जिसमें पत्नी द्वारा वित्तीय तथ्यों को छिपाने के कारण उसे दिए गए मौद्रिक भरण-पोषण को रद्द कर दिया गया था।

इसके बावजूद, कोर्ट ने आदेश में संशोधन करते हुए याचिकाकर्ता पत्नी को विशेष रूप से किराए का घर लेने के लिए 10,000 रुपये प्रति माह देने का निर्देश दिया। कोर्ट ने माना कि PWDV अधिनियम की धारा 19 के तहत पत्नी का ‘निवास का अधिकार’ (Right to Residence) एक स्वतंत्र अधिकार है।

मामले की पृष्ठभूमि

पक्षकारों का विवाह 19 फरवरी 2012 को हुआ था और 21 जनवरी 2013 को उनके घर एक बेटे का जन्म हुआ। सितंबर 2020 में, याचिकाकर्ता पत्नी ने PWDV अधिनियम की धारा 12 के तहत एक शिकायत दर्ज कराई, जिसमें दहेज की मांग और उत्पीड़न का आरोप लगाया गया। पत्नी का कहना था कि वह 22 जुलाई 2020 से अपने नाबालिग बेटे के साथ अलग रह रही है।

ट्रायल कोर्ट ने 9 नवंबर 2020 के आदेश के जरिए शुरुआत में पत्नी और बच्चे के लिए 30,000 रुपये प्रति माह का अंतरिम भरण-पोषण तय किया था। बाद में, 8 अप्रैल 2022 को ट्रायल कोर्ट ने इसे संशोधित कर पत्नी और बच्चे दोनों के लिए 15,000 रुपये प्रति माह (प्रत्येक) कर दिया। इस आदेश को दोनों पक्षों ने सत्र न्यायालय में चुनौती दी।

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5 अप्रैल 2024 को, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने पत्नी की अपील खारिज कर दी और पति की अपील को स्वीकार करते हुए पत्नी के भरण-पोषण के आदेश को रद्द कर दिया, जबकि बच्चे का भरण-पोषण बरकरार रखा। सत्र न्यायालय ने पाया कि पत्नी ने अपनी आय और रोजगार के स्रोतों को छिपाया था। इसी आदेश से व्यथित होकर पत्नी ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

पक्षकारों की दलीलें

याचिकाकर्ता पत्नी का तर्क: पत्नी के वकील ने तर्क दिया कि भले ही याचिकाकर्ता के पास दो एमबीए (Dual MBA) डिग्रियां हैं, लेकिन वह वर्तमान में बेरोजगार है। यह कहा गया कि उसने केवल तीन महीने के लिए नौकरी की थी, लेकिन चल रहे मुकदमों के कारण उसकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं। उसने दलील दी कि माता-पिता के निधन के बाद उसके पास कोई पैतृक सहयोग नहीं है और बच्चे की जिम्मेदारी पूरी तरह उसी पर है।

आय छिपाने के आरोपों पर पत्नी ने कहा कि बैंक खातों में लेनदेन प्रतिवादी पति द्वारा किए गए थे और जो राशि जमा दिख रही है, वह उसके माता-पिता द्वारा छोड़ी गई एलआईसी पॉलिसियों और फिक्स्ड डिपॉजिट की परिपक्वता राशि है। उसने ट्यूशन (“S.S. Study Circle”) से कमाई करने से इनकार किया और कहा कि वह वर्तमान में अपने भाई के घर रह रही है।

प्रतिवादी पति का तर्क: पति के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता एक योग्य और सक्षम महिला है जिसने जानबूझकर “क्लेवोरा ग्लोबल आउटसोर्सिंग सर्विसेज एलएलपी” के साथ अपने रोजगार और प्राइवेट ट्यूशन से होने वाली आय को छिपाया। यह आरोप लगाया गया कि उसने रोजगार का खुलासा तब किया जब पति ने धारा 340 Cr.P.C. के तहत आवेदन दायर किया।

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पति पक्ष ने बताया कि पत्नी द्वारा स्वयं दाखिल किए गए असेसमेंट ईयर 2025-2026 के आयकर रिटर्न (ITR) में 17,000 रुपये प्रति माह की आय दर्शाई गई है। यह भी कहा गया कि पत्नी ने बैंक विवरण छिपाए और उसके पास स्वतंत्र वित्तीय संसाधन मौजूद हैं।

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर हाईकोर्ट ने पाया कि पत्नी ने नवंबर 2020 में दायर अपने शुरुआती हलफनामे में अप्रैल 2020 से जुलाई 2020 के बीच अपने रोजगार का खुलासा नहीं किया था। कोर्ट ने नोट किया कि उसने काम करने की बात तब स्वीकार की जब ट्रायल कोर्ट ने बैंक विवरण दाखिल करने का निर्देश दिया।

आय छिपाने पर: अदालत ने तथ्यों को छिपाने के संबंध में निचली अदालतों के निष्कर्षों की पुष्टि की। जस्टिस शर्मा ने कहा:

“यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि जो पक्षकार अपनी आय के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी छिपाता है, वह इस आधार पर भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकता कि वह अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है।”

कोर्ट ने बताया कि पत्नी के पिछले वर्षों (वित्त वर्ष 2017-18 और 2018-19) के आईटीआर में सकल आय क्रमशः 3,00,000 रुपये और 3,50,000 रुपये से अधिक दिखाई गई थी, जो उसके आय का कोई स्रोत न होने के दावे के विपरीत थी।

सुप्रीम कोर्ट के रजनीश बनाम नेहा (2021) फैसले का हवाला देते हुए, कोर्ट ने दोहराया कि अंतरिम भरण-पोषण इस शर्त पर निर्भर है कि आवेदक के पास सहायता के लिए पर्याप्त स्वतंत्र आय नहीं है।

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निवास के अधिकार पर: मौद्रिक भरण-पोषण से इनकार करते हुए भी, हाईकोर्ट ने PWDV अधिनियम के तहत निवास के अधिकार को अलग माना। कोर्ट ने देखा कि याचिकाकर्ता और उसका बच्चा उसके भाई के घर पर केवल उनकी “सद्भावना” (goodwill) पर रह रहे हैं।

जस्टिस शर्मा ने कहा:

“तथ्य यह है कि आय छिपाने के कारण याचिकाकर्ता मौद्रिक भरण-पोषण की हकदार नहीं हो सकती है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि वह PWDV अधिनियम की धारा 19 के तहत निवास आदेश की हकदार नहीं है।”

कोर्ट ने धारा 19(1)(f) के तहत पति के वैधानिक कर्तव्य पर जोर दिया कि वह पीड़ित महिला के लिए वैकल्पिक आवास सुनिश्चित करे या उसका किराया दे।

फैसला

हाईकोर्ट ने 5 अप्रैल 2024 के आक्षेपित आदेश को संशोधित किया। व्यक्तिगत खर्चों के लिए भरण-पोषण से इनकार को बरकरार रखते हुए, कोर्ट ने प्रतिवादी पति को निर्देश दिया कि वह पत्नी और नाबालिग बच्चे के लिए किराए का आवास सुनिश्चित करने हेतु 10,000 रुपये प्रति माह का भुगतान करे।

नाबालिग बच्चे के लिए 15,000 रुपये प्रति माह का अंतरिम भरण-पोषण, जिसे चुनौती नहीं दी गई थी, यथावत रहेगा।

इसके अतिरिक्त, कार्यवाही में देरी को देखते हुए—जहां शिकायत वर्ष 2020 की है—हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह “छोटी तारीखें देकर और यह सुनिश्चित करके कि दोनों पक्षों की गवाही बिना किसी अनावश्यक देरी के पूरी हो,” ट्रायल में तेजी लाए।

याचिका का निपटारा उपरोक्त निर्देशों के साथ किया गया।

केस विवरण:

  • केस टाइटल: साहिबा सोढ़ी बनाम द स्टेट एनसीटी ऑफ दिल्ली और अन्य
  • केस नंबर: CRL.REV.P. 917/2024 और CRL.M.A. 28189/2024
  • साइटेशन: 2025:DHC:11064
  • कोरम: जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा

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