गर्भधारण में असमर्थता और मासिक धर्म संबंधी समस्या छिपाना क्रूरता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पति के पक्ष में तलाक का फैसला बरकरार रखा

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि शादी से पहले गंभीर बीमारी और गर्भधारण करने में असमर्थता (Inability to conceive) की बात छिपाना जीवनसाथी के साथ क्रूरता के समान है। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट, कवर्धा द्वारा दिए गए तलाक के डिक्री को सही ठहराते हुए पत्नी की अपील खारिज कर दी। हालांकि, अदालत ने पति को निर्देश दिया है कि वह पत्नी को स्थायी भरण-पोषण (Permanent Alimony) के रूप में 5 लाख रुपये का भुगतान करे।

जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस अमितेन्द्र किशोर प्रसाद की डिविजन बेंच ने अपने फैसले में कहा कि फैमिली कोर्ट ने पति द्वारा पेश किए गए सबूतों का सही मूल्यांकन किया है, जिससे यह साबित होता है कि पत्नी ने विवाह से पहले अपने स्वास्थ्य से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया था।

क्या है पूरा मामला?

यह मामला कवर्धा के फैमिली कोर्ट के 16 मार्च 2022 के फैसले के खिलाफ दायर अपील से जुड़ा है। पक्षकारों का विवाह 5 जून 2015 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था।

पति (प्रत्यर्थी) ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(a) के तहत तलाक के लिए आवेदन दायर किया था। पति का मुख्य आरोप था कि पत्नी ने शादी से पहले इस तथ्य को छिपाया कि उसे पिछले 10 वर्षों से मासिक धर्म (Menstrual discharge) नहीं हो रहा था। पति के अनुसार, शुरुआत में वैवाहिक जीवन सामान्य था, लेकिन बाद में पत्नी का व्यवहार परिवार के प्रति अपमानजनक हो गया।

READ ALSO  खाद्य सुरक्षा अधिनियम ने धारा 272 और 273 IPC को निरर्थक बना दिया है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चार्जशीट रद्द की

पति ने बताया कि जब पत्नी ने उसे बताया कि उसका मासिक धर्म रुक गया है, तो उसे लगा कि वह गर्भवती है। वह खुशी-खुशी उसे डॉक्टर के पास ले गया। वहां चेकअप के दौरान पत्नी ने डॉक्टर को बताया कि उसे पिछले 10 साल से मासिक धर्म नहीं आया है। जांच में पता चला कि उसके गर्भाशय में गंभीर समस्या है, जिसके कारण वह गर्भधारण करने में असमर्थ है।

पति का आरोप था कि जब उसने पत्नी से इस बारे में पूछा, तो उसने स्वीकार किया कि यदि वह पहले सच बता देती, तो वह शादी के लिए मना कर देता, इसलिए अब उसे (पति को) उसे झेलना ही पड़ेगा। इसके अलावा, पति ने यह भी आरोप लगाया कि पत्नी 2016 में घर से जेवर और नकद लेकर अपने मायके चली गई और वापस नहीं लौटी।

पक्षकारों की दलीलें

अपीलार्थी पत्नी ने अपने जवाब में सभी आरोपों का खंडन किया। उसने कहा कि उसके पिता ने शादी का पूरा खर्च उठाया था और दहेज का सामान भी दिया था। उसने गर्भधारण में असमर्थता की बात को नकारते हुए कहा कि उसे डॉक्टर के पास इसलिए ले जाया गया था क्योंकि उसका पति जल्द संतान चाहता था।

READ ALSO  नीट पीजी सिलेबस में बदलाव पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाते हुए कहा, सत्ता के खेल में युवा डॉक्टर को फुटबॉल मत समझो

पत्नी का तर्क था कि डॉ. गुलाटी ने कहा था कि बच्चेदानी बंद होने के कारण गर्भधारण में दिक्कत है, लेकिन यह समस्या अस्थायी है और दवा व योग से ठीक हो सकती है। उसने आरोप लगाया कि ससुराल वाले उसे “बांझ” कहकर प्रताड़ित करते थे और तलाक का आवेदन झूठे आधारों पर दायर किया गया है।

वहीं, पति ने अपनी गवाही में स्पष्ट रूप से कहा:

“मैं संतानोत्पत्ति में सक्षम हूं… यदि अनावेदिका (पत्नी) मुझे पहले बता देती कि वह संतानोत्पत्ति के योग्य नहीं है तो मैं इस बारे में सोच सकता था, किन्तु उसके द्वारा मुझे नहीं बताया गया… मेरा पांच साल खराब हुआ।”

हाईकोर्ट का विश्लेषण और फैसला

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के रिकॉर्ड और पति द्वारा पेश किए गए मेडिकल दस्तावेजों (Ex. A/01 से A/12), जिनमें हिस्टेरोसाल्पिंगोग्राफी (HSG) रिपोर्ट शामिल थी, का बारीकी से परीक्षण किया।

अदालत ने पाया कि हालांकि पत्नी ने जिरह में दावा किया कि “इलाज के बाद वह गर्भधारण करने में सक्षम हो गई है,” लेकिन उसने इस संबंध में कोई भी मेडिकल सर्टिफिकेट पेश नहीं किया। बेंच ने कहा कि निचली अदालत ने मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य का सही विश्लेषण किया है और यह निष्कर्ष सही है कि पत्नी ने महत्वपूर्ण जानकारी छिपाई थी।

READ ALSO  धारा 124A IPC (देशद्रोह) को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 5 मई को सुनेगा सुप्रीम कोर्ट

इसके आधार पर हाईकोर्ट ने माना कि पति के साथ क्रूरता हुई है और तलाक का आदेश उचित है।

स्थायी भरण-पोषण (Permanent Alimony)

तलाक को मंजूरी देने के साथ ही हाईकोर्ट ने पत्नी के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए भरण-पोषण पर भी विचार किया। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले सौ. जिया बनाम कुलदीप (2025 SCC OnLine SC 213) का हवाला देते हुए, अदालत ने निर्देश दिया:

“मामले के तथ्यों, परिस्थितियों और पक्षकारों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को देखते हुए… हम पाते हैं कि अपीलार्थी-पत्नी के पक्ष में 5,00,000/- रुपये (पांच लाख रुपये) की राशि एकमुश्त निपटान के रूप में देना न्यायसंगत होगा।”

पति को यह राशि आदेश की तारीख से चार महीने के भीतर अदा करने का निर्देश दिया गया है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles