“यह एनएचएआई की भूमि पर अतिक्रमण का क्लासिक मामला है”: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वक्फ मदरसे की याचिका खारिज की

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वक्फ मदरसा क़ासिमुल उलूम द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें निचली अदालत द्वारा राज्य सरकार को लिखित बयान संशोधित करने की अनुमति देने के आदेश को चुनौती दी गई थी। न्यायालय ने स्पष्ट टिप्पणी की कि—

“यह एनएचएआई की भूमि पर अतिक्रमण का एक क्लासिक मामला है, जिसमें वादी (मदरसा) द्वारा निर्माण कर लिया गया है और उसे वक्फ संपत्ति बताते हुए किराया वसूला जा रहा है।”

यह फैसला न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की एकलपीठ द्वारा 12 मई 2025 को अनुच्छेद 227 के अंतर्गत वाद संख्या 2495/2016 में सुनाया गया।

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पृष्ठभूमि

वादी मदरसे ने वर्ष 2011 में वाद संख्या 9/2011 दायर करते हुए स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की थी, जिसमें प्रतिवादियों को विवादित संपत्ति को ध्वस्त करने अथवा उस पर नया निर्माण करने से रोके जाने की गुहार लगाई गई थी। वादी ने संपत्ति को अपनी वक्फ संपत्ति बताया था और यह भी कहा था कि वहां एक मस्जिद और गरीब बच्चों के लिए मदरसा संचालित होता है।

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वादी ने यह भी उल्लेख किया कि उक्त संपत्ति ₹34 प्रति माह के किराए पर पुलिस विभाग को दी गई थी और वहां एक पुलिस चौकी बनी हुई थी, जो अब बंद पड़ी है।

प्रतिवादियों ने अपने प्रारंभिक लिखित बयान में किराए की बात तो स्वीकार की, परंतु वक्फ होने के दावे से इनकार किया और यह कहा कि उक्त संपत्ति वक्फ बोर्ड में पंजीकृत नहीं है।

प्रतिवादियों द्वारा लिखित बयान संशोधन और वादी की आपत्ति

बाद में प्रतिवादियों ने नवंबर 2014 में अपना लिखित बयान संशोधित करने के लिए आवेदन किया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने 22 मई 2015 को स्वीकार कर लिया। इस आदेश के विरुद्ध वादी ने पुनरीक्षण याचिका (संख्या 107/2015) दायर की थी, जिसे 18 मार्च 2016 को खारिज कर दिया गया। इसी के विरुद्ध यह याचिका अनुच्छेद 227 के अंतर्गत दाखिल की गई थी।

वादी का तर्क था कि प्रतिवादी पहले दिए गए तथ्यों से पलट रहे हैं और यह संशोधन उनके बचाव को पूरी तरह बदल देगा। इसके समर्थन में हिरालाल बनाम कल्याणमल (AIR 1998 SC 618) का हवाला भी दिया गया।

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राज्य की ओर से कहा गया कि यह मामला पूर्व कथनों से पीछे हटने का नहीं, बल्कि 2014 में राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण से प्राप्त पत्रों के आधार पर नई स्थिति के प्रकाश में आया संशोधन है। पत्रों में स्पष्ट रूप से कहा गया कि संबंधित भूमि एनएचएआई के स्वामित्व में है और उस पर अवैध निर्माण हटाया जाना आवश्यक है।

न्यायालय का विश्लेषण और टिप्पणी

न्यायालय ने वक्फ अधिनियम, 1995 का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि किसी संपत्ति को वक्फ घोषित करने के लिए उसका विधिवत समर्पण और पंजीकरण आवश्यक है। न्यायालय ने कहा:

“कोई भी साक्ष्य नहीं है जिससे यह साबित हो कि संपत्ति वक्फ है या वक्फ बोर्ड में पंजीकृत है।”

न्यायालय ने यह भी कहा:

“वादी ने एनएचएआई की भूमि पर निर्माण कर उसे किराए पर दे दिया और स्वयं को वक्फ संपत्ति का मालिक घोषित कर दिया, यह स्वीकार नहीं किया जा सकता।”

अदालत ने यह भी माना कि हिरालाल प्रकरण इस मामले पर लागू नहीं होता, क्योंकि प्रतिवादियों ने पूर्व स्वीकारोक्ति से इनकार नहीं किया बल्कि नए तथ्यों के प्रकाश में प्रतिक्रिया दी।

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निर्णय

न्यायालय ने माना कि निचली अदालत द्वारा संशोधन की अनुमति आदेश 6 नियम 17 सीपीसी के अंतर्गत विधिसंगत रूप से दी गई थी और इसमें हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं है।

याचिका खारिज कर दी गई।

  • मामला: Waqf Madarsa Qasimul Uloom बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य
  • वाद संख्या: अनुच्छेद 227 के अंतर्गत वाद संख्या 2495/2016
  • वादी पक्ष से अधिवक्ता: अजय कुमार सिंह, आशीष कुमार सिंह, जनार्दन मिश्रा, रजनीकांत चौबे
  • प्रतिवादी पक्ष से अधिवक्ता: मुख्य स्थायी अधिवक्ता (C.S.C.)

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