एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस संजीव खन्ना ने बुधवार को धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विस्तृत सुनवाई के लिए उन्हें 13 मई 2025 से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया — यह वही तारीख है जिस दिन उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है।
यह मामला सीजेआई खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ के समक्ष भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा मेंशन किया गया था। उपाध्याय ने अदालत से आग्रह किया कि अवैध धार्मिक धर्मांतरण के खिलाफ दायर अपनी जनहित याचिका (PIL) पर शीघ्र सुनवाई की जाए और राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों का समर्थन किया जाए।
इस पर सीजेआई खन्ना ने कहा:
“हमें इस मामले पर विस्तार से सुनवाई करनी होगी। इसे 13 मई से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध किया जाए।”
हालांकि, यह टिप्पणी न्यायिक हलकों में चर्चा का विषय बन गई क्योंकि 13 मई को ही जस्टिस खन्ना का अंतिम कार्यदिवस है। वे इसी दिन सेवानिवृत्त हो रहे हैं और 14 मई को जस्टिस बी.आर. गवई भारत के नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे।
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान अधिवक्ता उपाध्याय ने जोर देते हुए कहा, “माई लॉर्ड्स! धर्मांतरण युद्ध छेड़ने जैसा है, हर दिन 10 हजार हिंदुओं का धर्मांतरण हो रहा है।” उन्होंने दावा किया कि यह एक अत्यंत संवेदनशील और आपात विषय है, जिसमें प्रतिदिन हजारों हिंदुओं को अवैध रूप से अन्य धर्मों में परिवर्तित किया जा रहा है और मौजूदा कानून धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आवश्यक हैं।
हालांकि, पीठ ने अन्य पक्षों को सुने बिना इसपर बहस सुनने से इनकार कर दिया और कहा, “आप बहस क्यों कर रहे हैं? क्या हमने दूसरे पक्ष को सुना है? हमें पहले उन्हें सुनना होगा।” इससे स्पष्ट हुआ कि न्यायालय सभी संबंधित पक्षों की दलीलों को सुनकर ही मामले की समग्र और निष्पक्ष सुनवाई करना चाहता है।
उल्लेखनीय है कि देश के विभिन्न राज्यों द्वारा पारित धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं, जिनमें शामिल हैं:
- हिमाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2019
- मध्य प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अध्यादेश, 2020
- उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध अध्यादेश, 2020
- उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम
इन कानूनों का उद्देश्य बलपूर्वक, धोखे या लालच देकर कराए जाने वाले धर्म परिवर्तन पर रोक लगाना है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि इन कानूनों का उपयोग खास तौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के लिए किया जा रहा है और ये लोगों की धर्म की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन करते हैं।
वर्ष 2021 में, सुप्रीम कोर्ट ने जमीयत उलेमा-ए-हिंद को भी इस मामले में हस्तक्षेप की अनुमति दी थी, जिन्होंने इन कानूनों के दुरुपयोग के कारण मुस्लिम समुदाय के उत्पीड़न का आरोप लगाया था।
सीजेआई खन्ना द्वारा इस संवेदनशील मामले को अपने सेवानिवृत्ति के सप्ताह में सूचीबद्ध किए जाने के निर्णय ने कानूनी समुदाय में व्यापक ध्यान आकर्षित किया है। अब यह देखा जाना बाकी है कि क्या वे अपने कार्यकाल के अंत से पहले इस मामले पर कोई प्रारंभिक टिप्पणी कर पाएंगे या पूरी सुनवाई की शुरुआत कर सकेंगे।