केंद्र सरकार ने भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (CJI) की नियुक्ति की औपचारिक प्रक्रिया शुरू कर दी है। कानून मंत्रालय ने शुक्रवार को मौजूदा CJI भूषण आर गवई से उनके उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करने का अनुरोध किया है। CJI गवई 23 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
यह कदम सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस सूर्य कांत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत होने की आधिकारिक प्रक्रिया को गति देता है।
जस्टिस कांत 24 नवंबर को पदभार ग्रहण कर सकते हैं और उनका कार्यकाल लगभग 14 महीने का होगा, जो 9 फरवरी, 2027 को उनकी सेवानिवृत्ति के साथ समाप्त होगा।
मंत्रालय का यह अनुरोध न्यायिक नियुक्तियों के लिए लंबे समय से चली आ रही परंपरा और प्रक्रिया ज्ञापन (MoP) के अनुरूप है। यह प्रक्रिया 1993 के ‘द्वितीय न्यायाधीश मामले’ (Second Judges Case) से निकली है, जिसमें यह तय हुआ था कि कानून मंत्रालय मौजूदा CJI की सेवानिवृत्ति से लगभग एक महीने पहले उनके उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश मांगेगा। इसके बाद, निवर्तमान CJI “कार्यालय संभालने के लिए उपयुक्त माने जाने वाले” वरिष्ठतम न्यायाधीश के नाम की औपचारिक सिफारिश करते हैं।
CJI गवई की सिफारिश के बाद, सरकार द्वारा जस्टिस कांत को अगले CJI के रूप में नियुक्त करने वाली औपचारिक अधिसूचना जारी करने की उम्मीद है। नामित उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस कांत जल्द ही मौजूदा CJI के साथ प्रमुख प्रशासनिक फैसलों में भाग लेना शुरू कर देंगे।
कौन हैं भावी मुख्य न्यायाधीश?
जस्टिस सूर्य कांत की देश के शीर्ष न्यायिक पद तक की यात्रा हरियाणा के एक साधारण कस्बे हिसार से शुरू हुई। 10 फरवरी, 1962 को जन्मे, उन्होंने 1984 में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से कानून की डिग्री हासिल की। न्यायपालिका में शामिल होने के बाद भी उनकी अकादमिक रुचि बनी रही और उन्होंने 2011 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एलएलएम पूरा किया, जिसमें उन्हें ‘फर्स्ट क्लास फर्स्ट’ मिला।
1984 में हिसार जिला अदालत में अपनी प्रैक्टिस शुरू करने के बाद, वह अगले वर्ष पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट चले गए। जुलाई 2000 में, महज 38 साल की उम्र में, वह हरियाणा के महाधिवक्ता (Advocate General) नियुक्त हुए और यह पद संभालने वाले राज्य के सबसे कम उम्र के व्यक्ति बने।
उनका न्यायिक सफर जनवरी 2004 में शुरू हुआ जब उन्हें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया। बाद में, उन्होंने अक्टूबर 2018 में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य किया, और मई 2019 में उन्हें जस्टिस गवई के साथ ही सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया।
सुप्रीम कोर्ट में अपने छह साल के कार्यकाल में, जस्टिस कांत 300 से अधिक फैसले लिख चुके हैं और कई महत्वपूर्ण संविधान पीठों का हिस्सा रहे हैं। इनमें अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की वैधता, और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक दर्जे से संबंधित ऐतिहासिक मामले शामिल हैं, जिसमें उन्होंने एक उल्लेखनीय असहमतिपूर्ण निर्णय लिखा था।
वह उस पीठ का भी नेतृत्व कर रहे थे जिसने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सीबीआई के शराब नीति मामले में जमानत दी थी, साथ ही यह भी माना कि एजेंसी द्वारा उनकी गिरफ्तारी उचित प्रक्रिया के तहत की गई थी।
जस्टिस कांत वर्तमान में राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (NALSA) के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं। जुलाई में, उन्होंने ‘वीर परिवार सहायता योजना 2025’ का शुभारंभ किया, जो सैनिकों, पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए अपनी तरह की पहली राष्ट्रव्यापी योजना है। उन्होंने इसे “संवैधानिक कर्तव्य की पूर्ति” बताया था।




