भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई ने रविवार को कहा कि न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका का अस्तित्व केवल जनता की सेवा करने और न्याय को तेज़ी से व न्यूनतम लागत पर उपलब्ध कराने के लिए है। वह यहां गुवाहाटी हाईकोर्ट की ईटानगर स्थायी पीठ के नव-निर्मित भवन के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे।
सीजेआई गवई ने कहा, “मैं हमेशा विकेन्द्रीकरण का प्रबल समर्थक रहा हूं। न्याय लोगों के दरवाजे तक पहुंचना चाहिए।” उन्होंने स्पष्ट किया कि न तो अदालतें, न न्यायपालिका, न विधायिका और न ही कार्यपालिका अपने पदाधिकारियों के लिए हैं — इन सबका अस्तित्व केवल जनता को न्याय देने के लिए है।
गुवाहाटी हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के न्याय को अधिक सुलभ बनाने के प्रयासों की सराहना करते हुए, गवई ने अरुणाचल प्रदेश की ‘एकता में विविधता’ की विशेषता को रेखांकित किया, जहां 26 प्रमुख जनजातियां और 100 से अधिक उप-जनजातियां हैं। उन्होंने कहा, “देश को आगे बढ़ना चाहिए, लेकिन हमारी संस्कृति और परंपराओं की कीमत पर नहीं। इन्हें संरक्षित करना संविधान के तहत हमारा मौलिक कर्तव्य है।”

पिछले दो वर्षों में पूर्वोत्तर राज्यों के अपने दौरों को याद करते हुए, गवई ने कहा कि वह यहां की समृद्ध जनजातीय संस्कृति से ‘मंत्रमुग्ध’ हो गए। मणिपुर में राहत शिविरों के हालिया दौरे का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि एक महिला ने उनसे कहा — “आप अपने घर में स्वागत हैं”। उन्होंने कहा, “इसने मेरा दिल छू लिया, क्योंकि हम सबके लिए भारत एक है, और सभी भारतीयों के लिए भारत ही उनका घर है।”
डॉ. भीमराव अंबेडकर का हवाला देते हुए गवई ने कहा, “भारत पहले और भारत ही अंतिम”, और यह भी जोड़ा कि प्रत्येक भारतीय के लिए संविधान सर्वोच्च ग्रंथ है, जो हर धार्मिक ग्रंथ से ऊपर है। उन्होंने नागरिकों से संविधान पढ़ने और उसकी मूल भावना को अपनाने का आग्रह किया। साथ ही उन्होंने संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूचियों के तहत पूर्वोत्तर की जनजातीय संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण के महत्व पर भी बल दिया।
गुवाहाटी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अशुतोष कुमार ने कहा कि नया भवन भौगोलिक बाधाओं से परे न्याय देने के संवैधानिक वादे को फिर से स्थापित करता है। उन्होंने कहा, “जैसे अरुणाचल सबसे पहले सूर्योदय का साक्षी बनता है, वैसे ही यहां सबसे पहले न्याय भी बिना विलंब के पहुंचे।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि न्यायालय भवन केवल अवसंरचना नहीं, बल्कि संवैधानिक आचार संहिता के मंदिर हैं।
135.35 करोड़ रुपये की लागत से बने इस अत्याधुनिक परिसर में पांच न्यायालय कक्ष और आधुनिक सुविधाएं हैं। लोक निर्माण विभाग द्वारा निर्मित इस परियोजना की शुरुआत फरवरी 2021 में हुई थी, जिसकी आधारशिला मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने 2018 में रखी थी।