छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा सम्मिलित थे, ने भारतीय दंड संहिता की धाराओं 406 और 420 के अंतर्गत डॉ. के.वी.के. राव के विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी को यह कहते हुए निरस्त कर दिया कि विवाद विशुद्ध रूप से सिविल प्रकृति का है और इसे आपराधिक मामला बनाना विधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।
पृष्ठभूमि
यह मामला अनिल कुमार गोयल द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत से उत्पन्न हुआ, जिसमें आरोप लगाया गया कि उनकी फर्म एम/एस आर.के. इंजीनियरिंग ने याचिकाकर्ता डॉ. राव की फर्म एम/एस केधारी ट्रेडर्स के साथ “as is where is” आधार पर पावर प्लांट उपकरणों की खरीद हेतु अनुबंध किया था। आरोप के अनुसार, डॉ. राव ने ₹7.5 करोड़ की राशि प्राप्त की, परंतु केवल ₹1.89 करोड़ मूल्य का स्क्रैप उठाने की अनुमति दी और शेष राशि न लौटाते हुए अतिरिक्त धनराशि की मांग की।
यह प्राथमिकी 30 मई 2019 को थाना डीडी नगर, रायपुर में दर्ज की गई थी। डॉ. राव ने क्रिमिनल मिसलेनियस पिटीशन संख्या 402/2022 के माध्यम से प्राथमिकी एवं उससे संबंधित समस्त आपराधिक कार्यवाहियों को रद्द किए जाने की मांग की।
याचिकाकर्ता की दलीलें
डॉ. राव की ओर से अधिवक्ता अमित बक्सी ने यह दलील दी कि विवाद वाणिज्यिक और अनुबंधजन्य प्रकृति का है, जो 14 अगस्त 2018 के समझौते से शासित है। उनके अनुसार, गोयल ने भुगतान की निर्धारित समय-सीमा का पालन नहीं किया — ₹10 करोड़ 15 सितंबर 2018 तक तथा ₹5 करोड़ 15 अक्टूबर 2018 तक भुगतान किया जाना था, जबकि केवल ₹7.5 करोड़ का आंशिक भुगतान किया गया।
इसके परिणामस्वरूप, समझौते की धारा 11(ब) के अंतर्गत टर्मिनेशन नोटिस जारी किया गया। डॉ. राव ने यह भी तर्क दिया कि प्राथमिकी अनुबंध समाप्त होने के ढाई वर्ष बाद दर्ज की गई, जब तक किसी प्रकार की सिविल कार्यवाही नहीं की गई थी, और यह केवल धनवापसी के दबाव हेतु दर्ज की गई प्रतीत होती है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि समझौते में मध्यस्थता और क्षेत्राधिकार संबंधी प्रावधान स्पष्ट रूप से उल्लेखित हैं, जिसके अनुसार किसी विवाद के लिए हैदराबाद या गोवा में विधिक कार्यवाही की जानी थी, न कि रायपुर में। अतः मामला आपराधिक विश्वासभंग या धोखाधड़ी के दायरे में नहीं आता।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
खंडपीठ ने दोहराया कि आपराधिक कार्यवाही केवल उन्हीं मामलों में की जा सकती है जहाँ प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध परिलक्षित हो। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Rikhab Birani & Anr. v. State of U.P. & Anr., 2025 SCC OnLine SC 823 तथा Sharif Ahmed v. State of U.P., 2024 SCC OnLine SC 726 का संदर्भ देते हुए अदालत ने कहा कि केवल अनुबंध के उल्लंघन या भुगतान में चूक से स्वतः आपराधिक अपराध सिद्ध नहीं होते, जब तक कि अनुबंध के समय धोखाधड़ी या कपट की मंशा सिद्ध न हो।
साथ ही, Vinod Natesan v. State of Kerala, (2019) 2 SCC 401 और Sachin Garg v. State of U.P., 2024 SCC OnLine SC 82 का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि सिविल विवाद को चुनिंदा दंडात्मक धाराओं का सहारा लेकर आपराधिक रंग देना कानूनन स्वीकार्य नहीं है।
न्यायालय ने स्पष्ट टिप्पणी की:
“जब विनियमों के अंतर्गत मध्यस्थता का व्यापक उपाय उपलब्ध है, उस स्थिति में किसी सिविल विवाद को आपराधिक विवाद में परिवर्तित करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”
अंतिम निर्णय
न्यायालय ने माना कि प्रकरण पूरी तरह से अनुबंधजन्य और सिविल प्रकृति का है, तथा आपराधिक कार्यवाही को जारी रखने से केवल अनावश्यक उत्पीड़न होगा। अतः प्राथमिकी क्रमांक 0187/2019, थाना डीडी नगर, रायपुर में दर्ज, तथा उससे संबंधित समस्त कार्यवाहियाँ रद्द कर दी गईं।
मामले का शीर्षक: क्रिमिनल एम.पी. संख्या 402/2022, डॉ. के.वी.के. राव बनाम राज्य छत्तीसगढ़ व अन्य