सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में एक संपत्ति विवाद से जुड़े आपराधिक एफआईआर को “कानून की प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग” करार देते हुए रद्द कर दिया। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए शिकायतकर्ता पर ₹10,00,000 का उदाहरणीय खर्च (exemplary cost) लगाया। यह मामला एक सेवानिवृत्त आर्मी मेजर जनरल की पत्नी और बेटी को “पूरी तरह झूठे और गढ़े हुए आपराधिक मामले” में फंसाने से जुड़ा था।
मामले की पृष्ठभूमि
70 वर्षीय माला चौधरी और उनकी बेटी पुट्टगुंटा रेवथी चौधरी ने तेलंगाना हाईकोर्ट के 28 अप्रैल 2023 के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी। हाईकोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी जिसमें उन्होंने गाचीबौली पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर संख्या 771/2020 (धारा 406 और 420 आईपीसी) को रद्द करने की मांग की थी।
विवाद गाचीबौली, तेलंगाना में 500 वर्ग गज के भूखंड से जुड़ा है, जो माला चौधरी के नाम पर था। अपीलकर्ताओं के अनुसार, मेजर जनरल पीएसके चौधरी के निधन के बाद 5 अक्टूबर 2020 को उन्होंने शिकायतकर्ता (प्रतिवादी संख्या 2) के साथ मौखिक रूप से जमीन बेचने का करार किया था। तय हुआ था कि ₹5.75 करोड़ 7 अक्टूबर 2020 तक जमा कराने पर सौदा पूरा होगा, ₹6.50 करोड़ 7 नवंबर 2020 तक और उसके बाद ₹7.50 करोड़ देना होगा। शिकायतकर्ता ने 16 नवंबर 2020 तक केवल ₹4.05 करोड़ बैंक खाते में जमा कराए लेकिन शेष राशि नहीं दी।

दूसरी ओर, शिकायतकर्ता ने 14 दिसंबर 2020 को दर्ज एफआईआर में आरोप लगाया कि अपीलकर्ताओं ने गाचीबौली का प्लॉट और दिल्ली का फार्महाउस ₹5 करोड़ में बेचने पर सहमति दी थी, जिसमें ₹75 लाख नकद और ₹4.05 करोड़ बैंक के माध्यम से दिया गया। आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ताओं ने पैसा लेने के बाद रजिस्ट्री से इनकार कर दिया और धमकियां दीं।
एफआईआर के बाद, उम्र और स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद माला चौधरी को 13 जनवरी 2021 को गिरफ्तार किया गया और वे आठ दिन हिरासत में रहीं। इसके बाद अपीलकर्ताओं ने सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एफआईआर रद्द करने की याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी, जिसे बिना मेरिट पर विचार किए खारिज कर दिया गया, जिससे सुप्रीम कोर्ट में अपील करनी पड़ी।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ताओं की ओर से वकील वंशजा शुक्ला ने तर्क दिया कि विवाद पूरी तरह सिविल प्रकृति का है, और शिकायतकर्ता, जो एक प्रभावशाली बिल्डर (संध्या कंस्ट्रक्शंस एंड एस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड) का एजेंट है, ने अपने प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए झूठा आपराधिक मामला दर्ज कराया। उन्होंने यह भी बताया कि शिकायतकर्ता पहले ही विशिष्ट क्रियान्वयन के लिए सिविल मुकदमा (ओरिजिनल सूट संख्या 95/2021) दायर कर चुका है और एफआईआर के आरोप सिविल सूट की दलीलों से मेल नहीं खाते, खासकर संपत्तियों और कीमत के संदर्भ में। अपीलकर्ताओं ने बैंकिंग चैनलों के माध्यम से प्राप्त ₹4.05 करोड़ लौटाने की पेशकश की।
शिकायतकर्ता और राज्य तेलंगाना की ओर से दलील दी गई कि अपीलकर्ताओं ने शुरुआत से ही बेईमानी की मंशा से शिकायतकर्ता को पैसे देने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि एफआईआर में उल्लिखित अपराधों के आवश्यक तत्व मौजूद हैं और कार्यवाही रद्द करने का विरोध किया। उन्होंने मूल राशि लौटाने के प्रस्ताव को अस्वीकार कर ब्याज की मांग की।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की कार्यवाही की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि उसका रवैया “पूरी तरह से सतही और खानापूर्ति वाला” था और उसका आदेश “अत्यंत संक्षिप्त” था। कोर्ट ने कहा, “हम पाते हैं कि अपीलकर्ताओं द्वारा दायर याचिका को मेरिट पर विचार किए बिना हाईकोर्ट द्वारा सरसरी ढंग से निपटाना पूरी तरह सतही और खानापूर्ति भरा था।”
कोर्ट ने इसे “आपराधिक न्याय प्रणाली के दुरुपयोग का क्लासिक मामला” बताया। कोर्ट ने एफआईआर और सिविल मुकदमे के कथनों में “बड़ा अंतर” पाया और कहा कि शिकायतकर्ता ने “तथ्यों में हेरफेर और तोड़-मरोड़” की।
निर्णय में कहा गया, “एफआईआर को मात्र पढ़ने से स्पष्ट होता है कि पंजीकृत बिक्री विलेख के निष्पादन में विफलता जैसे साधारण सिविल विवाद को आपराधिक मामले का रूप दे दिया गया है, जो आपराधिक तंत्र के दुरुपयोग का उदाहरण है।”
कोर्ट ने 70 वर्षीय अपीलकर्ता की गिरफ्तारी पर नाराजगी जताते हुए कहा, “यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि शिकायतकर्ता, जो कंपनी का एजेंट है, उसका पुलिस पर कितना प्रभाव है।”
कोर्ट ने कहा, “हम मानते हैं कि शिकायतकर्ता को ब्याज देने के बजाय, यह उपयुक्त मामला है जिसमें सिविल प्रकृति के मामले में आपराधिक कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए उसे उदाहरणीय लागत से दंडित किया जाना चाहिए।”
अंतिम आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर और उससे संबंधित सभी कार्यवाहियां रद्द कर दीं। कोर्ट ने शिकायतकर्ता पर ₹10,00,000 का खर्च लगाने का आदेश दिया, जो 30 दिनों के भीतर अपीलकर्ताओं को देना होगा। कोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया कि जब भी अपीलकर्ता हैदराबाद में अपनी संपत्ति का प्रबंधन करने जाएं, उन्हें सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए।