छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि किसी बाल गवाह की गवाही विश्वसनीय प्रतीत होती है और उसकी पुष्टि अन्य साक्ष्यों से होती है, तो उसे केवल उम्र के आधार पर अस्वीकार नहीं किया जा सकता। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा एवं न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा की खंडपीठ ने हत्या के एक मामले में दोषसिद्ध दो अभियुक्तों की अपीलें खारिज करते हुए यह निर्णय दिया।
मामला पृष्ठभूमि
यह मामला गणेश राम साहू की हत्या से संबंधित है, जिनका शव 30 मार्च 2023 को सोन नदी से बरामद हुआ था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, मृतक की पत्नी चनेश्वरी साहू और प्रमोद कुमार साहू के बीच अवैध संबंध थे। मृतक ने इन्हें आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था, जिसके बाद दोनों ने मिलकर उसकी हत्या कर दी और शव को नदी में फेंक दिया।
सेशन ट्रायल संख्या 32/2023 में, द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, सक्ती (जांजगीर-चांपा) ने दोनों अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302/34 और 201/34 के तहत दोषी ठहराया। अभियुक्ता चनेश्वरी साहू को धारा 203 IPC (झूठी सूचना देना) के तहत भी दोषी पाया गया।
बाल गवाह की भूमिका
मृतक की 8 वर्षीय पुत्री मधुकुमारी साहू (PW-5) इस मामले में मुख्य प्रत्यक्षदर्शी बनी। उसने न्यायालय में कहा कि घटना की रात उसने अपनी मां और प्रमोद को अपने पिता के साथ मारपीट करते देखा। उसने गवाही में कहा:
“प्रमोद पापा के सीने पर चढ़ गया और मम्मी गमछे से पापा की गरदन खींच रही थी। मैं डर गई और सो गई।”
यद्यपि उसने पुलिस को दिए गए पूर्व बयान (Ex.D/4) में इस घटना का उल्लेख नहीं किया था, परंतु न्यायालय ने यह स्वीकार किया कि उसने यह चुप्पी अपनी मां के डर के कारण रखी। निर्णय में कहा गया:
“उसने बताया कि उसकी मां ने धमकी दी थी कि अगर वह किसी को बताएगी तो उसे बहुत मारेगी… इसलिए वह डर के कारण किसी को नहीं बताई।”
चिकित्सकीय साक्ष्य से पुष्टि
डॉ. सुरेंद्र कुमार तंडन (PW-11) ने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया कि गणेश राम साहू की मृत्यु गला घोंटने से हुई थी और यह हत्या थी। शरीर के गल जाने के कारण गले पर बाह्य निशान नहीं दिखे, परंतु अंदरूनी सूजन और श्वास नली में रक्तस्राव देखा गया।
इसके अतिरिक्त, एक भूरे रंग का ऊनी गमछा अभियुक्त के घर से बरामद हुआ, जिसे हत्या का हथियार बताया गया और जो बाल गवाह की गवाही से मेल खाता है।
बाल गवाह की गवाही पर न्यायालय की टिप्पणी
न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 और Panchhi v. State of U.P. एवं State of Karnataka v. Shantappa Galapuji जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए कहा:
“बाल गवाह की गवाही को केवल इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि वह बच्चा है… यदि वह गवाही विश्वसनीय हो, तो उसे स्वीकार किया जा सकता है।”
पीठ ने यह पाया कि मधुकुमारी साहू (PW-5) की गवाही दोषरहित है और अन्य साक्ष्यों से पुष्ट होती है, अतः उसे खारिज नहीं किया जा सकता।
अंतिम निष्कर्ष
अदालत ने कहा:
“वर्तमान दोनों अपीलों के समग्र तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए, हमें यह प्रतीत होता है कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियुक्तगण को दोषसिद्ध करना पूर्णतः उचित है।”
न्यायालय ने अभियुक्तों की अपीलों को अपूर्णतः निराधार पाते हुए खारिज कर दिया और निचली अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा।