परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला ने संदेह से परे अपराध सिद्ध किया: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हत्या के दोषसिद्धि को बरकरार रखा

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में सोमडू वेत्ती की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा, जिसे बस्तर जिले में सुखो वेत्ती की हत्या का दोषी पाया गया था। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने अपील को खारिज करते हुए परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की मजबूत श्रृंखला के आधार पर निचली अदालत के फैसले की पुष्टि की।

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला 25 जून, 2020 की घटना से संबंधित है, जब जमीन को लेकर हुए विवाद में आरोपी सोमडू वेत्ती, उसका फरार भतीजा तुलाराम वेत्ती और मृतक सुखो वेत्ती शामिल थे। प्रारंभिक विवाद में गाली-गलौज और मामूली मारपीट हुई, जो कि उस रात बाद में घातक हमले में बदल गई। अभियोजन पक्ष के अनुसार, दोनों आरोपियों ने सुखो पर हमला किया, जिसमें तुलाराम ने उसका गला दबाया और सोमडू ने उसके पैर पकड़े, जिससे उसकी मौत हो गई। इसके बाद दोनों ने उसके शव को मामडपाल पुजारी पारा नहर के पास दफनाकर अपराध को छिपाने की कोशिश की।

कानूनी मुद्दे और तर्क:

प्रतिवादी के वकील, श्री अशुतोष शुक्ल ने तर्क दिया कि मामला केवल परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित है और सोमडू वेत्ती को अपराध से जोड़ने के लिए कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है। शुक्ल ने गवाहों के बयानों में असंगतियों का हवाला दिया और अभियोजन पक्ष द्वारा हत्या के पीछे कोई प्रेरणा स्थापित करने में विफलता का दावा किया, जिससे निचली अदालत के फैसले की वैधता पर सवाल उठाया गया।

वहीं, राज्य की ओर से उपमहाधिवक्ता श्री शशांक ठाकुर ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष के सबूत, जिसमें आरोपी का स्वीकारोक्ति, हथियार (खुरपा) की बरामदगी और ग्रामीणों के बयान शामिल हैं, एक सुसंगत और अटूट साक्ष्यों की श्रृंखला प्रदान करते हैं, जो दोषसिद्धि की ओर ले जाती है। राज्य ने दावा किया कि निचली अदालत का निष्कर्ष सही और वैध था और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

न्यायालय के अवलोकन:

हाईकोर्ट ने साक्ष्यों की गहन समीक्षा की और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित मामलों के लिए स्थापित कानूनी सिद्धांतों पर जोर दिया। न्यायालय ने सी. चेंगा रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और शरद बिर्धीचंद सरडा बनाम महाराष्ट्र राज्य जैसे मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित दोषसिद्धि के लिए घटनाओं की श्रृंखला इतनी पूर्ण होनी चाहिए कि यह केवल आरोपी की दोषसिद्धि की ओर ही इशारा करे।

पीठ ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान दिया:

– डॉ. महेंद्र प्रसाद (PW-14) द्वारा किए गए पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुष्टि की कि सुखो वेत्ती की मौत गला दबाने से हुई थी, जिससे हत्या का स्वभाव स्थापित हुआ।

– स्वीकारोक्ति पंचनामा (Ex.P-7) और अपराध में इस्तेमाल किए गए खुरपा की बरामदगी आरोपी को हत्या से जोड़ने में महत्वपूर्ण साबित हुई।

– मौत के कारणों के बारे में आरोपी द्वारा कोई वैकल्पिक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया, जिसने अभियोजन पक्ष के मामले को और मजबूत किया।

न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष ने अपने मामले को संदेह से परे साबित कर दिया है, इस बात पर जोर देते हुए कहा कि “साक्ष्यों की श्रृंखला इतनी पूर्ण होनी चाहिए कि आरोपी की निर्दोषता के साथ कोई संगत निष्कर्ष निकालने का कोई उचित आधार न हो।”

फैसला:

न्यायालय ने अपील को खारिज कर दिया और बस्तर जिला, जगदलपुर के प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा सत्र परीक्षण संख्या 25/2020 में सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा। न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि अपीलकर्ता, जो वर्तमान में जेल में है, उसे निचली अदालत द्वारा निर्धारित सजा को पूरा करना जारी रखना चाहिए।

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मामले का विवरण:

– मामला शीर्षक: सोमडू वेत्ती बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

– मामला संख्या: CRA No. 266 of 2024

– पीठ: मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु

– अपीलकर्ता के वकील: श्री अशुतोष शुक्ल

– प्रत्युत्तरकर्ता के वकील: श्री शशांक ठाकुर, उपमहाधिवक्ता

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