छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक प्रमुख सरकारी इमारत में लिफ्टों के काम न करने के कारण दिव्यांग कर्मचारियों और आम जनता को हो रही भारी असुविधा पर एक समाचार पत्र की रिपोर्ट का स्वतः संज्ञान (suo moto cognizance) लिया है। कोर्ट ने मामले को “गंभीर” मानते हुए लोक निर्माण विभाग (PWD) के सचिव को इस पर व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है।
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने “दैनिक भास्कर, बिलासपुर भास्कर” में 08.11.2025 को प्रकाशित एक खबर के आधार पर यह जनहित याचिका (WPPIL No. 99 of 2025) शुरू की। कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह खबर “अत्यंत चिंताजनक स्थिति” (deeply concerning state of affairs) को दर्शाती है।
पृष्ठभूमि
हाईकोर्ट ने “कंपोजिट बिल्डिंग की लिफ्ट 6 महीने से खराब, दिव्यांग मुश्किल से चढ़ रहे सीढ़ियां… क्या सिस्टम बैसाखी पर है?” शीर्षक वाली खबर का न्यायिक संज्ञान लिया।
कोर्ट के आदेश में समाचार रिपोर्ट के तथ्यों को सारांशित किया गया, जिसमें कहा गया है कि 22 विभिन्न सरकारी विभागों वाले नए कम्पोजिट गवर्नमेंट बिल्डिंग में एलिवेटर/लिफ्ट “पिछले छह महीने से खराब” है। यह भी नोट किया गया कि एक नई लिफ्ट का निर्माण कार्य चल रहा है, लेकिन वह भी “कथित तौर पर ग्रेनाइट फिटिंग जैसे इंस्टॉलेशन कार्य में देरी के कारण” चालू नहीं हो पाई है।
आदेश में बताया गया कि तीन मंजिला इमारत, जिसमें कुल 72 सीढ़ियां हैं, वर्तमान में बिना किसी चालू लिफ्ट के है। इस भवन में प्रतिदिन लगभग 250 सरकारी अधिकारी और 250 नागरिक अपने आवश्यक कार्यों के लिए आते हैं।
कोर्ट द्वारा समाचार आइटम से उजागर किया गया एक “विशेष रूप से परेशान करने वाला पहलू” (particularly distressing aspect) यह था कि इस इमारत में चार दिव्यांग कर्मचारी तैनात हैं: संतोषी ध्रुव (श्रम निरीक्षक), दीपक तिवारी (योजना एवं सांख्यिकी विभाग), और के.एस. पैकरा व एस. यादव (नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग)। आदेश में कहा गया है कि लिफ्ट खराब होने के कारण इन कर्मचारियों को “रोजाना सीढ़ियां चढ़ने के लिए मजबूर” होना पड़ता है और इसमें बैसाखी का उपयोग करने वाली श्रम निरीक्षक संतोषी ध्रुव के “गंभीर शारीरिक तनाव” (severe physical strain) का भी वर्णन किया गया।
कोर्ट ने यह भी देखा कि समाचार रिपोर्ट ने सरकारी नियमों की “पूर्ण उपेक्षा” (complete disregard) की ओर इशारा किया, जो कार्यात्मक लिफ्ट, रैंप और व्हीलचेयर सुविधाओं को अनिवार्य बनाते हैं, और भूतल पर कोई अस्थायी व्यवस्था करने में विफलता को भी नोट किया।
इसके अलावा, फैसले में दर्ज किया गया कि रिपोर्ट में 2013 में लगभग 8 करोड़ रुपये की लागत से बने भवन में पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी का भी आरोप लगाया गया है, जिससे कर्मचारियों को पानी खरीदने के लिए पैसे जमा करने पड़ रहे हैं।
दलीलें और कोर्ट का विश्लेषण
राज्य/प्रतिवादियों की ओर से उपस्थित, विद्वान महाधिवक्ता (Advocate General) श्री प्रफुल्ल एन. भरत ने, विद्वान अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री यशवंत सिंह ठाकुर की सहायता से, “संबंधित अधिकारियों से विस्तृत निर्देश प्राप्त करने” के लिए समय मांगा।
महाधिवक्ता ने कहा कि इस मामले में “दिव्यांग सरकारी कर्मचारियों, गर्भवती स्टाफ सदस्यों और आम जनता द्वारा सामना की जा रही पहुंच संबंधी चुनौतियां” (accessibility challenges) और बुनियादी सुविधाओं की कमी के आरोप शामिल हैं।
हाईकोर्ट ने “समाचार पत्र के लेख में उजागर की गई स्थिति की गंभीरता” (gravity of the situation) को ध्यान में रखते हुए, अनुरोधित समय प्रदान किया।
पीठ ने टिप्पणी की, “उक्त समाचार रिपोर्ट में उजागर किए गए गंभीर सार्वजनिक महत्व के मुद्दों (grave public importance) पर विचार करते हुए, यह कोर्ट संबंधित प्राधिकारी से व्यक्तिगत प्रतिक्रिया (personal response) मांगना उचित समझता है।”
कोर्ट का निर्णय
हाईकोर्ट ने सचिव, लोक निर्माण विभाग, महानदी भवन, अटल नगर, नवा रायपुर को अपना “व्यक्तिगत हलफनामा” (personal affidavit) दाखिल करने का निर्देश दिया।
इस हलफनामे में निम्नलिखित बातों को “स्पष्ट रूप से दर्शाया” (clearly indicating) जाना चाहिए:
- मौजूदा लिफ्ट की मरम्मत की वर्तमान स्थिति।
- नई लिफ्ट को चालू करने में लंबी देरी के कारण।
- वह समय-सीमा जिसके भीतर दोनों लिफ्टों को चालू कर दिया जाएगा।
- कम्पोजिट गवर्नमेंट बिल्डिंग के भीतर पहुंच और बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रस्तावित कदम।
कोर्ट ने हलफनामा अगली सुनवाई की तारीख से पहले दाखिल करने का आदेश दिया और मामले को 13.11.2025 को सूचीबद्ध किया।




