छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल शामिल थे, ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि एनडीपीएस नियम 10 और 11 के अनुपालन में कमी और एनडीपीएस अधिनियम की धारा 52-ए का पालन करने में देरी से मुकदमा अमान्य नहीं होता, यदि प्रतिबंधित मादक पदार्थ (गांजा) की बरामदगी स्पष्ट रूप से सिद्ध हो।
हाईकोर्ट ने क्रिमिनल अपील नंबर 217/2022 में यह फैसला सुनाते हुए शाहबाज अहमद शेख की सजा को बरकरार रखा। उसे 222.8 किलोग्राम गांजा की अवैध तस्करी के लिए दोषी ठहराया गया था और 20 साल के कठोर कारावास तथा ₹2,00,000 के जुर्माने की सजा दी गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 5 जनवरी 2020 का है, जब एएसआई एच.एन. ताम्रकार के नेतृत्व में पुलिस टीम पामगढ़, जांजगीर-चांपा में वाहनों की नियमित जांच कर रही थी। ओडिशा नंबर (OD-02BC-7409) की स्कॉर्पियो, जो शिवरीनारायण से आ रही थी, को रुकने का इशारा किया गया, लेकिन चालक ने वाहन रोकने के बजाय गति बढ़ा दी, जिससे संदेह हुआ।
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पुलिस ने वाहन का पीछा किया और भारतीय स्टेट बैंक, पामगढ़ शाखा के सामने उसे रोक लिया। तलाशी लेने पर 217 पैकेटों में 222.8 किलोग्राम गांजा मिला, जिसे काले कंबल के नीचे छुपाया गया था।
वाहन चालक शाहबाज अहमद शेख को मौके पर गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि उसका सहयात्री अजय सिंह बघेल फरार हो गया। विशेष न्यायाधीश (एनडीपीएस अधिनियम), जांजगीर-चांपा ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 20(b)(ii)(C) के तहत आरोपी को दोषी ठहराते हुए 20 साल की कठोर सजा और ₹2,00,000 का जुर्माना लगाया।
मुख्य कानूनी मुद्दे
अपील में निम्नलिखित कानूनी मुद्दे उठाए गए:
- एनडीपीएस नियम 10 और 11 का पालन न होना:
- बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि मादक पदार्थ को जब्त करने और सील करने की प्रक्रिया सही ढंग से नहीं अपनाई गई, जिससे बरामदगी संदिग्ध हो जाती है।
- धारा 52-ए के अनुपालन में देरी:
- आरोपी ने दावा किया कि जब्त किए गए मादक पदार्थ को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने और उसके नमूने लेने में अनुचित देरी हुई, जिससे अभियोजन का मामला कमजोर हो जाता है।
- एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 का उल्लंघन:
- बचाव पक्ष का तर्क था कि आरोपी को यह अधिकार नहीं दिया गया कि वह मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी के सामने तलाशी देने का अनुरोध कर सके, जिससे पूरी तलाशी अवैध हो जाती है।
- धारा 54 के तहत अपराध की धारणा:
- अभियोजन पक्ष ने धारा 54 के तहत यह सिद्ध करने की कोशिश की कि जब कोई व्यक्ति इतनी बड़ी मात्रा में प्रतिबंधित मादक पदार्थ के साथ पकड़ा जाता है, तो यह मान लिया जाता है कि वह अपराध में लिप्त है, जब तक कि वह अपनी बेगुनाही साबित न कर दे।
कोर्ट के महत्वपूर्ण अवलोकन
- एनडीपीएस नियम 10 और 11 के अनुपालन में कमी पर:
- हाईकोर्ट ने कहा कि यदि ठोस साक्ष्य मौजूद हैं, तो केवल प्रक्रियात्मक त्रुटियों के आधार पर मुकदमा अमान्य नहीं किया जा सकता।
- सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा: “प्रक्रियात्मक सुरक्षा यह सुनिश्चित करने के लिए होती है कि मुकदमा निष्पक्ष हो, लेकिन यदि अपराध साबित हो जाता है, तो केवल प्रक्रियात्मक चूक से अभियोजन को निरस्त नहीं किया जा सकता।”
- धारा 52-ए के अनुपालन में देरी पर:
- कोर्ट ने अभियुक्त के इस तर्क को खारिज कर दिया कि मजिस्ट्रेट के समक्ष बरामदगी को प्रस्तुत करने में देरी हुई, जिससे मुकदमा अमान्य हो गया।
- सुप्रीम कोर्ट के ‘भारत आंबले बनाम छत्तीसगढ़ राज्य’ मामले में दिए गए फैसले के आधार पर हाईकोर्ट ने कहा: “यदि बरामदगी और जब्ती की प्रक्रिया पूरी तरह प्रमाणित है और चेन ऑफ कस्टडी सुरक्षित है, तो धारा 52-ए में देरी से मुकदमा अस्वीकार्य नहीं होता।”
- धारा 50 के उल्लंघन के दावे पर:
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 50 केवल व्यक्तिगत तलाशी के मामलों में लागू होती है, वाहन की तलाशी पर नहीं।
- कोर्ट ने कहा: “जब प्रतिबंधित मादक पदार्थ किसी वाहन से बरामद किया जाता है, तो धारा 50 के तहत मजिस्ट्रेट या राजपत्रित अधिकारी की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती।”
- धारा 54 के तहत अपराध की धारणा पर:
- कोर्ट ने कहा कि जब कोई व्यक्ति व्यावसायिक मात्रा (222.8 किलोग्राम) में मादक पदार्थ के साथ पकड़ा जाता है, तो बोझ आरोपी पर होता है कि वह साबित करे कि वह इसे वैध रूप से रख रहा था।
- कोर्ट ने कहा: “आरोपी ने कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण नहीं दिया, इसलिए अभियोजन पक्ष की धारणा सही मानी गई।”
कोर्ट का निर्णय
सभी कानूनी और तथ्यात्मक पहलुओं का विश्लेषण करने के बाद, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया और विशेष अदालत द्वारा दी गई 20 साल की कठोर कैद और ₹2,00,000 के जुर्माने की सजा को बरकरार रखा।
कोर्ट ने दोहराया कि यदि मादक पदार्थ की बरामदगी, जब्ती और जांच प्रक्रियात्मक रूप से सही है और पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं, तो केवल नियमों के उल्लंघन या प्रक्रिया में देरी के आधार पर आरोपी को राहत नहीं दी जा सकती।