छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि सरकारी पट्टे (लीज़) का नवीनीकरण कोई स्वचालित या निहित अधिकार नहीं है और पट्टे की शर्तों के उल्लंघन के आधार पर इसे अस्वीकार किया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायाधीश बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने ‘क्रिश्चियन वूमन्स बोर्ड ऑफ मिशन’ द्वारा दायर एक रिट अपील को खारिज कर दिया। इस निर्णय के साथ, खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें मिशन की पट्टा नवीनीकरण न करने और बिलासपुर स्थित भूमि से बेदखल करने की कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी गई थी।
न्यायालय [2025:CGHC:54533-DB] ने माना कि अपीलकर्ता अपना ‘लोकस स्टैंडी’ (मुकदमा दायर करने का अधिकार) स्थापित करने में विफल रहे और “पट्टे के उल्लंघन, वाणिज्यिक शोषण, बिक्री और सब-लेटिंग के स्वीकृत तथ्य” राज्य सरकार द्वारा पट्टे का नवीनीकरण करने से इनकार करने को उचित ठहराते हैं। यह पट्टा मूल रूप से धर्मार्थ और धार्मिक उद्देश्यों के लिए प्रदान किया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला खंडपीठ के समक्ष एक अंतर्-न्यायालयीन अपील (WA No. 715 of 2025) के रूप में आया, जो 18.07.2025 के एकल न्यायाधीश के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। मूल रिट याचिका (WPC No. 977 of 2025) अपीलकर्ताओं (क्रिश्चियन वूमन्स बोर्ड ऑफ मिशन और इसके निदेशक श्री नितिन लॉरेंस) द्वारा दायर की गई थी। उनका दावा था कि वे “प्रतिवादी-राज्य अधिकारियों की कथित मनमानी और असंवैधानिक कार्रवाइयों से व्यथित थे, जो उन्हें एक पट्टे की संपत्ति (प्लॉट नंबर 20 और 21, चटापारा, बिलासपुर) से बेदखल करना चाहते थे।”
अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि वे “धार्मिक, शैक्षिक और धर्मार्थ उद्देश्यों” के लिए एक सदी से अधिक समय से इस भूमि पर काबिज थे और उन्होंने जैकमैन मेमोरियल मिशन अस्पताल जैसी संस्थाओं की स्थापना की थी। याचिका के अनुसार, यह भूमि मूल रूप से 1925 में पट्टे पर दी गई थी और 1994 तक नियमित रूप से इसका नवीनीकरण किया गया था। अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि पट्टा विलेख (lease deed) की धारा 8 में क्रमिक तीस-वर्षीय शर्तों के लिए नवीनीकरण को अनिवार्य किया गया था। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों ने पट्टे का नवीनीकरण करने के बजाय, “स्मार्ट सिटी विकास” जैसी अन्य परियोजनाओं के लिए भूमि को स्थानांतरित करने के लिए कदम उठाए और 08.01.2025 को “मिशन संरचनाओं का बड़े पैमाने पर विध्वंस” किया।
एकल न्यायाधीश ने इस रिट याचिका को खारिज कर दिया था, जिसके बाद अपीलकर्ताओं ने वर्तमान अपील दायर की।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ताओं के तर्क: अपीलकर्ताओं की ओर से पेश वकील श्री महमूद प्राचा ने तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश का आदेश “तथ्यों और कानून के दृष्टिकोण से स्पष्ट रूप से गलत” था। उन्होंने दलील दी कि भूमि मूल रूप से 19.11.1891 के बिक्री विलेख (sale deed) के माध्यम से खरीदी गई थी, और 1994 तक नवीनीकृत पट्टे में एक अनिवार्य नवीनीकरण खंड शामिल था।
प्राथमिक तर्क यह था कि अपीलकर्ताओं ने “छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 158 (3) के तहत भूमिस्वामी अधिकार” प्राप्त कर लिए थे, जो उनके अनुसार, बेदखली को अवैध बनाता था। श्री प्राचा ने यह भी तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश ने 1971 की भूमि की बिक्री पर गलत तरीके से भरोसा किया, जिसे उनके अनुसार, “मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा प्रथम अपील संख्या 86/1980 में रद्द कर दिया गया था।” उन्होंने “भेदभावपूर्ण व्यवहार” का भी आरोप लगाया और दावा किया कि निकटवर्ती भूखंडों के पट्टों का 2043 तक नवीनीकरण किया गया था।
प्रतिवादियों (राज्य) के तर्क: राज्य की ओर से पेश महाधिवक्ता श्री प्रफुल्ल एन. भारत ने एकल न्यायाधीश के आदेश का पुरजोर समर्थन किया। उन्होंने तर्क दिया कि यह अपील “शुरुआती दहलीज पर ही लोकस स्टैंडी के अभाव में विफल” हो गई, क्योंकि अपीलकर्ता भूमि में अपनी निरंतर कानूनी क्षमता या विशेष हित को प्रदर्शित करने में विफल रहे थे।
श्री भारत ने दलील दी कि भूमि का उपयोग “पूरी तरह से धर्मार्थ गतिविधियों तक सीमित नहीं था।” उन्होंने कहा कि साक्ष्यों से पता चलता है कि कुछ हिस्सों का उपयोग “वाणिज्यिक उद्देश्यों जैसे चौपाटी, गैरेज, वूलन मार्केट और अन्य वाणिज्यिक गतिविधियों” के लिए किया जा रहा था, साथ ही निजी मेडिकल क्लीनिक और एक नर्सिंग कॉलेज भी चल रहे थे। उन्होंने तर्क दिया कि यह “वाणिज्यीकरण,” “पट्टे की शर्तों का स्पष्ट उल्लंघन” है।
राज्य ने तर्क दिया कि धारा 158(3) के तहत भूमिस्वामी अधिकारों का दावा “इस मामले के तथ्यों पर गलत और अनुपयुक्त” था। महाधिवक्ता ने असिस्टेंट जनरल मैनेजर, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया एवं अन्य बनाम तान्या एनर्जी एंटरप्राइज (AIR 2025 SC 4379) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया, और तर्क दिया कि एक अदालत किसी प्रशासनिक आदेश को बरकरार रख सकती है, यदि रिकॉर्ड में अन्य वैध और कानूनी रूप से टिकाऊ आधार मौजूद हों, भले ही वे निर्णय के मूल कारण न हों।
न्यायालय का विश्लेषण और निष्कर्ष
दोनों पक्षों को सुनने के बाद, खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के निष्कर्षों पर सहमति व्यक्त की। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा द्वारा लिखे गए फैसले में उल्लेख किया गया कि एकल न्यायाधीश ने अधिकारियों के आदेशों को “संपूर्ण और विवेकपूर्ण” पाया था और याचिकाकर्ता का आचरण “पट्टे का घोर दुरुपयोग” दर्शाता है, जो उसे साम्यिक (equitable) राहत से वंचित करता है।
अपने स्वयं के विश्लेषण में, खंडपीठ ने कई प्रमुख निष्कर्ष दिए:
- पट्टे की शर्तों का उल्लंघन: न्यायालय ने पाया कि “तथ्यों की स्वीकृत स्थिति” इस बात की पुष्टि करती है कि “पट्टे की भूमि के बड़े हिस्से या तो बेचे गए हैं या निजी व्यक्तियों को हस्तांतरित किए गए हैं, या उनका उपयोग चौपाटी, गैरेज, वूलन मार्केट और अन्य लाभ-उन्मुख उद्यमों जैसी वाणिज्यिक गतिविधियों के लिए किया गया है।” न्यायालय ने माना कि यह उन “पट्टों की वाचाओं का स्पष्ट उल्लंघन” है जो “विशेष रूप से धर्मार्थ उद्देश्यों” के लिए थे। (पैरा 26)
- भूमिस्वामी अधिकारों की दलील खारिज: पीठ ने माना कि भूमिस्वामी अधिकार प्राप्त करने के अपीलकर्ताओं के दावे को “एकल न्यायाधीश द्वारा सही ही खारिज कर दिया गया था, क्योंकि उक्त प्रावधान धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए पट्टे पर दी गई नजूल भूमि पर लागू नहीं होता है।” (पैरा 27)
- नवीनीकरण कोई अधिकार नहीं: न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा, “यह सुस्थापित है कि पट्टे का नवीनीकरण पट्टेदार का अंतर्निहित अधिकार नहीं है, बल्कि यह पट्टादाता का एक विवेकाधीन कार्य है, जो पट्टे की शर्तों के पूर्तिकरण और सार्वजनिक उद्देश्य के अनुपालन पर निर्भर करता है।” (पैरा 31) पीठ ने कहा कि “धर्मार्थ अनुदान की शर्तों का उल्लंघन करने” वाले अपीलकर्ता “संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत साम्यता या किसी रियायत का दावा नहीं कर सकते।”
- लोकस स्टैंडी का अभाव: फैसले का एक केंद्रीय निष्कर्ष अपीलकर्ताओं की अपनी कानूनी स्थिति को साबित करने में विफलता थी। न्यायालय ने माना कि अपीलकर्ता “इस न्यायालय के समक्ष यह प्रदर्शित करने में विफल रहे कि अपीलकर्ताओं/रिट याचिकाकर्ताओं के पास वर्तमान रिट अपील को बनाए रखने के लिए कोई लोकस स्टैंडी है।” (पैरा 33) फैसले में विस्तार से बताया गया: “रिकॉर्ड स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि अपीलकर्ताओं ने ऐसा कोई कानूनी रूप से स्वीकार्य दस्तावेज पेश नहीं किया है जिससे यह पता चले कि पट्टे के अधिकार या उक्त भूमि का स्वामित्व कभी भी कानून के अनुसार वैध रूप से उन्हें हस्तांतरित, समनुदेशित या प्रदान किया गया था।” (पैरा 33)
- भूमि पर राज्य का पुनः कब्ज़ा: न्यायालय ने नोट किया कि राज्य पहले ही भूमि के “तीन खरीदारों/कब्जाधारियों” को नोटिस (दिनांक 28.10.2025) जारी कर चुका था। इसके अलावा, यह देखा गया कि “डॉ. रमन जोगी” नामक एक व्यक्ति, जो बोर्ड के निदेशकों में से एक होने का दावा करता था, ने “स्वैच्छिक रूप से भूमि के एक बड़े हिस्से का कब्जा सरकार को सौंप दिया था, जो 22.08.2024 के संचार से स्पष्ट है।” न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि भूमि “राज्य द्वारा कानूनी रूप से वापस ले ली गई है और अब तक उसी के कब्जे में है।” (पैरा 35)
- अतिरिक्त दस्तावेज अस्वीकृत: पीठ ने अपीलीय स्तर पर दायर किए गए अतिरिक्त दस्तावेजों पर विचार करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि यह “कानून में अस्वीकार्य है, क्योंकि यह अपीलकर्ताओं को उनके मामले में कमियों को भरने की अनुमति देने के समान होगा।” (पैरा 37)
न्यायालय का निर्णय
एकल न्यायाधीश के फैसले में “कोई दुर्बलता, विकृति या अवैधता” न पाते हुए, हाईकोर्ट ने रिट अपील को “गुण-दोष रहित” (devoid of merit) मानते हुए खारिज कर दिया।
एकल न्यायाधीश द्वारा WPC No.977 of 2025 में पारित 18.07.2025 के निर्णय और आदेश को “पूरी तरह से बरकरार” रखा गया। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि पट्टे को रद्द करने और भूमि को वापस लेने के लिए राज्य सरकार द्वारा जारी नोटिस “कानून के अनुसार आगे बढ़ेंगे।” पहले दी गई कोई भी अंतरिम सुरक्षा समाप्त कर दी गई।




