छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2020 में राजनांदगांव में परवेज कुरैशी की हत्या के मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए छह आरोपियों की सजा को बरकरार रखा है। हालांकि, अदालत ने उनकी दोषसिद्धि को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 से संशोधित कर IPC की धारा 302/149 में बदल दिया है, जो कि साझा उद्देश्य से की गई हत्या से संबंधित है।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने 25 मार्च 2025 को यह 40-पृष्ठीय विस्तृत फैसला सुनाया। यह निर्णय फौजदारी अपील संख्या 1530, 1798 और 1800/2024 में दिया गया, जिसे शेख सलीम, सलमान उर्फ विक्की खान, कार्तिक राम टेम्बेकर, प्रेमचंद उर्फ बिट्टू, मुकुल नेताम और साइमन पीटर ने 23 जुलाई 2024 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, राजनांदगांव द्वारा दी गई सजा के खिलाफ दायर किया था।
मामला क्या था?
यह मामला 21 सितंबर 2020 का है, जब परवेज कुरैशी अपने मित्रों मोहम्मद सोहेल रज़ा और राजा श्रीवास के साथ राजा के घर (कंचनबाग, राजनांदगांव) में भोजन के बाद अपनी कार की ओर जा रहे थे। तभी एक पानी की टंकी के पीछे से छह लोगों का समूह निकला और उन पर क्रूर हमला कर दिया।

परवेज कुरैशी को कुल 34 गंभीर चोटें आईं जिनमें धारदार हथियारों से वार, चाकू के घाव और कई फ्रैक्चर शामिल थे। घटनास्थल पर ही उनकी मृत्यु हो गई। पोस्टमार्टम डॉ. अक्षय कुमार रामटेके ने किया। घायलों में राजा श्रीवास, उनकी बेटी पूजा श्रीवास और मोहम्मद सोहेल रज़ा शामिल थे, जिन्होंने अदालत में हमलावरों की पहचान की।
सरकार की ओर से उप-शासकीय अधिवक्ता एस.एस. बघेल ने पैरवी की, जबकि अपीलकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अदिति शिंगवी, चितेन्द्र सिंह और आग्नेय सैल ने पक्ष रखा।
न्यायालय के प्रमुख निष्कर्ष:
1. मृत्यु की प्रकृति:
अदालत ने पोस्टमार्टम और चिकित्सकीय साक्ष्य के आधार पर स्पष्ट किया कि यह हत्या थी, और यह पूर्व नियोजित तथा नृशंस थी।
2. संबंधित गवाहों की विश्वसनीयता:
बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि चश्मदीद गवाह मृतक के रिश्तेदार हैं और इसलिए ‘रुचिपूर्ण’ (interested) हैं। इसे खारिज करते हुए कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया:
“सिर्फ रिश्तेदार होने के कारण कोई गवाह ‘रुचिपूर्ण’ नहीं हो जाता।”
“कोई ‘संबंधित गवाह’ असली हत्यारे को क्यों छोड़ेगा और किसी निर्दोष को झूठा फंसाएगा?”
3. साझा उद्देश्य और सामूहिक दोष (Section 149 IPC):
हालांकि घातक वार कुछ ही आरोपियों ने किए, लेकिन सभी की सामूहिक भागीदारी, हथियारों से लैस होकर साथ आना और एकसाथ हमला करना यह सिद्ध करता है कि वे सभी एक अवैध सभा के सदस्य थे और साझा उद्देश्य से कार्य कर रहे थे। अदालत ने Krishnappa v. State of Karnataka (2012) और Vinubhai Ranchhodbhai Patel v. Rajivbhai Dudabhai Patel (2018) जैसे मामलों का उल्लेख किया।
“धारा 149 IPC के तहत केवल यह जानना पर्याप्त है कि ऐसे अपराध की संभावना है; सबको समान रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।”
सजा में संशोधन:
निचली अदालत ने सभी को IPC की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया था, जिसे हाईकोर्ट ने संशोधित करते हुए IPC की धारा 302/149 में बदल दिया। इसके साथ ही घायल गवाहों को चोट पहुँचाने के लिए धारा 324 IPC के तहत भी सजा बरकरार रखी गई।
अंतिम सजा:
- IPC की धारा 302/149 के तहत आजन्म कारावास व ₹5,000 जुर्माना (जुर्माना अदा न करने पर 2 वर्ष का सश्रम कारावास)।
- IPC की धारा 324 के तहत प्रत्येक गिनती पर 3 वर्ष का सश्रम कारावास व ₹2,000 जुर्माना (जुर्माना न देने पर प्रत्येक गिनती पर 1 माह का अतिरिक्त कारावास)।
- जेल अधीक्षक को निर्देश दिया गया कि वे दोषियों को सुप्रीम कोर्ट में अपील के अधिकार और कानूनी सहायता समिति से सहायता पाने की जानकारी दें।
न्यायालय की अहम टिप्पणियाँ:
- “घायल चश्मदीद गवाहों की उपस्थिति पर संदेह नहीं किया जा सकता, जब तक कि कोई महत्वपूर्ण विरोधाभास न हो।”
- “मामले की समग्र तस्वीर को देखा जाना चाहिए, और याददाश्त में आई सामान्य गलतियों को नजरअंदाज़ किया जाना चाहिए।”
- “रिश्तेदार होना, रुचिपूर्ण होने के बराबर नहीं है।”