गैरकानूनी भीड़ के साझा उद्देश्य का अनुमान उसकी प्रकृति, हथियारों के उपयोग और घटना के समय या पहले के आचरण से लगाया जा सकता है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

भारतीय दंड संहिता की धारा 149 के तहत प्रतिदायिक दायित्व (vicarious liability) के सिद्धांतों को दोहराते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 2019 में एक ग्रामीण की हत्या के मामले में माओवादीयों के साथ साजिश रचने के आरोपी पांच व्यक्तियों को दी गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है। न्यायालय ने कहा कि किसी गैरकानूनी भीड़ (unlawful assembly) के “साझा उद्देश्य” का अनुमान उसके सदस्यों के आचरण, उनके पास मौजूद हथियारों और अपराध में उनकी भागीदारी के तरीके से लगाया जा सकता है।

यह फैसला मुख्य न्यायाधीश रामेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवीन्द्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ द्वारा क्रिमिनल अपील संख्याएं 354, 309, 425 और 1333/2024 में सुनाया गया, जो एनआईए एक्ट और प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश, उत्तर बस्तर कांकेर द्वारा दी गई एकसमान सजा से संबंधित हैं।

मामले की पृष्ठभूमि:

यह मामला 27 अगस्त 2019 की रात की एक हिंसक घटना से जुड़ा है, जब दादूसिंह कोराटिया, जो कि गांव कोंडे, जिला उत्तर बस्तर कांकेर का निवासी था, की उसके घर में हत्या कर दी गई। हमलावर भाकपा (माओवादी) के सदस्य और समर्थक बताए गए। अभियोजन पक्ष के अनुसार, आरोपी घातक हथियारों से लैस होकर एक गैरकानूनी भीड़ के रूप में मृतक के घर पर पहुंचे और गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। हत्या के बाद माओवादी नारे — “लाल सलाम ज़िंदाबाद” और “आरएसएस के गुंडे ऐसे ही मरेंगे” — लगाते हुए फरार हो गए।

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यह घटना मृतक की पत्नी देवली कोराटिया (PW-1) ने अपनी आंखों से देखी और तत्काल दुर्गुकोंडल पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई, जिसके आधार पर अपराध क्रमांक 23/2019 पंजीकृत हुआ, जिसमें धारा 302, 148, 149, 120बी आईपीसी और आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 के तहत मामला दर्ज हुआ।

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दोषी ठहराए गए अभियुक्त और उनके अधिवक्ता:

  • सुनेहर पूडो (CRA No. 354/2024) – प्रतिनिधित्व: श्री रजत अग्रवाल
  • जेलाल मरकाम एवं डलसु राम पूडो (CRA No. 309/2024) – प्रतिनिधित्व: श्रीमती सविता तिवारी
  • जगदुराम कोर्राम (CRA No. 425/2024) – प्रतिनिधित्व: श्री एम.पी.एस. भाटिया
  • सुकाल उर्फ मानसिंह यादव (CRA No. 1333/2024) – प्रतिनिधित्व: श्री संजय पाठक

राज्य की ओर से सभी अपीलों का विरोध श्री शालीन सिंह बघेल, उप शासकीय अधिवक्ता ने किया।

ट्रायल कोर्ट का निर्णय (विशेष प्रकरण सं. 22/2021):

पांचों आरोपियों को निम्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया:

  • धारा 148 IPC – घातक हथियारों से लैस होकर दंगा (3 वर्ष का सश्रम कारावास)
  • धारा 120B IPC – आपराधिक साजिश (आजीवन कारावास)
  • धारा 302/149 IPC – गैरकानूनी भीड़ के जरिए हत्या (आजीवन कारावास)
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सभी सजाएं साथ-साथ चलने का आदेश दिया गया।

मुख्य कानूनी प्रश्न:

क्या वे अभियुक्त जिन्हें गोली चलाते नहीं देखा गया, लेकिन जो घटनास्थल पर मौजूद थे और जिनका आचरण माओवादी भीड़ के साथ सहयोगात्मक था, उन्हें धारा 149 के तहत दोषी ठहराया जा सकता है?

हाईकोर्ट का विश्लेषण और निर्णय:

अभियुक्तों के इस तर्क को खारिज करते हुए कि वे सिर्फ मृतक के घर के बाहर खड़े थे और गोली नहीं चलाई, कोर्ट ने कहा:

“प्रत्येक सदस्य द्वारा घातक वार करना आवश्यक नहीं है। भीड़ की संरचना, उनके पास मौजूद हथियार और लगाए गए नारे – ये सभी साझा उद्देश्य को दर्शाते हैं।”

कोर्ट ने गवाह देवली कोराटिया के बयान को स्वीकार किया, जिन्होंने सुनेहर पूडो, जेलाल, जगदुराम सहित अन्य को घटनास्थल पर मौजूद बताया।

“गैरकानूनी भीड़ में मात्र उपस्थिति, यदि वह सहयोगात्मक है, तो धारा 149 के तहत प्रतिदायिक दायित्व के लिए पर्याप्त है।”

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलेVinubhai Ranchhodbhai Patel v. Rajivbhai Dudabhai Patel (2018) 7 SCC 743 – का हवाला देते हुए कहा:

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“गैरकानूनी भीड़ के मामलों में यह आवश्यक नहीं कि हर अभियुक्त चोट पहुँचाए। घटना के समय उनकी उपस्थिति और आचरण ही उन्हें दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त है।”

धारा 120B – आपराधिक साजिश पर टिप्पणी:

“साजिश गुप्त रूप से रची जाती है। इसे परिस्थिति साक्ष्यों और आचरण से सिद्ध किया जा सकता है। आरोपियों ने माओवादियों को रसद सहायता दी और पीड़ित की पहचान करवाई – यही साजिश सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है।”

कोर्ट की अंतिम टिप्पणियाँ:

“यह भीड़ हथियारों से लैस होकर आई, हत्या के नारे लगाए, और माओवादियों की सहायता की। इनका मौन, उपस्थिति और नारे – इन सबकी आवाज़ सीधे वार से ज़्यादा प्रभावी है।”

कोर्ट ने माना कि साझा उद्देश्य और आपराधिक साजिश दोनों ही सिद्ध हो चुके हैं, सभी अपीलों को खारिज कर दिया और सजाओं को बरकरार रखा

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