छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एनटीपीसी सिपत प्लांट से ओवरलोड ट्रकों के मुद्दे पर दायर एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज करते हुए कहा कि यह याचिका जनहित के उद्देश्य से नहीं, बल्कि याचिकाकर्ता के व्यक्तिगत व व्यावसायिक हित साधने के लिए दायर की गई है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रविंद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने इस याचिका को खारिज करते हुए ₹50,000 का प्रतिकात्मक जुर्माना भी लगाया।
पृष्ठभूमि
याचिका (WPPIL No. 71 of 2025) क्षेत्रीय परिवहन कल्याण संघ द्वारा इसके अध्यक्ष शत्रुहन कुमार लस्कर के माध्यम से दायर की गई थी। इसमें एनटीपीसी लिमिटेड सिपत को यह सुनिश्चित करने के निर्देश देने की मांग की गई थी कि फ्लाई ऐश लाने-ले जाने वाले ट्रक ओवरलोड न हों और तिरपाल से ढके हों। साथ ही क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी व अन्य राज्य प्राधिकरणों को मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 113, 114, 194 और 200 का सख्ती से पालन कराने के निर्देश मांगे गए थे ताकि बिलासपुर-सिपत-बलोदा मार्ग पर ओवरलोड वाहनों का संचालन रोका जा सके।
याचिकाकर्ता का कहना था कि एनटीपीसी ताप विद्युत संयंत्र से ओवरलोड ट्रक सड़क ढांचे को बुरी तरह नुकसान पहुँचा रहे हैं, जिससे गड्ढे और घातक दुर्घटनाएं हो रही हैं। उन्होंने 31 दिसंबर 2021 की पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना का हवाला दिया, जिसमें फ्लाई ऐश के पर्यावरण अनुकूल परिवहन और निस्तारण की अनिवार्यता बताई गई है।

पक्षकारों के तर्क
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता संजय पटेल ने दलील दी कि राज्य प्राधिकरणों की निष्क्रियता गैरकानूनी और मनमानी है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के परमजीत भसीन बनाम भारत संघ और एस. राजशेखरन बनाम भारत संघ मामलों का हवाला दिया।
राज्य की ओर से सरकारी अधिवक्ता संघर्ष पांडेय ने याचिकाकर्ता की लोकस स्टैंडी पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह याचिका बिना उचित प्राधिकरण के दायर की गई और यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। उन्होंने बताया कि इसी मुद्दे पर पहले से एक और PIL (W.P. (PIL) No. 37/2024) लंबित है, जिसमें कोर्ट ने स्वतः संज्ञान भी लिया है।
एनटीपीसी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव श्रीवास्तव ने याचिका को “जनहित के आवरण में प्रेरित मुकदमेबाजी” बताते हुए कहा कि याचिकाकर्ता स्वयं एक परिवहन व्यवसायी है और एनटीपीसी से परिवहन ठेका हासिल करने में उसकी सीधी व्यावसायिक रुचि है। उन्होंने याचिकाकर्ता द्वारा क्षेत्रीय परिवहनकर्ताओं को प्राथमिकता देने और उचित भाड़ा दर तय करने की मांग वाले पत्र (परिशिष्ट P/4) का उल्लेख किया, जो उनके निजी व्यावसायिक हित को उजागर करता है। साथ ही, यह तथ्य भी सामने आया कि याचिकाकर्ता के अध्यक्ष के खिलाफ 11 जुलाई 2025 को कानून-व्यवस्था भंग करने के आरोप में एफआईआर दर्ज हुई थी।
न्यायालय की टिप्पणियां
खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की पात्रता और उद्देश्य की गहन जांच की और कहा कि अदालत का दायित्व है कि “PIL की पवित्रता और शुचिता बनाए रखी जाए” और बाहरी उद्देश्य से दायर याचिकाओं को हतोत्साहित किया जाए।
अदालत ने पाया:
- पात्रता और प्राधिकरण का अभाव: याचिकाकर्ता ने अपनी पात्रता का खुलासा नहीं किया और प्राधिकरण बाद में जोड़ा गया।
- व्यक्तिगत व व्यावसायिक मकसद: प्राथमिकता व तय भाड़ा दर की मांग, और उसी मुद्दे पर लंबित दूसरी PIL, यह स्पष्ट करती है कि याचिका जनहित में नहीं, बल्कि व्यक्तिगत लाभ के लिए दायर की गई।
- महत्वपूर्ण तथ्यों का दमन: याचिकाकर्ता ने अपने अध्यक्ष के खिलाफ दर्ज एफआईआर की जानकारी छुपाई। एफआईआर में आरोप था कि उन्होंने एनटीपीसी से गिट्टी ढुलाई के विवाद में वाहनों को रोका, ड्राइवरों को धमकाया और टायर की हवा निकाली।
अदालत ने जनता दल बनाम एच.एस. चौधरी व स्टेट ऑफ उत्तरांचल बनाम बलवंत सिंह चौफाल जैसे सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि “जनहित याचिका के नाम पर व्यक्तिगत लाभ लेने वाले, बेवजह हस्तक्षेप करने वाले, या प्रतिस्पर्धात्मक व्यावसायिक विवाद निपटाने वाले लोग अदालत का कीमती समय बर्बाद करते हैं।”
अंतिम निर्णय
अदालत ने पाया कि यह याचिका व्यक्तिगत दुश्मनी और व्यावसायिक हित साधने का प्रयास है। इसे प्रारंभिक चरण में ही खारिज करते हुए ₹50,000 का जुर्माना लगाया गया। यह राशि गरियाबंद और बालोद की विशेषीकृत दत्तक ग्रहण एजेंसी (SAA) को दी जाएगी। अदालती निर्देशानुसार, राशि अदा न होने पर राजस्व वसूली प्रमाणपत्र जारी किया जाएगा और याचिकाकर्ता द्वारा जमा सुरक्षा राशि जब्त कर ली जाएगी।