छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 28 अक्टूबर, 2025 के एक सामान्य आदेश में, इस कानूनी सिद्धांत को सुदृढ़ किया है कि याचिकाकर्ताओं को संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले उपलब्ध वैधानिक उपचारों का उपयोग करना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायाधीश बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने इस सिद्धांत को लागू करते हुए दो जनहित याचिकाओं (PILs) का निपटारा कर दिया। इन याचिकाओं में कांकेर जिले में ग्राम पंचायतों द्वारा ईसाई पादरियों के प्रवेश पर रोक लगाने वाले होर्डिंग्स को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को पेसा नियम, 2022 के तहत उपलब्ध “वैधानिक प्रभावकारी वैकल्पिक उपचार” का लाभ उठाने का निर्देश दिया।
न्यायालय के निर्णय का आधार
हाईकोर्ट का निर्णय मुख्य रूप से एक उपलब्ध वैकल्पिक उपचार के प्रक्रियात्मक आधार पर आधारित था। निर्णय के ‘हेड नोट’ में स्पष्ट रूप से कहा गया है: “किसी भी शिकायत के निवारण के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने से पहले एक पक्ष को पहले उपलब्ध वैधानिक वैकल्पिक उपचार का लाभ उठाना चाहिए।”
 
पीठ ने छत्तीसगढ़ पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) नियम, 2022 (पेसा नियम) के नियम 14 में विशिष्ट उपचार की पहचान की। यह नियम एक पीड़ित पक्ष को पहले ग्राम सभा में और यदि संतुष्ट नहीं है, तो उप-विभागीय अधिकारी (राजस्व) के समक्ष अपील करने की अनुमति देता है।
कोर्ट ने माना कि चूंकि याचिकाकर्ताओं ने इस रास्ते को नहीं अपनाया था, इसलिए वह सीधे तौर पर रिट याचिकाओं पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं था। आदेश में कहा गया है:
“दोनों याचिकाएं पेसा नियम, 2022 के तहत काम कर रही ग्राम सभाओं के कार्यों को चुनौती देती हैं। इसका नियम 14 एक वैधानिक उपचार प्रदान करता है… ऐसे वैकल्पिक वैधानिक उपचार के मद्देनजर, हम सीधे तौर पर संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत इन रिट याचिकाओं पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं।”
मामले की पृष्ठभूमि
ये जनहित याचिकाएं (WPPIL No. 83 of 2025 और WPPIL No. 86 of 2025) कांकेर जिले के कई गांवों में लगे होर्डिंग्स को लेकर दायर की गई थीं, जो एक 5वीं अनुसूची क्षेत्र है। इन होर्डिंग्स में “ईसाई पादरियों” और “तथाकथित ‘धर्मांतरित ईसाइयों'” के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी।
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि इससे “भय का माहौल” पैदा हुआ और यह अनुच्छेद 19(1)(d) (स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार) और अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) के तहत उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी आशंका जताई कि ये होर्डिंग्स सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण पर एक परिपत्र का हवाला देते हुए सरकारी अधिकारियों के इशारे पर लगाए गए थे।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
याचिकाकर्ताओं के वकील ने तर्क दिया कि ग्राम सभा के प्रस्ताव और होर्डिंग्स असंवैधानिक और पेसा नियमों के विपरीत थे। यह दलील दी गई कि परिवार से मिलने आने वाले पादरियों को “स्थानीय लोगों द्वारा बुरी तरह पीटा गया और उनके घरों को भी ध्वस्त कर दिया गया,” और यह कि पेसा अधिनियम “गांवों में प्रवेश और निकास पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति” नहीं देता है।
प्रतिवादियों की दलीलें
राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता ने इसका विरोध करते हुए कहा कि:
- सरकारी परिपत्र का उद्देश्य “कहीं भी” धार्मिक घृणा को “निर्देशित या भड़काना” नहीं था, बल्कि यह “पारंपरिक संस्कृति की रक्षा” के लिए था।
- पेसा नियमों का नियम 6(10) ग्राम सभा को “स्थानीय सांस्कृतिक विरासत… को किसी भी प्रकार के विनाशकारी व्यवहार से बचाने” का अधिकार देता है, और होर्डिंग्स “अवैध धर्मांतरण” के खिलाफ “एहतियाती उपाय” थे।
- नियम 14 के तहत वैकल्पिक उपचार का उपयोग न करने के कारण याचिकाएं विचारणीय नहीं थीं।
- “अवैध धर्मांतरण के मुद्दे के कारण” हुई हिंसा की पिछली घटनाओं ने ग्राम सभाओं की कार्रवाई को सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए उचित ठहराया।
न्यायालय की अन्य टिप्पणियाँ
याचिकाओं का निपटारा करने से पहले, कोर्ट ने उठाए गए मूल मुद्दों पर भी चर्चा की। कोर्ट ने टिप्पणी की कि “इस स्वतंत्रता [धर्म की स्वतंत्रता] का दुरुपयोग बल, प्रलोभन या धोखे के माध्यम से… एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है” और “प्रलोभन द्वारा धर्मांतरण” को एक “सामाजिक खतरा” बताया।
पीठ ने रेव्ह. स्टानिस्लॉस बनाम मध्य प्रदेश राज्य व अन्य (1977) 1 SCC 677 में दिए गए संविधान पीठ के फैसले पर बहुत भरोसा किया, जिसने धर्मांतरण विरोधी कानूनों को बरकरार रखा था। हाईकोर्ट ने स्टानिस्लॉस फैसले का हवाला देते हुए कहा कि धर्म का प्रचार करने के अधिकार का मतलब “किसी अन्य व्यक्ति को अपने धर्म में परिवर्तित करने का अधिकार नहीं है।”
इसके आधार पर, हाईकोर्ट ने टिप्पणी की, “सुप्रीम कोर्ट द्वारा उपरोक्त टिप्पणियों के मद्देनजर, प्रलोभन या धोखाधड़ी के माध्यम से जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए होर्डिंग्स की स्थापना को असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता है।”
अंतिम निर्णय
मामले के गुण-दोष पर अपनी टिप्पणियों के बावजूद, हाईकोर्ट ने दोनों जनहित याचिकाओं को वैकल्पिक उपचार के प्रक्रियात्मक आधार पर निपटा दिया। अंतिम निर्देश इस प्रकार थे:
- याचिकाकर्ता, यदि चाहें, तो छत्तीसगढ़ पेसा नियम, 2022 के नियम 14 के तहत सक्षम प्राधिकारी के समक्ष उपचार का लाभ उठाने के लिए स्वतंत्र हैं।
- यदि किसी व्यक्ति को “जीवन, स्वतंत्रता या आवाजाही के लिए खतरे” की आशंका है, तो वे संबंधित पुलिस से सुरक्षा मांग सकते हैं, जिस पर कानून के अनुसार विचार किया जाएगा।
- यदि याचिकाकर्ता वैकल्पिक उपचार का सहारा लेते हैं, तो इस आदेश में की गई कोई भी टिप्पणी उनके मामले पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगी।
- याचिकाकर्ताओं द्वारा जमा की गई सुरक्षा राशि को जब्त करने का आदेश दिया गया।


 
                                     
 
        



