सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत चेक बाउंस मामलों में शिकायत उसी न्यायालय में दायर की जा सकती है जहां प्राप्तकर्ता (payee) का बैंक खाता है — न कि उस स्थान पर जहां चेक को वसूलने के लिए प्रस्तुत किया गया हो।
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने 25 जुलाई 2025 को प्रकाश चिमनलाल सेठ बनाम जागृति कीयूर राजपोपट [क्रिमिनल अपील संख्या _____/2025 @ एसएलपी (क्रि.) संख्या 5540–5543/2024] में यह फैसला सुनाते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट और मैंगलोर के मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेशों को रद्द कर दिया।
पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता प्रकाश चिमनलाल सेठ ने आरोप लगाया था कि कीयूर ललितभाई राजपोपट ने उनसे ₹38,50,000 उधार लिए थे और उत्तरदाता जागृति कीयूर राजपोपट (कीयूर की पत्नी) ने ऋण की गारंटी दी थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि उत्तरदाता ने स्वयं भी वित्तीय सहायता ली और सितंबर 2023 में कुल चार चेक जारी किए।

इन चेकों को अपीलकर्ता ने कोटक महिंद्रा बैंक की ओपेरा हाउस ब्रांच, मुंबई में जमा किया, लेकिन ये अपर्याप्त धनराशि के कारण बाउंस हो गए। इसकी जानकारी 15.09.2023 को दी गई।
इसके बाद, अपीलकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 200 और एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत मैंगलोर की न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, पांचवीं अदालत में चार शिकायतें दर्ज कीं। हालांकि, मजिस्ट्रेट ने 12.12.2023 को यह कहते हुए शिकायतें वापस कर दीं कि चूंकि ड्रॉई बैंक मुंबई में है, इसलिए उनके न्यायालय को क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है।
अपीलकर्ता ने कर्नाटक हाईकोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी, लेकिन हाईकोर्ट ने 05.03.2024 को याचिकाएं खारिज कर दीं।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट में अपीलकर्ता ने स्पष्ट किया कि उसका बैंक खाता कोटक महिंद्रा बैंक की बेंदूरवेल शाखा, मैंगलोर में है और मुंबई शाखा में चेक केवल उस खाते में जमा करने के उद्देश्य से प्रस्तुत किए गए थे। बैंक के पत्र और उत्तरदाता के खाता विवरण से यह पुष्टि हुई कि खाता संख्या 0412108431 मैंगलोर शाखा से संबंधित है।
उत्तरदाता के वकील ने भी यह स्वीकार किया कि पहले अपीलकर्ता का खाता मुंबई शाखा में था लेकिन बाद में उसे मैंगलोर ट्रांसफर करवा लिया गया।
कोर्ट ने कहा:
“एक बार यह स्थापित हो जाए कि चेक प्रस्तुत करने के समय अपीलकर्ता का खाता कोटक महिंद्रा बैंक की बेंदूरवेल, मैंगलोर शाखा में था, तो वह मैंगलोर की क्षेत्रीय अदालत में अपनी शिकायतें दायर करने के लिए पूर्णतः अधिकारयुक्त था।”
कोर्ट ने एनआई एक्ट की धारा 142(2)(a) के अनुसार यह दोहराया कि जब चेक खाता के माध्यम से वसूली के लिए दिया जाता है, तो उस अदालत को क्षेत्राधिकार प्राप्त होता है जहां प्राप्तकर्ता (payee) का बैंक खाता स्थित है। इस संदर्भ में कोर्ट ने ब्रिजस्टोन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम इंदरपाल सिंह, (2016) 2 SCC 75 का भी उल्लेख किया।
कोर्ट ने माना कि मजिस्ट्रेट और हाईकोर्ट ने इस गलतफहमी में आदेश पारित किया कि अपीलकर्ता का खाता मुंबई में था।
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट के दिनांक 05.03.2024 और मजिस्ट्रेट के दिनांक 12.12.2023 के आदेशों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने मैंगलोर की न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, पांचवीं अदालत को निर्देश दिया कि वह अपीलकर्ता की शिकायतों को विधि के अनुसार स्वीकार करे और शीघ्र निर्णय करे।
लंबित आवेदनों का निपटारा भी कर दिया गया।