मद्रास हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि चेक बाउंस मामलों में यदि मजिस्ट्रेट आरोपी को बरी कर देता है, तो पीड़ित पक्ष अब सीधे क्षेत्रीय जिला अदालत में अपील दायर कर सकेगा। इसके लिए अब हाईकोर्ट से अनुमति (leave) लेने की आवश्यकता नहीं होगी।
यह व्यवस्था 7 जुलाई 2025 से प्रभावी होगी। हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जी.के. इलंथिरैयन ने 30 जून 2025 को दो leave याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। इसके बाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार (न्यायिक) ने अधिवक्ताओं और वादकारियों को अधिसूचना जारी कर इस निर्णय की जानकारी दी।
इस आदेश का आधार सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है, जो हाल ही में Celestium Financial बनाम ए. ज्ञानसेकरण (2025) मामले में आया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि चेक बाउंस मामलों के पीड़ितों को अपील का अधिकार बिना शर्त प्राप्त है, और उन्हें हाईकोर्ट से पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा:
“कोई भी व्यक्ति यदि अपराध में दोषसिद्ध हुआ है, तो उसे दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374 के तहत अपील करने का अधिकार है, जिसे किसी शर्त के अधीन नहीं किया जा सकता। उसी प्रकार, किसी भी अपराध के पीड़ित को भी बिना शर्त अपील करने का अधिकार होना चाहिए।”
शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट से अनुमति लेकर अपील दायर करने की प्रक्रिया केवल उन्हीं मामलों में लागू होती है जहां प्राइवेट शिकायतकर्ता स्वयं पीड़ित नहीं होता। लेकिन चेक बाउंस मामलों में सामान्यतः शिकायतकर्ता ही पीड़ित होता है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट नहीं किया कि यह फैसला पूर्व प्रभाव से लागू होगा या भविष्य में, इसलिए न्यायमूर्ति इलंथिरैयन ने इसे 7 जुलाई 2025 से लागू करने का निर्देश दिया। उन्होंने यह भी आदेश दिया कि यह निर्णय तमिलनाडु और पुडुचेरी की सभी जिला अदालतों तक प्रसारित किया जाए।