वकीलों की नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट को सूचित किया है कि वह ‘यूनियन ऑफ इंडिया’ का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों के एम्पैनलमेंट (Empanelment) के लिए एक व्यापक नीति तैयार करेगी।
यह आश्वासन सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ के समक्ष दिया। यह मामला तब सुर्खियों में आया जब एक जनहित याचिका (PIL) के माध्यम से कोर्ट को बताया गया कि सरकारी वकीलों की हालिया सूची में कई गंभीर अनियमितताएं हैं, जिनमें ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति भी शामिल है जिन्होंने अनिवार्य ‘ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन’ (AIBE) तक पास नहीं किया है।
क्या है पूरा विवाद?
इस मामले की शुरुआत तब हुई जब याचिकाकर्ता विशाल शर्मा ने सरकार द्वारा सितंबर 2025 में जारी एम्पैनलमेंट सूची को चुनौती दी। याचिका में एक चौंकाने वाला दावा किया गया कि दिल्ली हाईकोर्ट और निचली अदालतों में केंद्र सरकार का पक्ष रखने के लिए नियुक्त किए गए वकीलों की सूची में ऐसे नाम शामिल हैं, जिन्होंने वकालत के पेशे के लिए अनिवार्य एआईबीई (AIBE) परीक्षा पास नहीं की है।
याचिका में तर्क दिया गया कि संवेदनशील सरकारी मुकदमों की जिम्मेदारी ऐसे व्यक्तियों को सौंपना, जिनके पास बुनियादी वैधानिक योग्यता भी नहीं है, न्याय प्रशासन के सिद्धांतों के खिलाफ है।
सरकार ने मानी सुधार की जरूरत
केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में बेहद स्पष्ट और निष्पक्ष रुख अपनाया। आरोपों का विरोध करने के बजाय, एसजी मेहता ने स्वीकार किया कि याचिका में उठाए गए मुद्दे वाजिब हैं और सिस्टम में सुधार की आवश्यकता है।
उन्होंने पीठ के समक्ष माना कि याचिका को खारिज नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें उठाए गए कुछ तथ्य सही हैं। सॉलिसिटर जनरल ने सुझाव दिया कि कोर्ट सरकार को एक नीति बनाने का निर्देश देकर याचिका का निपटारा कर सकती है। उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेगी और खामियों को दूर करने के लिए एक उचित तंत्र (Mechanism) विकसित करेगी।
हाईकोर्ट के निर्देश और समयसीमा
सॉलिसिटर जनरल के इस सकारात्मक रुख को देखते हुए, खंडपीठ ने जनहित याचिका का निपटारा कर दिया और इसे सरकार के लिए एक अभ्यावेदन (Representation) के रूप में स्वीकार करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए केंद्र को दो प्रमुख निर्देश जारी किए:
- तत्काल जाँच: सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह विशाल शर्मा की याचिका में उठाए गए विशिष्ट तथ्यात्मक विसंगतियों की जाँच करे और तीन सप्ताह के भीतर निर्णय ले।
- पॉलिसी का निर्माण: प्रणालीगत सुधार के व्यापक मुद्दे पर, कोर्ट ने केंद्र सरकार को तीन महीने का समय दिया है। इस अवधि में सरकार को अपने विभिन्न विभागों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों के चयन के लिए उचित दिशानिर्देश तैयार करने होंगे।
इस फैसले से उम्मीद जताई जा रही है कि सरकारी वकीलों की नियुक्ति प्रक्रिया में अब कड़ी जांच होगी और केवल योग्य पेशेवर ही अदालतों में सरकार का पक्ष रखेंगे।

