सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1965 (CCS CCA Rules) के तहत, कोई ऐसा अधिकारी जिसे केवल लघु दंड (Minor Penalty) देने का अधिकार है, वह बड़ी सजा (Major Penalty) के लिए भी चार्जशीट जारी कर सकता है। यह निर्णय यूनियन ऑफ इंडिया बनाम आर. शंकरप्पा (सिविल अपील संख्या ___/2025 arising out of SLP (C) No. 7149/2023) में दिया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की अपील स्वीकार करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने हाईकोर्ट के उस निर्णय को पलट दिया, जिसमें यह कहा गया था कि चूंकि चार्जशीट एक ऐसे अधिकारी द्वारा जारी की गई थी जो केवल लघु दंड दे सकता है, इसलिए वह अवैध है।
मामले की पृष्ठभूमि
उत्तरदायी आर. शंकरप्पा दूरसंचार विभाग में सब डिविजनल इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे और 31 मई 2018 को सेवा-निवृत्त हुए। उन्हें 2003 में सीबीआई ने दो मामलों में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत अभियोजन में लिया—पहला ₹1 लाख की रिश्वत लेने के आरोप में और दूसरा उनकी ज्ञात आय से अधिक संपत्ति रखने के आरोप में। इन दोनों मामलों में उन्हें दोषी ठहराया गया था, लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने उनकी अपीलों पर विचार करते हुए सजा और दोषसिद्धि दोनों पर स्थगन आदेश दे रखा है।

इन्हीं आरोपों के संदर्भ में उनके विरुद्ध विभागीय जांच भी शुरू की गई थी, जिसमें दो चार्जशीट — 27.05.2006 और 04.12.2008 को— तत्कालीन प्रिंसिपल जनरल मैनेजर, बीजीटीडी, बेंगलुरु द्वारा जारी की गईं।
शंकरप्पा ने इन चार्जशीट को चुनौती देते हुए सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल (CAT) बेंगलुरु में कई आवेदन दाखिल किए। उन्होंने दलील दी कि चूंकि चार्जशीट ऐसे अधिकारी ने जारी की थी जिसे केवल लघु दंड देने का अधिकार था और उसने उच्च अधिकारी से पूर्वानुमोदन (approval) नहीं लिया, इसलिए चार्जशीट अमान्य है। उन्होंने इस संदर्भ में Union of India v. B.V. Gopinath (2014) 1 SCC 351 का हवाला दिया।
CAT ने उनकी याचिका खारिज करते हुए कहा कि चार्जशीट वैध थी, लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने 18.11.2022 को उनके पक्ष में फैसला देते हुए विभागीय कार्रवाई को रद्द कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के तर्कों को अस्वीकार कर दिया और कहा कि B.V. Gopinath का मामला इस केस से भिन्न था और उसका अनुचित रूप से उपयोग किया गया।
पीठ ने कहा कि CCS CCA Rules के नियम 13(2) के अनुसार, वह अधिकारी जिसे केवल लघु दंड देने का अधिकार है, वह बड़ी सजा के लिए भी विभागीय कार्यवाही शुरू कर सकता है। नियम 14 में यह प्रावधान है कि बड़ी सजा देने की प्रक्रिया कैसे अपनाई जाए, लेकिन इसमें यह नहीं कहा गया है कि केवल बड़ी सजा देने वाला अधिकारी ही चार्जशीट जारी कर सकता है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया:
“जब नियम 13(2), नियम 14 और एनेक्सचर 3 को एक साथ पढ़ा जाए, तो यह स्पष्ट होता है कि लघु दंड देने वाला अधिकारी भी बड़ी सजा के लिए चार्जशीट जारी कर सकता है।”
कोर्ट ने B.V. Gopinath मामले को अलग बताते हुए कहा:
“उस मामले में एक विशेष कार्यालय आदेश था जिसमें वित्त मंत्री की मंजूरी आवश्यक थी, लेकिन दूरसंचार विभाग में ऐसा कोई आदेश नहीं है।”
अंतिम निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“जनरल मैनेजर, टेलीकम्युनिकेशन द्वारा जारी चार्जशीट को केवल इस आधार पर अवैध नहीं ठहराया जा सकता कि वह बड़ी सजा देने का अधिकारी नहीं था।”
अतः सुप्रीम कोर्ट ने CAT के निर्णय को सही मानते हुए हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और माना कि दिनांक 27.05.2006 और 01.12.2008 की दोनों चार्जशीट वैध रूप से जारी की गई थीं।
हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया गया और विभागीय कार्यवाही को वैध ठहराया गया।