दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई ऋण नकद (cash) में दिया गया है और वह आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 269SS के तहत निर्धारित सीमा से अधिक है, तब भी उसे निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) की धारा 138 के तहत “कानूनी रूप से प्रवर्तनीय ऋण” (legally enforceable debt) माना जाएगा।
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने याचिकाकर्ता सतीश कुमार द्वारा दायर आपराधिक पुनर्विचार याचिका (Criminal Revision Petition) को खारिज करते हुए चेक बाउंस मामले में उनकी दोषसिद्धि (conviction) को बरकरार रखा। हाईकोर्ट ने कहा कि आयकर कानून का उल्लंघन करने पर जुर्माना लग सकता है, लेकिन इससे ऋण की वैधता समाप्त नहीं होती।
याचिकाकर्ता सतीश कुमार ने निचली अदालत और अपीलीय अदालत के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उन्हें 24 लाख रुपये के चेक बाउंस मामले में दोषी ठहराया गया था। बचाव पक्ष की मुख्य दलील यह थी कि इतनी बड़ी रकम नकद में देना आयकर कानूनों का उल्लंघन है, इसलिए यह वैध ऋण नहीं है। हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए सतीश कुमार की एक साल की साधारण कैद और 28.33 लाख रुपये के मुआवजे की सजा को बरकरार रखा।
केस की पृष्ठभूमि
यह मामला शिकायतकर्ता बिंदु महाजन द्वारा दायर किया गया था। उनके अनुसार, मार्च 2015 में सतीश कुमार ने उनसे आर्थिक मदद मांगी थी। इसके बाद, महाजन ने 4 लाख रुपये बैंक हस्तांतरण के माध्यम से और 20 लाख रुपये नकद बतौर ‘फ्रेंडली लोन’ दिए। आरोप है कि इस ऋण के बदले सतीश कुमार ने दो वचन पत्र (promissory notes) निष्पादित किए और बाद में तीन चेक जारी किए।
वर्ष 2019 में जब ये चेक बैंक में लगाए गए, तो वे “फंड अपर्याप्त” (Funds Insufficient) और “Non-CTS Instrument” के कारण बाउंस हो गए। कानूनी नोटिस भेजने के बाद भी भुगतान न होने पर धारा 138 NI Act के तहत शिकायत दर्ज की गई। मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने अप्रैल 2022 में सतीश कुमार को दोषी ठहराया, और जुलाई 2024 में सत्र न्यायालय (Sessions Court) ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी।
पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ता (सतीश कुमार) का पक्ष: सतीश कुमार के वकील ने तर्क दिया कि विवादित चेक किसी कर्ज को चुकाने के लिए नहीं, बल्कि 2015 में द्वारका में एक ऑफिस स्पेस खरीदने के लिए “सुरक्षा” (security) के तौर पर खाली हस्ताक्षर करके दिए गए थे। उन्होंने शिकायतकर्ता की वित्तीय क्षमता पर भी सवाल उठाए और कहा कि 30,000 रुपये मासिक आय वाली महिला 24 लाख रुपये का ऋण कैसे दे सकती है। यह भी कहा गया कि नकद लेनदेन आयकर नियमों के खिलाफ था।
प्रतिवादी (बिंदु महाजन) का पक्ष: शिकायतकर्ता के वकील ने कहा कि सतीश कुमार ने चेक पर अपने हस्ताक्षर स्वीकार किए हैं, जिससे कानूनन यह माना जाएगा कि चेक किसी देनदारी के लिए दिया गया था। उन्होंने कहा कि सतीश कुमार ने ‘प्रॉपर्टी डील’ वाली कहानी का कोई सबूत नहीं दिया—न तो संपत्ति का पता बताया और न ही विक्रेता का नाम।
हाईकोर्ट का विश्लेषण: नकद ऋण की वैधता
हाईकोर्ट ने नकद ऋण और धारा 138 के संबंध में कानूनी स्थिति को विस्तार से समझाया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले संजाबीज तारी बनाम किशोर एस. बोरकर (2025 INSC 1158) का हवाला दिया।
जस्टिस शर्मा ने कहा:
“धारा 269SS का कोई भी उल्लंघन धारा 138 NI Act के तहत लेनदेन को अप्रवर्तनीय (unenforceable) नहीं बनाता है, और न ही यह धारा 118 और 139 के तहत कानूनी धारणाओं का खंडन करता है। ऐसा करने वाले व्यक्ति पर केवल निर्धारित जुर्माना लगाया जा सकता है।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि नकद लेनदेन की सीमा का उल्लंघन करने से मुख्य लेनदेन “अवैध या शून्य” (void or illegal) नहीं हो जाता।
साक्ष्यों का मूल्यांकन
हाईकोर्ट ने सतीश कुमार के बचाव में कई विरोधाभास पाए:
- बयानों में अंतर: सतीश कुमार ने पहले किसी भी तरह का पैसा लेने से इनकार किया, लेकिन जब बैंक रिकॉर्ड दिखाए गए, तो उन्होंने 4 लाख रुपये प्राप्त करने की बात स्वीकार कर ली। कोर्ट ने माना कि इस झूठ ने उनकी विश्वसनीयता को खत्म कर दिया।
- सुरक्षा चेक का सिद्धांत: याचिकाकर्ता यह साबित करने में विफल रहे कि चेक प्रॉपर्टी डील के लिए दिए गए थे। उन्होंने न तो कथित संपत्ति का विवरण दिया और न ही किसी गवाह से इसकी पुष्टि कराई।
- फर्जी नोटिस: सतीश कुमार ने दावा किया था कि उन्होंने 2016 में चेक वापस मांगने के लिए एक नोटिस भेजा था। कोर्ट ने इसे फर्जी माना क्योंकि जिस पते पर नोटिस भेजा गया था, वहां शिकायतकर्ता 2018 के बाद रहने आई थीं।
निर्णय
हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता धारा 118 और 139 NI Act के तहत कानूनी धारणा (presumption) को पलटने में विफल रहे हैं। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि शिकायतकर्ता की वित्तीय क्षमता को चुनौती देने के लिए कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया।
परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी और सतीश कुमार को तीन सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण (surrender) करने का निर्देश दिया ताकि वे अपनी सजा पूरी कर सकें।
केस विवरण:
- केस टाइटल: सतीश कुमार बनाम स्टेट (Govt. NCT Delhi) और अन्य
- केस नंबर: CRL.REV.P. 864/2024
- बेंच: जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा
- साइटेशन: 2025:DHC:10084




