सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नौकरी के बदले घूस मामले में तमिलनाडु सरकार को जमकर फटकार लगाई और कहा कि पूर्व मंत्री वी. सेंथिल बालाजी के खिलाफ मुकदमे को जानबूझकर लंबा खींचने के लिए 2,500 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है। अदालत ने इस “तरकीब” को न्याय प्रणाली के साथ धोखा करार दिया और कहा कि इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बालाजी के जीवनकाल में मुकदमा समाप्त न हो सके।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ एक पीड़ित द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मद्रास हाईकोर्ट के 28 मार्च के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें बालाजी के खिलाफ चार चार्जशीट को एक साथ जोड़कर मुकदमा चलाने की अनुमति दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि एक मामले में 2,000 और दूसरे में 500 आरोपी बनाए गए हैं, जिनमें से अधिकांश वे लोग हैं जिन्होंने कथित तौर पर रिश्वत दी लेकिन उन्हें सरकारी नौकरी नहीं मिली। “यह पूरी प्रक्रिया न्याय व्यवस्था के साथ धोखा है ताकि मुकदमे का निष्कर्ष कभी न निकले,” अदालत ने कहा।

पीठ ने यह भी पूछा कि चार्जशीट में नामजद इन लोगों में वे कौन हैं जिन्होंने रिश्वत ली, मंत्री के इशारे पर काम करने वाले अधिकारी कौन थे, और वे कौन लोग थे जो नियुक्ति बोर्ड का हिस्सा थे या भर्ती प्रक्रिया को अंजाम दे रहे थे।
राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं अभिषेक मनु सिंघवी और अमित आनंद तिवारी ने अदालत को बताया कि इस संबंध में विस्तृत जानकारी एक अन्य याचिका में दी गई है, जो फिलहाल सूचीबद्ध नहीं है।
अदालत ने निर्देश दिया कि मामले से जुड़ी सभी याचिकाओं को एक साथ बुधवार को सूचीबद्ध किया जाए।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि हाईकोर्ट द्वारा दिए गए संयुक्त मुकदमे के आदेश में यह नजरअंदाज कर दिया गया कि भ्रष्टाचार के आरोप अलग-अलग पदों की नियुक्तियों — जैसे सहायक अभियंता, जूनियर ट्रेड्समैन, कंडक्टर और ड्राइवर — से संबंधित हैं, जिन्हें अब जूनियर इंजीनियर की नियुक्तियों से जोड़ दिया गया है।
याचिका में कहा गया है कि प्रत्येक चार्जशीट में वर्णित अपराध एक ही लेनदेन का हिस्सा नहीं हैं, इसलिए उन्हें एक साथ मुकदमे के रूप में नहीं चलाया जाना चाहिए। इसमें यह भी बताया गया कि कुल मिलाकर 2,000 से अधिक अभियुक्त और 750 गवाह हैं, जिससे केवल जिरह में ही दशकों लग सकते हैं।
शंकरनारायणन ने यह भी तर्क दिया कि आरोपी एक पूर्व मंत्री हैं और सुप्रीम कोर्ट पहले ही 2022 में राज्य एजेंसियों के साथ उनकी कथित सांठगांठ की आलोचना कर चुका है। तब अदालत ने आरोपियों और शिकायतकर्ताओं के बीच समझौतों को खारिज करते हुए बालाजी के खिलाफ मुकदमा जारी रखने का आदेश दिया था।
गौरतलब है कि जून 2023 में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने बालाजी को गिरफ्तार किया था, जिसके बाद उन्हें बिजली, मद्यनिषेध और आबकारी मंत्री के पद से हटा दिया गया था। हालांकि, वे फरवरी 2024 तक बिना विभाग वाले मंत्री के रूप में बने रहे। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2023 में उन्हें जमानत दी थी, जिसके बाद वे फिर से मंत्री बनाए गए थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियों के बाद उन्होंने फरवरी में इस्तीफा दे दिया।