क्या डॉक्टर का लिखा पर्चा पढ़ नहीं पा रहे? यह आपके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है: हाईकोर्ट 

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि साफ-सुथरी और पढ़ने योग्य मेडिकल पर्ची (प्रिस्क्रिप्शन) और डायग्नोसिस, स्वास्थ्य के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।

न्यायमूर्ति जे.एस. पुरी ने केंद्र सरकार, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ प्रशासन को विस्तृत निर्देश जारी करते हुए कहा कि यह “आश्चर्यजनक और चौंकाने वाला” है कि तकनीक और कंप्यूटर की आसान उपलब्धता के इस दौर में भी डॉक्टर अब भी मेडिकल हिस्ट्री और प्रिस्क्रिप्शन हाथ से इस तरह लिखते हैं जिसे केवल कुछ ही डॉक्टर पढ़ पाते हैं।

अदालत ने वर्ष 2024 में स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाही शुरू की थी, यह मानते हुए कि मरीज का अपने डॉक्टर द्वारा लिखे प्रिस्क्रिप्शन को समझ पाने का अधिकार भी मौलिक अधिकार का हिस्सा है। यह मुद्दा तब उठा जब हरियाणा के एक कथित दुष्कर्म मामले में अग्रिम जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत में प्रस्तुत मेडिकल-लीगल रिपोर्ट पूरी तरह अपठनीय पाई गई।

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सरकारों का जवाब

हरियाणा सरकार ने बताया कि 27 मई 2025 से सभी डॉक्टरों को आदेश दिया गया है कि जब तक कंप्यूटरीकृत पर्चियां पूरी तरह लागू नहीं होतीं, तब तक सभी निदान और प्रिस्क्रिप्शन बोल्ड या बड़े (कैपिटल) अक्षरों में लिखे जाएं। पंजाब ने 28 मई को इसी तरह का आदेश जारी किया, जबकि चंडीगढ़ प्रशासन ने मार्च 2025 में ही निर्देश दिए थे कि सभी पर्चियां पढ़ने योग्य और बड़े अक्षरों में लिखी जाएं। केंद्र ने कहा कि वह न्यूनतम मानकों और स्पष्ट प्रिस्क्रिप्शन को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर दिशा-निर्देश जारी करने पर विचार कर रहा है।

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अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति पुरी ने कहा कि अपठनीय हस्तलिपि “एक ऐसी खाई पैदा करती है जिससे कार्यकुशलता घटती है” और उपलब्ध डिजिटल हेल्थ तकनीक के लाभ भी सीमित हो जाते हैं। अस्पष्ट पर्चियां मरीज की जान और स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकती हैं और सुरक्षा उपायों को कमजोर कर सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट के निर्णयों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21) “स्वास्थ्य के अधिकार को भी शामिल करता है, जिसमें मरीज का पढ़ने योग्य मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन, निदान, मेडिकल दस्तावेज और उपचार जानने का अधिकार भी आता है।” यह व्याख्या, अदालत ने कहा, मानवीय गरिमा को बढ़ाती है और बदलते सामाजिक मानकों के अनुरूप है।

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डॉक्टरों की राष्ट्र सेवा और समर्पण की सराहना करते हुए अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मरीजों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना उतना ही जरूरी है।

डॉक्टरों और प्रशासन के लिए निर्देश

हाईकोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ को आदेश दिया कि —

  • जब तक कंप्यूटरीकृत सिस्टम लागू नहीं होते, सभी हस्तलिखित प्रिस्क्रिप्शन और निदान बड़े अक्षरों में लिखे जाएं।
  • राज्य मेडिकल आयोग डॉक्टरों के साथ नियमित रूप से जागरूकता बैठकें करें।
  • दो वर्षों के भीतर पंजाब और हरियाणा में सभी पर्चियां टाइप करके मरीजों को दी जाएं।
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केंद्र सरकार को निर्देश दिया गया कि वह मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन के न्यूनतम मानक जल्द से जल्द राजपत्र में अधिसूचित करे। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग से भी अनुरोध किया गया कि मेडिकल पाठ्यक्रम में साफ-सुथरी और पढ़ने योग्य हस्तलिपि के महत्व को शामिल किया जाए।

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