कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में 287 लोगों के खिलाफ दायर मानहानि के मुकदमे को खारिज कर दिया है। इन लोगों ने पश्चिम बंगाल के एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान के अधीक्षक के खिलाफ शिकायत की थी। न्यायमूर्ति अजय कुमार गुप्ता ने अपने निर्णय में कहा कि इस मामले में सार्वजनिक हित, व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के अधिकार पर भारी है। यह फैसला मानहानि और सार्वजनिक जवाबदेही से जुड़ी कानूनी अवधारणाओं में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जा रहा है।
यह मामला उस समय शुरू हुआ जब छात्रों, शिक्षकों और चिंतित नागरिकों के एक समूह ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को एक सामूहिक शिकायत पत्र भेजा था। इसमें अधीक्षक पर संस्थान में गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त होने का आरोप लगाया गया था। यह संस्थान स्वतंत्रता सेनानी द्वारा बर्धमान ज़िले में स्थापित किया गया था। शिकायतकर्ताओं ने संस्थान की गरिमा और छात्रों के हितों की रक्षा हेतु आधिकारिक जांच और कार्रवाई की मांग की थी।
न्यायमूर्ति गुप्ता ने 2013 में अधीक्षक द्वारा बर्धमान जिला न्यायालय में दायर मानहानि की शिकायत पर विचार करते हुए पाया कि शिकायतकर्ता यह साबित नहीं कर सके कि उनके खिलाफ मानहानि की गई थी। अदालत ने यह भी कहा कि यह शिकायत एक वैधानिक प्राधिकारी को गोपनीय रूप से भेजी गई थी और इसका उद्देश्य व्यक्तिगत द्वेष नहीं बल्कि सार्वजनिक कल्याण था—इसलिए यह “विशेषाधिकार प्राप्त संप्रेषण” (privileged communication) के अंतर्गत आती है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रजदीप मजूमदार ने तर्क दिया कि मानहानि का यह मुकदमा निराधार, दुर्भावनापूर्ण और त्रुटिपूर्ण था। उन्होंने कहा कि किसी वैधानिक प्राधिकारी को सद्भावनापूर्वक की गई शिकायत मानहानि की श्रेणी में नहीं आती। न्यायमूर्ति गुप्ता ने इस दलील से सहमति जताई।
अपने निर्णय में न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, “शैक्षणिक संस्थान की गरिमा और छात्रों के हितों की रक्षा के लिए की गई सामूहिक शिकायत सार्वजनिक हित से जुड़ी थी, अतः यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत संरक्षित है।”
यह निर्णय स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि शैक्षणिक संस्थानों में संभावित कदाचार को उजागर करने के सार्वजनिक हित को, व्यक्ति विशेष की प्रतिष्ठा से ऊपर माना जाएगा—विशेषकर जब छात्र कल्याण की बात हो। अदालत का यह फैसला न केवल मानहानि के मामले को खारिज करता है, बल्कि ऐसे व्यक्तियों और समूहों को कानूनी संरक्षण भी प्रदान करता है जो अधिकार की स्थिति में बैठे लोगों के संभावित दुरुपयोग के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं।
कलकत्ता हाईकोर्ट का यह निर्णय लोकतांत्रिक मूल्यों की पुष्टि करता है जिसमें नागरिकों को बिना प्रतिशोध के डर के, सार्वजनिक मुद्दों पर चिंता व्यक्त करने का अधिकार प्राप्त है।