कलकत्ता हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा स्थगन आदेश के बावजूद शुरू की गई अवमानना कार्यवाही को रद्द किया

कलकत्ता हाईकोर्ट की सर्किट बेंच (जलपाईगुड़ी) ने ट्रायल कोर्ट द्वारा Misc. Execution Case No. 55 of 2024 में शुरू की गई अवमानना कार्यवाही को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह कार्यवाही कानूनी अनुमति के बिना की गई थी, क्योंकि जिस मूल आपराधिक वाद—C.R. Case No. 1344 of 2023—के आधार पर यह कार्यवाही शुरू हुई थी, उसे पहले ही हाईकोर्ट की को-ऑर्डिनेट बेंच द्वारा स्थगित किया जा चुका था।

न्यायमूर्ति विभास रंजन दे ने याचिकाकर्ताओं द्वारा दाखिल पुनरीक्षण याचिका (CRR 268 of 2024) को स्वीकार करते हुए ट्रायल जज के यांत्रिक रवैये की तीखी आलोचना की।

मामले की पृष्ठभूमि:

याचिकाकर्ता बिंबाधर मोहकुड़ और एक अन्य व्यक्ति ने हाईकोर्ट का रुख किया था ताकि Misc. Execution Case No. 55 of 2024 की वैधता को चुनौती दी जा सके। यह मामला C.R. Case No. 1344 of 2023 से जुड़ा था, जिसमें IPC की धारा 420, 409, 406, 418 और 425 के अंतर्गत शिकायत दर्ज की गई थी।

दिनांक 17 मई 2024 को, हाईकोर्ट की एक को-ऑर्डिनेट बेंच ने उक्त शिकायत वाद से जुड़ी सभी कार्यवाहियों, जिनमें गिरफ्तारी वारंट का क्रियान्वयन भी शामिल था, पर स्थगनादेश पारित किया था।

याचिकाकर्ता की दलीलें:

सीनियर एडवोकेट अयन भट्टाचार्य ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट को स्थगन आदेश की पूरी जानकारी होते हुए भी Contempt of Courts Act, 1971 की धारा 10, 12 और 15 के तहत अवमानना याचिका स्वीकार कर Misc. Execution Case No. 55 of 2024 पंजीकृत कर दी। इसके साथ ही, कोर्ट ने धारा 125(3) CrPC के अंतर्गत लंबित भरण-पोषण की वसूली की कार्यवाही भी शुरू कर दी।

उन्होंने यह भी कहा कि जब हाईकोर्ट पहले से ही इस मामले में अधिकार क्षेत्र ग्रहण कर चुकी थी, तो निचली अदालत द्वारा अवमानना की स्वतः कार्यवाही शुरू करना कानून के विपरीत था।

प्रतिवादी की दलीलें:

प्रतिवादी के वकील कृष्ण लाल लोहिया ने प्रस्तुत किया कि यद्यपि मुख्य शिकायत वाद पर स्थगन आदेश था, परंतु ट्रायल कोर्ट के भरण-पोषण आदेश के उल्लंघन को लेकर अवमानना याचिका दायर करने पर कोई रोक नहीं थी।

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कोर्ट का विश्लेषण:

न्यायमूर्ति दे ने ट्रायल जज की कार्यप्रणाली पर गहरी असहमति जताई और टिप्पणी की:

“यह देखकर अत्यंत निराशा हुई कि जब C.R. 1344 of 2023 मामले पर इस माननीय न्यायालय की को-ऑर्डिनेट बेंच द्वारा पहले ही स्थगनादेश दिया जा चुका था, तब ट्रायल जज ने अवमानना कार्यवाही कैसे शुरू कर दी…”

कोर्ट ने 12 जुलाई 2024 और 18 जुलाई 2024 के आदेशों की समीक्षा करते हुए कहा:

“ये आदेश यांत्रिक और साइकलोस्टाइल शैली में लिखे गए प्रतीत होते हैं, जो कि किसी जिम्मेदार न्यायिक अधिकारी से अत्यंत अपेक्षाहीन है… विशेषकर तब जब ट्रायल जज को स्थगन आदेश की जानकारी थी।”

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि Contempt of Courts Act, 1971 की धारा 10 और 15 के अंतर्गत केवल हाईकोर्ट को ही निचली अदालत से संबंधित अवमानना की शिकायत का संज्ञान लेने का अधिकार है। निचली अदालतें केवल संदर्भ भेज सकती हैं, वे स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाही नहीं कर सकतीं।

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फैसला:

कोर्ट ने कहा:

“Misc. (Exe.) Case No. 55 of 2024 से संबंधित समस्त कार्यवाही, जो कि किसी वैधानिक अनुमति से रहित है, को निरस्त किया जाता है।”

इस प्रकार, पुनरीक्षण याचिका (CRR 268 of 2024) को स्वीकार कर लिया गया। हालांकि कोर्ट ने ट्रायल जज की योग्यता पर कोई टिप्पणी नहीं की, लेकिन भविष्य में “मूल कानूनी प्रक्रियाओं” के पालन की आवश्यकता पर जोर दिया।

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