शर्मिष्ठा पनोली को सोशल मीडिया पोस्ट मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट से अंतरिम ज़मानत

कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को चौथे वर्ष की कानून की छात्रा शर्मिष्ठा पनोली को अंतरिम ज़मानत प्रदान की, जिन्हें पिछले महीने सोशल मीडिया पर मुस्लिम समुदाय और पैगंबर मोहम्मद के प्रति कथित रूप से आपत्तिजनक टिप्पणी वाले वीडियो पोस्ट करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था।

यह गिरफ्तारी ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि में हुई थी, जिसने सोशल मीडिया पर तीव्र प्रतिक्रियाएँ और सार्वजनिक चर्चा को जन्म दिया। पनोली ने इंस्टाग्राम और X (पूर्व में ट्विटर) पर वीडियो साझा किया था, जिसे उन्होंने बाद में स्वयं हटा दिया और सार्वजनिक रूप से माफ़ी भी मांगी थी। इसके बावजूद, उन्हें गुड़गांव से हिरासत में लिया गया और ट्रायल कोर्ट द्वारा 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

पृष्ठभूमि और गिरफ्तारी

पनोली के खिलाफ 15 मई 2025 को एफआईआर दर्ज की गई थी और 17 मई को गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था। पुलिस का कहना है कि उनकी टिप्पणियों से सार्वजनिक शांति भंग हुई, और इस आधार पर संज्ञेय अपराध मानते हुए कार्रवाई की गई।

हाईकोर्ट ने पहले सुनवाई के दौरान उनकी अंतरिम ज़मानत याचिका खारिज करते हुए कहा था, “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का यह अर्थ नहीं कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई जाए।”

विधिक दलीलें और बहस

राज्य की ओर से पेश एडवोकेट जनरल किशोर दत्ता ने बताया कि पुलिस जब पनोली के निवास पर पहुंची थी, तब वह वहां नहीं मिलीं और बाद में उन्हें पश्चिम बंगाल के बाहर से गिरफ़्तार किया गया। उन्होंने दलील दी कि शिकायत में संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है, और पुलिस को उस पर कार्रवाई करनी ही थी।

वहीं पनोली की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डी. पी. सिंह ने एफआईआर और ट्रायल कोर्ट के रिमांड आदेश को चुनौती दी। उन्होंने तर्क दिया कि एफआईआर में कोई संज्ञेय अपराध नहीं बताया गया है और भारतीय कानून में ‘ईशनिंदा’ कोई अपराध नहीं है। उन्होंने कहा कि पनोली ने स्वयं वीडियो हटा दिया था और सार्वजनिक माफ़ी भी मांग ली थी, और यह स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी किसी पाकिस्तानी व्यक्ति को संबोधित थी, न कि किसी समुदाय को उकसाने के उद्देश्य से।

उन्होंने यह भी बताया कि पुणे के एक छात्र और प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को समान परिस्थितियों में ज़मानत मिल चुकी है।

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कोर्ट की टिप्पणियाँ और निर्णय

न्यायमूर्ति राजा बसु चौधरी ने यह सवाल उठाया कि याचिकाकर्ता ने सीधे अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट में याचिका क्यों दायर की, जबकि नियमित ज़मानत के लिए निचली अदालत का विकल्प उपलब्ध था। हालांकि, सभी तथ्यों और दस्तावेजों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने कहा कि अब पनोली की पुलिस हिरासत की आवश्यकता नहीं है।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति ने कहा, “कोऑर्डिनेट बेंच द्वारा कुछ टिप्पणियाँ पहले की गई थीं। इसका यह अर्थ नहीं कि अब जब दूसरा न्यायाधीश पीठ पर है, तो मामला सुना ही नहीं गया।”

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अंततः हाईकोर्ट ने पनोली को शर्तों के साथ अंतरिम ज़मानत दे दी और निर्देश दिया कि वह ज़मानती बॉन्ड मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत करें और जांच में सहयोग करें।

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