कोलकाता हाईकोर्ट ने 2002 की मतदाता सूची के आधार पर चल रही मतदाता सूची पुनरीक्षण प्रक्रिया पर चुनाव आयोग से मांगा जवाब

कोलकाता हाईकोर्ट ने गुरुवार को निर्वाचन आयोग (ECI) को निर्देश दिया कि वह हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करे कि पश्चिम बंगाल में चल रही विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया 2002 की मतदाता सूची के आधार पर क्यों की जा रही है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश सुजॉय पॉल और न्यायमूर्ति पार्थ सारथी सेन की खंडपीठ ने यह आदेश एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया, जिसमें दो दशक पुरानी मतदाता जानकारी के इस्तेमाल की वैधता और औचित्य पर सवाल उठाया गया था। अदालत ने आयोग को 19 नवंबर तक अपना पक्ष स्पष्ट करते हुए हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।

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याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि 2002 की मतदाता सूची पर आधारित पुनरीक्षण प्रक्रिया मतदाता सूचियों की सटीकता और पारदर्शिता को प्रभावित करती है। उन्होंने मांग की कि इस बार की पुनरीक्षण प्रक्रिया “साल 2025 के वर्तमान दस्तावेजों और सूचनाओं” के आधार पर की जाए।

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निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि पिछली विशेष गहन पुनरीक्षण प्रक्रिया वर्ष 2002 में की गई थी और वर्तमान प्रक्रिया आयोग के स्थापित नियमों के अनुसार ही चल रही है।

याचिकाकर्ताओं ने यह भी शिकायत की कि मतदाता सूची पुनरीक्षण में लगे बूथ लेवल अधिकारियों (BLOs) को “डराने-धमकाने वाले माहौल” में काम करना पड़ रहा है और उन्हें अपने दायित्वों के निर्वहन के लिए पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

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फिलहाल निर्वाचन आयोग 12 राज्यों में यह विशेष पुनरीक्षण कर रहा है, जिनमें पश्चिम बंगाल भी शामिल है। राज्य में विधानसभा चुनाव मध्य 2026 से पहले होने की संभावना है। आयोग के जवाब दाखिल करने के बाद अदालत अगली सुनवाई करेगी।

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