कलकत्ता हाईकोर्ट बार संघों ने जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा के ट्रांसफर का किया विरोध, “संदिग्ध आचरण” का लगाया आरोप

कलकत्ता हाईकोर्ट की तीन प्रमुख बार एसोसिएशनों — बार एसोसिएशन, बार लाइब्रेरी क्लब और इन्कॉर्पोरेटेड लॉ सोसाइटी — ने एक दुर्लभ और तीखे शब्दों में लिखे गए संयुक्त प्रतिनिधित्व में भारत के मुख्य न्यायाधीश से आग्रह किया है कि वे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की 27 मार्च 2025 की उस सिफारिश पर पुनर्विचार करें, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस दिनेश कुमार शर्मा को कलकत्ता हाईकोर्ट स्थानांतरित करने की बात कही गई है।

यह प्रतिनिधित्व इन तीनों संस्थाओं के मानद सचिवों द्वारा हस्ताक्षरित है और इसमें इस ट्रांसफर की प्रक्रिया की निष्पक्षता व नैतिकता पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। पत्र में पूछा गया है कि क्या यह सिर्फ एक सामान्य प्रशासनिक फैसला है या फिर यह एक प्रकार की गुप्त अनुशासनात्मक कार्रवाई है।

जस्टिस शर्मा पर गंभीर आरोप

बार संस्थाओं ने जस्टिस शर्मा के खिलाफ पहले से मौजूद शिकायतों का उल्लेख किया है, जो अक्टूबर और नवंबर 2024 के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट में उनके कार्यकाल के समय सामने आई थीं। इन शिकायतों में आरोप लगाया गया है कि जस्टिस शर्मा ने कई महत्वपूर्ण मामलों को पहले या दूसरे ही सुनवाई के दौरान “पार्ट-हर्ड” घोषित कर दिया, जिससे वे उन मामलों पर नियंत्रण बनाए रख सकें, भले ही उनके न्यायिक रोस्टर में बदलाव हो गया हो।

28 अक्टूबर 2024 को दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेजी गई एक व्हिसलब्लोअर की ईमेल में जस्टिस शर्मा पर लाभकारी कॉमर्शियल और आर्बिट्रेशन मामलों को जानबूझकर पार्ट-हर्ड बताकर अपने पास रखने की तीव्र इच्छा दिखाने का आरोप लगाया गया। उस मेल के साथ कई ऐसे मामलों की सूची भी संलग्न थी, जिनमें एनटीपीसी, डीएलएफ, माइक्रोमैक्स, गेल और डीएमआरसी जैसी बड़ी कंपनियां पक्षकार थीं। आरोप है कि इन मामलों में फैसले अपेक्षित रूप से पूर्वानुमान योग्य दिशा में दिए गए।

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“डंपिंग ग्राउंड” की टिप्पणी और पूर्व उदाहरण

इन बार संस्थाओं ने यह भी आरोप लगाया कि पिछले वर्षों में रिटायरमेंट से पहले न्यायाधीशों को कलकत्ता हाईकोर्ट भेजने की एक नकारात्मक परंपरा बन गई है। उन्होंने जस्टिस राकेश तिवारी, वी.एम. वेलुमणि, राजीव शर्मा, एम.वी. मुरलीधरन और सूर्य प्रकाश केसरवानी के नामों का उल्लेख करते हुए कहा कि ऐसे ट्रांसफरों से पश्चिम बंगाल में न्यायिक प्रशासन को कोई लाभ नहीं हुआ, बल्कि हाईकोर्ट को एक “डंपिंग ग्राउंड” बना दिया गया।

संस्थाओं का कहना है कि भारत का सबसे पुराना संवैधानिक न्यायालय — कलकत्ता हाईकोर्ट — किसी संदेह के घेरे में आए न्यायाधीश को प्राप्त करने का पात्र नहीं है, विशेषकर तब जब वह केवल एक छोटा कार्यकाल देने वाले हों।

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पुनर्विचार की मांग

संयुक्त पत्र में लिखा गया है, “हम अत्यंत विनम्रता से आपके माननीय न्यायमूर्ति और कॉलेजियम से निवेदन करते हैं कि 27 मार्च 2025 की कॉलेजियम सिफारिश की समीक्षा कर, उसे वापस लिया जाए।”

एक वैकल्पिक सुझाव देते हुए, बार संस्थाओं ने यह भी आग्रह किया कि उन न्यायाधीशों को वापस कलकत्ता हाईकोर्ट में स्थानांतरित किया जाए जो मूलतः वहीं से हैं लेकिन वर्तमान में अन्यत्र सेवा दे रहे हैं — जिससे न्यायिक प्रशासन में वास्तविक सुधार हो सके।

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जस्टिस यशवंत वर्मा का ट्रांसफर भी विवादों में

वहीं दिल्ली हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट स्थानांतरित किए गए जस्टिस यशवंत वर्मा का ट्रांसफर भी विवादों में है। इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन और अवध बार एसोसिएशन ने इस ट्रांसफर का कड़ा विरोध किया है, क्योंकि हाल ही में उनके खिलाफ “कैश एट होम” विवाद से जुड़ी शिकायतें सामने आई थीं। केंद्र सरकार ने जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर की अधिसूचना जारी कर दी है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया है कि अगले आदेश तक जस्टिस वर्मा को कोई न्यायिक कार्य न सौंपा जाए।

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