कोलकाता हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक याचिका खारिज कर दी जिसमें एक अभ्यर्थी ने अपने पिता की 2010 में सेवा के दौरान मृत्यु के बाद अनुकम्पा के आधार पर नौकरी की मांग की थी। अदालत ने साफ कहा कि इतने लंबे अंतराल के बाद या बालिग होने पर इस तरह का दावा स्वीकार नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति अमृता सिन्हा ने याचिकाकर्ता सैयद शाहीनूर ज़मान की दलीलों को खारिज करते हुए दोहराया कि अनुकम्पा नियुक्ति का उद्देश्य परिवार को तत्काल आर्थिक संकट से उबारना है, न कि वर्षों बाद नियमित भर्ती की तरह नौकरी का अधिकार देना। उन्होंने कहा, “बहुलक होने पर मृतक के वारिस के लिए रिक्ति सुरक्षित रखने का कोई प्रावधान नहीं है।”
ज़मान के पिता मुरशीदाबाद ज़िले के एक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में सहायक प्रधानाध्यापक थे। सितंबर 2010 में 16 साल की सेवा के बाद उनकी मृत्यु हो गई। उस समय याचिकाकर्ता मात्र आठ वर्ष का था।
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि ज़मान की मां ने मृत्यु के बाद अनुकम्पा नियुक्ति के लिए प्रतिनिधित्व किया था, पर जिला विद्यालय निरीक्षक ने उसे विचार में नहीं लिया। बालिग होने के बाद ज़मान ने जून 2025 में स्वयं आवेदन किया, जो कथित रूप से लंबित है।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता यह साबित करने के लिए कोई दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं कर सका कि उसकी मां ने 2010 में कोई आवेदन दिया था।
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि अनुकम्पा नियुक्ति से जुड़ा कानून स्थापित है—जो व्यक्ति कर्मचारी की मृत्यु के समय आवेदन करने का अधिकार नहीं रखता, वह बालिग होने पर यह अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता। अदालत ने कहा कि यह योजना नियमित नियुक्ति का तरीका नहीं है बल्कि अचानक आए आर्थिक संकट से परिवार को राहत देने की व्यवस्था है।
मृत्यु के 15 साल बाद किए गए आवेदन को देखते हुए अदालत ने कहा कि प्राधिकारियों को याचिकाकर्ता के आवेदन पर विचार करने का कोई आधार नहीं है। न्यायमूर्ति सिन्हा ने कहा, “इतने विलंबित चरण में मृतक के वारिस पर दया दिखाने का कोई अवसर नहीं है,” और याचिका को खारिज कर दिया।




