कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुधवार को ओडिशा सरकार को निर्देश दिया कि वह दो बंगाली भाषी प्रवासी मजदूरों — सईनुर इस्लाम और रकीबुल इस्लाम — की कथित अवैध हिरासत को लेकर दाखिल हैबियस कॉर्पस याचिकाओं के जवाब में 20 अगस्त तक अपना हलफनामा दाखिल करे। अदालत ने यह निर्देश एक खंडपीठ के माध्यम से दिया जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति तपव्रत चक्रवर्ती कर रहे थे।
याचिकाकर्ताओं की ओर से दावा किया गया कि दोनों मजदूरों को ओडिशा में गैरकानूनी रूप से हिरासत में लिया गया और वे मुआवज़े के हकदार हैं। हालांकि ओडिशा सरकार ने अदालत में इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि यह हिरासत नहीं, बल्कि कानूनी दस्तावेज़ सत्यापन की प्रक्रिया थी जो विदेशी नागरिक अधिनियम के तहत अनुमत है।
ओडिशा के महाधिवक्ता पितांबर आचार्य, जिन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालत में पेश होकर दलीलें दीं, ने कहा, “यह गिरफ्तारी नहीं थी, बल्कि संदेहास्पद नागरिकता की स्थिति में कानून के तहत आवश्यक दस्तावेज़ जांच थी।” उन्होंने याचिका को “तुच्छ” बताते हुए कहा कि राज्य पहले ही अदालत में स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत कर चुका है।

इस पर याचिकाकर्ताओं को 27 अगस्त तक अपनी जवाबी दलील दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। मामला अब 29 अगस्त को दोबारा सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कल्याण बनर्जी ने दलील दी कि किसी भी व्यक्ति की नागरिकता पर राय बनाते समय तर्कसंगत प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए। उन्होंने दावा किया कि ओडिशा में कई बंगाली प्रवासी मजदूरों को इसी प्रकार से हिरासत में लिया गया है, जिससे यह एक राष्ट्रीय स्तर का मुद्दा बनता जा रहा है।
जब आचार्य ने कहा कि यह मामला न तो राज्यों के बीच का है और न ही नागरिकता की प्रतिस्पर्धा का, बल्कि राष्ट्रीय हित का है, तो बनर्जी ने पलटकर कहा, “हमें यह जानने का हक है कि अब तक कितने बंगाली प्रवासी मजदूरों को इस प्रक्रिया में हिरासत में लिया गया है।”
आचार्य ने जवाब में कहा, “बंगाली हमारे पड़ोसी, भाई-बहन हैं। अधिकांश ओडिया लोग बंगालियों को बहुत पसंद करते हैं। वर्तमान में ओडिशा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश भी बंगाली हैं।”
गौरतलब है कि अदालत ने पहले 10 जुलाई को ओडिशा सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा था कि क्या दोनों मजदूर हिरासत में थे या लापता, और यदि हिरासत में थे, तो किस आदेश के तहत और किस आधार पर।