कलकत्ता हाई कोर्ट ने केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार को निर्देश दिया है कि वे बांग्लादेश के कथित अवैध प्रवासियों की वापसी (डिपोर्टेशन) से जुड़ी कार्रवाई के बारे में शपथपत्र दाखिल करें। यह आदेश गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक मेमो के संदर्भ में दिया गया है।
न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति रीतोब्रोतो कुमार मित्रा की खंडपीठ ने यह आदेश एक हैबियस कॉर्पस याचिका की सुनवाई के दौरान दिया। याचिका में आरोप लगाया गया था कि पश्चिम बंगाल के बीरभूम ज़िले के कुछ निवासी, जो दिल्ली में मजदूरी कर अपना परिवार चलाते थे, उन्हें दिल्ली में हिरासत में लेने के बाद बांग्लादेश भेज दिया गया। अदालत ने कहा कि अब तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि हिरासत में लिए गए लोगों को कहाँ से “पुश बैक” किया गया और सरकार को यह जानकारी भी स्पष्ट करनी होगी।
भोदू शेख द्वारा दाखिल याचिका में कहा गया कि मुरारई (बीरभूम) की सोनाली और उसका पांच वर्षीय बेटा दिल्ली में हिरासत में लिए गए और फिर बांग्लादेश भेज दिए गए। एक अन्य याचिकाकर्ता, आमिर खान, ने दावा किया कि उसकी बहन स्वीटी बीबी और उसके दो बच्चों को भी इसी तरह पड़ोसी देश भेज दिया गया।

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वे पश्चिम बंगाल के स्थायी निवासी हैं और आजीविका के लिए दिल्ली गए थे। उनका आरोप है कि यह निर्वासन मनमाना है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अशोक कुमार चक्रवर्ती ने दलील दी कि चूँकि कथित हिरासत दिल्ली में हुई, इसलिए कलकत्ता हाईकोर्ट को इस मामले पर अधिकार क्षेत्र नहीं है। उन्होंने अदालत को बताया कि इस विषय पर दिल्ली उच्च न्यायालय में पहले से ही याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें निर्वासन आदेश को चुनौती भी दी गई है।
केंद्र ने यह भी कहा कि कलकत्ता हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट की कार्यवाही को छिपाया गया है।
पीठ ने कहा कि मामला “जीवन और स्वतंत्रता” से जुड़े गंभीर सवाल उठाता है। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि जब तक यह स्पष्ट नहीं होता कि निर्वासन वास्तव में कहाँ से हुआ, तब तक अधिकार क्षेत्र पर अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सकता।
अदालत ने यह भी नोट किया कि केंद्र ने अपने हलफ़नामे में कहा है कि दिल्ली का विदेशियों का क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (FRRO) गृह मंत्रालय के 2 मई 2025 के आदेश के तहत बांग्लादेशी नागरिकों की वापसी कर रहा है। इस आदेश में यह प्रावधान है कि किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में पाए गए बांग्लादेश/म्यांमार के अवैध प्रवासियों पर संबंधित राज्य सरकार जांच करेगी और उसके बाद ही निर्वासन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार को 19 सितंबर तक अपना शपथपत्र दाखिल करना होगा, जबकि याचिकाकर्ता 22 सितंबर तक जवाब दाखिल करेंगे। मामले की अगली सुनवाई 23 सितंबर को होगी।