सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में अनुबंधों के विशिष्ट निष्पादन से जुड़े मामलों में आचरण और वित्तीय तैयारियों के महत्व को दोहराते हुए एक खरीदार की संपत्ति बिक्री समझौते को लागू करने की याचिका खारिज कर दी। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने यह निर्णय सुनाते हुए हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसने पहले खरीदार के पक्ष में निर्णय दिया था, और ट्रायल कोर्ट के खारिजी फैसले को बहाल कर दिया।
यह मामला कोयंबटूर में एक संपत्ति की बिक्री के समझौते से जुड़ा है, जो 20 जनवरी 2005 को किया गया था। अपीलकर्ता आर. कंदासामी (मृतक) और अन्य विक्रेता थे, जबकि उत्तरदाताओं में टी.आर.के. सरस्वती (खरीदार) और ए.बी.टी. लिमिटेड (संपत्ति के बाद के खरीदार) शामिल थे।
मामले की पृष्ठभूमि
संपत्ति बिक्री समझौते में ₹2.3 करोड़ की कीमत तय की गई थी, जिसमें ₹10 लाख अग्रिम राशि के रूप में चुकाई गई। खरीदार को शेष राशि चार महीने के भीतर यानी 19 मई 2005 तक चुकानी थी। विक्रेताओं को संपत्ति को खाली कराने और फिर सौंपने की जिम्मेदारी दी गई थी।
समस्या तब शुरू हुई जब खरीदार ने निर्धारित समयसीमा से परे आंशिक भुगतान किया और नए दस्तावेज़ों की मांग उठाई, जैसे कि एन्कम्ब्रेंस सर्टिफिकेट और मूल शीर्षक दस्तावेज़, जो समझौते में शामिल नहीं थे।
23 फरवरी 2006 को विक्रेताओं ने समझौते को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि खरीदार ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरा नहीं किया। उन्होंने ₹25 लाख (अग्रिम और आंशिक भुगतान) वापस कर दिए। खरीदार ने इस रद्दीकरण को चुनौती दी और कोयंबटूर जिला अदालत में विशिष्ट निष्पादन के लिए मुकदमा दायर किया, जिसे खारिज कर दिया गया। हाई कोर्ट ने बाद में इस फैसले को पलट दिया, जिससे विक्रेताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
मुख्य कानूनी मुद्दे
- क्या समय समझौते का मूल तत्व था?
समझौते में स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि समय महत्वपूर्ण था, लेकिन विक्रेताओं द्वारा देरी से किए गए भुगतान को बिना आपत्ति के स्वीकार करने से संदेह उत्पन्न हुआ। - क्या खरीदार ने तत्परता और इच्छाशक्ति प्रदर्शित की?
विशिष्ट निष्पादन मुकदमों में यह एक महत्वपूर्ण कारक है। अदालत ने खरीदार की वित्तीय तैयारी और अनुबंध पूरा करने की इच्छाशक्ति की जांच की। - विवेकाधीन राहत:
क्या खरीदार के आचरण ने उसे विशिष्ट निष्पादन की राहत पाने के योग्य बनाया? - मुकदमे की स्थायित्व:
क्या रद्दीकरण को अमान्य घोषित करने की प्रार्थना का अभाव महत्वपूर्ण था?
अदालत के अवलोकन
- तत्परता और इच्छाशक्ति की कमी:
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि खरीदार ने अनुबंध पूरा करने की निरंतर तत्परता और इच्छाशक्ति नहीं दिखाई। अपनी गवाही में, खरीदार ने स्वीकार किया कि उसके बैंक खाते में शेष बिक्री राशि का भुगतान करने के लिए पर्याप्त धन नहीं था और उसने अस्पष्ट रूप से नकद उपलब्धता का दावा किया। - खरीदार का आचरण:
अदालत ने खरीदार की मांगों में असंगतियों और उसकी अनावश्यक देरी को रेखांकित किया। फरवरी 2006 में संपत्ति खाली होने की जानकारी होने के बावजूद, खरीदार ने सौदा पूरा करने में देरी की और समझौते में शामिल नहीं किए गए अतिरिक्त दस्तावेजों की मांग की। - विवेकाधीन राहत:
विशिष्ट निष्पादन एक समानता-आधारित उपाय है, स्वचालित अधिकार नहीं। अदालत ने कहा:
“खरीदार का आचरण, समग्र रूप से देखा जाए, तो विशिष्ट निष्पादन की विवेकाधीन राहत देने के लिए विश्वास उत्पन्न नहीं करता।” - मुकदमे की स्थायित्व:
खरीदार ने विक्रेताओं द्वारा समझौते के रद्दीकरण को चुनौती देने के लिए कोई प्रार्थना शामिल नहीं की। हालांकि, यह निर्णय का प्राथमिक आधार नहीं था, अदालत ने इसे महत्वपूर्ण बताया।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और ट्रायल कोर्ट के फैसले को बहाल कर दिया, जिसमें विशिष्ट निष्पादन के लिए दायर मुकदमे को खारिज कर दिया गया था।
अदालत ने यह स्पष्ट किया:
“खरीदार की वित्तीय तत्परता की विफलता और उसका असंगत आचरण उसे विशिष्ट निष्पादन की समानता आधारित राहत से वंचित करता है।”
हालांकि, अदालत ने निर्देश दिया कि विक्रेता ₹25 लाख (अग्रिम और आंशिक भुगतान) की राशि खरीदार को वापस करें, यदि वह पहले से वापस नहीं की गई हो।
अदालती प्रतिनिधित्व
- अपीलकर्ता (विक्रेता): वरिष्ठ अधिवक्ता श्री द्विवेदी।
- उत्तरदाता (खरीदार): वरिष्ठ अधिवक्ता श्री गुरु कृष्ण कुमार।
- बाद के खरीदार (ए.बी.टी. लिमिटेड): वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राणा मुखर्जी।