सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड में 10 साल की बच्ची के बलात्कार और हत्या के मामले में दोषी को दी गई मौत की सज़ा घटाकर आजीवन कारावास कर दी है। कोर्ट ने कहा कि किसी अपराध की क्रूरता मात्र के आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि मामला ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ की श्रेणी में आता है और मृत्यु दंड दिया जाना चाहिए।
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने 16 जुलाई 2025 को यह फैसला सुनाया। इस फैसले के जरिए उत्तराखंड हाईकोर्ट के 2020 के उस आदेश को आंशिक रूप से संशोधित किया गया, जिसमें निचली अदालत द्वारा दोषसिद्धि और मौत की सज़ा को बरकरार रखा गया था।
मामला क्या था
जुलाई 2018 में 10 साल की एक बच्ची अपने घर के पास दोस्तों और चचेरे भाइयों के साथ खेल रही थी, जब वह लापता हो गई। गवाहों के अनुसार, आरोपी ने बच्चों को 10-10 रुपये देने का लालच देकर अपनी झोपड़ी में बुलाया था। बाकी बच्चों को वह बाहर भेज देता है, लेकिन बच्ची को अंदर रोक लेता है। कई घंटों की तलाश के बाद, बच्ची का शव उसकी झोपड़ी में सीमेंट की खाली बोरियों के नीचे छिपा मिला।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पुष्टि हुई कि बच्ची की गला घोंटकर हत्या की गई थी और उससे पहले उसके साथ बलात्कार हुआ था। पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और जांच के दौरान डीएनए समेत अन्य साक्ष्य जुटाए।
ट्रायल और दोषसिद्धि
ट्रायल कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धाराओं 376(AB), 377, 302 और पॉक्सो एक्ट की धाराओं 5 और 6 के तहत दोषी ठहराया।
मुख्य साक्ष्य थे:
- आखिरी बार साथ देखा जाना (लास्ट सीन थ्योरी): नाबालिग गवाहों ने बताया कि बच्ची को आखिरी बार आरोपी के साथ देखा गया था।
- शव की बरामदगी: कई गवाहों ने पुष्टि की कि बच्ची का शव आरोपी की झोपड़ी से मिला।
- डीएनए साक्ष्य: फॉरेंसिक रिपोर्ट में आरोपी के डीएनए का मिलान अपराध स्थल से मिले सैंपल्स से हुआ।
ट्रायल कोर्ट ने अपराध की क्रूरता को देखते हुए इसे ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ मानते हुए मौत की सज़ा सुनाई थी।
हाईकोर्ट का फैसला
हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि और सज़ा दोनों को सही ठहराया, यह मानते हुए कि आरोपी की झोपड़ी में बच्ची की मौजूदगी, गवाहों के बयान और फॉरेंसिक साक्ष्य आरोपी के अपराध में लिप्त होने को साबित करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने दोषसिद्धि को सही माना, लेकिन मौत की सज़ा पर असहमति जताई।
कोर्ट ने कहा, “किसी अपराध की क्रूरता मात्र यह तय करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि मामला ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ श्रेणी में आता है।” कोर्ट ने गुड्डा बनाम मध्य प्रदेश राज्य और मनोज बनाम मध्य प्रदेश राज्य जैसे पूर्व निर्णयों का हवाला दिया, जिनमें सज़ा तय करते समय अभियोग और रियायतों (एग्रीवेटिंग व मिटीगेटिंग सर्कम्स्टांसेज) दोनों पर विचार करने और सुधार की संभावना की जांच करने की आवश्यकता बताई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश रिपोर्ट्स में आरोपी के दयनीय पारिवारिक हालात, आपराधिक पृष्ठभूमि न होने और जेल में अच्छे व्यवहार का उल्लेख किया गया था। मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन में भी किसी मानसिक बीमारी के लक्षण नहीं पाए गए।
अंतिम निर्णय
सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सज़ा को उम्रकैद (किसी भी तरह की रिहाई के अधिकार के बिना) में बदल दिया। अपील आंशिक रूप से स्वीकार की गई, जबकि दोषसिद्धि यथावत रही।