सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 482 के तहत किसी एफआईआर को रद्द करने के अंतिम आदेश को केवल इस आधार पर वापस नहीं लिया जा सकता कि समझौते की शर्तों का उल्लंघन हुआ है। न्यायालय ने यह भी कहा कि एक बार जब कोई निर्णय पारित और हस्ताक्षरित हो जाता है, तो उसे केवल लिपिकीय या गणनात्मक त्रुटियों को ठीक करने के लिए ही संशोधित किया जा सकता है, जैसा कि धारा 362 Cr.P.C. में प्रावधानित है।
यह निर्णय रघुनाथ शर्मा व अन्य बनाम राज्य हरियाणा व अन्य में दिया गया, जिसमें विशेष अनुमति याचिका (क्रिमिनल) संख्या 8101–8102/2019 और संबंधित मामलों में सुनवाई हुई। पीठ जिसमें न्यायमूर्ति पंकज मित्तल एवं न्यायमूर्ति संजय करोल शामिल थे, ने अपीलों को स्वीकार करते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उन आदेशों को रद्द कर दिया, जिनमें पहले रद्द की गई एफआईआर संख्या 432/2014 (धारा 406 व 420 आईपीसी के तहत) को पुनर्जीवित किया गया था।
प्रकरण की पृष्ठभूमि
विवाद की उत्पत्ति 2013 और 2014 में विभिन्न बिक्री समझौतों से हुई। बाद में 15 अप्रैल 2015 को एक नया समझौता किया गया, जिसमें ₹2.25 करोड़ की बिक्री राशि निर्धारित की गई। इसके आधार पर 14 जुलाई 2015 को एक समझौता-पत्र निष्पादित किया गया और इसी को आधार बनाकर 21 मार्च 2016 को हाईकोर्ट ने एफआईआर को धारा 482 Cr.P.C. के तहत रद्द कर दिया।

बाद में, शिकायतकर्ता कृष्ण कुमार गांधी ने समझौते की शर्तों के उल्लंघन का हवाला देते हुए एफआईआर को पुनर्जीवित करने का अनुरोध किया। हालांकि प्रारंभ में उनकी याचिका खारिज हुई, लेकिन अक्टूबर 2018 में हाईकोर्ट ने पूर्व आदेश को वापस लेते हुए एफआईआर की पुनर्बहाली का आदेश दे दिया, जिसे अप्रैल 2019 में समीक्षा याचिका में बरकरार रखा गया।
सुप्रीम कोर्ट में उठाया गया कानूनी प्रश्न
मूल प्रश्न यह था कि क्या हाईकोर्ट धारा 482 Cr.P.C. के तहत समझौते के उल्लंघन के आधार पर पहले से रद्द एफआईआर को पुनर्जीवित कर सकता है।
अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि धारा 362 Cr.P.C. के तहत ऐसा कोई संशोधन अनुमत नहीं है, और समझौते के उल्लंघन के लिए स्वतंत्र कानूनी उपाय उपलब्ध हैं, जिन्हें अपनाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
न्यायालय ने धारा 362 और 482 Cr.P.C. के तहत न्यायालय की सीमाओं का विस्तार से विश्लेषण किया और कहा कि एक बार अंतिम निर्णय हो जाने के बाद, न्यायालय functus officio (अपने अधिकार समाप्त कर चुका) हो जाता है। संकठा सिंह बनाम राज्य, यूपी, सुरज देवी बनाम प्यारे लाल, और राज्य बनाम मन सिंह जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए कोर्ट ने यह दोहराया कि धारा 362 के अंतर्गत समीक्षा पर “लगभग पूर्ण प्रतिबंध” है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया:
“एक पक्ष द्वारा समझौते की शर्तों का उल्लंघन करना, रद्दीकरण आदेश को वापस लेने का कोई विधिसम्मत आधार नहीं है।”
निष्कर्ष और निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अपीलों को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट के 8 अक्टूबर 2018 और 29 अप्रैल 2019 के आदेशों को रद्द कर दिया और 21 मार्च 2016 के उस आदेश को बहाल कर दिया, जिसमें एफआईआर को रद्द किया गया था।
कोर्ट ने अपने निर्णय को इस प्रकार सारांशित किया:
- “धारा 362 Cr.P.C. के अंतर्गत प्रतिबंध लगभग पूर्ण है।”
- “धारा 482 के अंतर्गत अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग, स्पष्ट रूप से निषिद्ध प्रावधानों को दरकिनार करने के लिए नहीं किया जा सकता।”
- “समझौते की शर्तों के उल्लंघन को आधार बनाकर पहले से रद्द एफआईआर को पुनर्जीवित करना अनुचित है।”
अंत में कोर्ट ने यह निर्णय सभी हाईकोर्ट में प्रसारित करने का निर्देश दिया ताकि इस विषय में न्यायिक स्पष्टता और विधिक अनुशासन सुनिश्चित किया जा सके।