वयस्कों के बीच 3 साल का संबंध सहमति दर्शाता है; बंबई हाईकोर्ट ने दूसरी जगह सगाई के बाद दर्ज रेप केस रद्द किया

बंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने रेप और अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत दर्ज एक एफआईआर (FIR) और चार्जशीट को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने माना कि दो वयस्कों के बीच लंबे समय तक चले शारीरिक संबंध सहमति पर आधारित थे और इसे “तथ्य की गलतफहमी” (misconception of fact) या शादी का झूठा वादा नहीं माना जा सकता।

जस्टिस उर्मिला जोशी-फाल्के और जस्टिस नंदेश एस. देशपांडे की खंडपीठ ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि कार्यवाही जारी रखना अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

मामले का संक्षिप्त विवरण

आवेदक (27 वर्ष) ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर 8 दिसंबर 2020 को अमरावती के नंदगांव पेठ पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। उन पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(n) (एक ही महिला के साथ बार-बार बलात्कार), 294 (अश्लील कार्य), 506(2) (आपराधिक धमकी) और एट्रोसिटी एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे।

शिकायतकर्ता (35 वर्ष) के अनुसार, वह और आवेदक 4 अगस्त 2017 को संपर्क में आए और उनके बीच प्रेम संबंध बन गए। यह रिश्ता नवंबर 2020 तक चला, जिस दौरान उन्होंने “कई बार स्वेच्छा से शारीरिक संबंध बनाए।”

शिकायतकर्ता का आरोप था कि आवेदक ने “शादी का झूठा झांसा देकर शारीरिक संबंध बनाए रखा।” विवाद तब हुआ जब शिकायतकर्ता को पता चला कि आवेदक की सगाई किसी और महिला से हो गई है। उन्होंने सगाई तोड़ने की मांग की और जब ऐसा नहीं हुआ, तो उन्होंने एफआईआर दर्ज करा दी।

READ ALSO  YouTuber एल्विश यादव को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेजा गया, कड़े कानून के तहत 10 साल तक की जेल का सामना करना पड़ सकता है

वकीलों की दलीलें

आवेदक की ओर से पेश हुए अधिवक्ता एस.एस. शिंगणे ने तर्क दिया कि दोनों पक्ष वयस्क हैं। शिकायतकर्ता की उम्र 35 वर्ष है और आवेदक भी बालिग है। उन्होंने कहा कि दोनों के बीच संबंध “अपनी मर्जी और सहमति से” बनाए गए थे। उन्होंने दलील दी कि अगर एफआईआर में लगाए गए आरोपों को सच भी मान लिया जाए, तो भी आवेदक के खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता।

दूसरी ओर, राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक एन.बी. जावड़े ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि सहमति के पहलू का अनुमान इस स्तर पर नहीं लगाया जा सकता और आवेदक को मुकदमे (Trial) का सामना करना चाहिए।

शिकायतकर्ता की नियुक्त अधिवक्ता दीपाली सहारे ने अभियोजन पक्ष का समर्थन करते हुए कहा कि आवेदक ने “शादी के झूठे बहाने के तहत जबरदस्ती संबंध बनाने के लिए मजबूर किया।”

हाईकोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणी

केस डायरी और चार्जशीट का अवलोकन करने के बाद, पीठ ने दोनों पक्षों की उम्र (30 और 27 वर्ष) पर गौर किया।

READ ALSO  रेप पीड़िता का नाम उजागर करने पर निचली अदालत के जज के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी

कोर्ट ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा:

“इसलिए पक्षकार किसी भी रिश्ते को बनाने और जारी रखने के परिणामों को समझने के लिए पर्याप्त समझदार हैं।”

सहमति की प्रकृति पर विचार करते हुए, कोर्ट ने कहा:

“पक्षकारों की उम्र और रिश्ते की अवधि (जो तीन साल से अधिक समय तक चली) को देखते हुए, यह सुरक्षित रूप से अनुमान लगाया जा सकता है कि पक्षकारों ने अपनी सहमति और स्वतंत्र इच्छा से यौन संबंध बनाए थे, न कि शादी के किसी वादे के कारण।”

पीठ ने यह भी नोट किया कि एफआईआर तभी दर्ज की गई जब आवेदक की सगाई किसी और महिला से हो गई। रिकॉर्ड पर ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला जिससे यह साबित हो सके कि आवेदक का “शुरुआत से ही शादी करने का इरादा नहीं था।”

“वादे का उल्लंघन” (Breach of Promise) और “झूठे वादे” (False Promise) के बीच के कानूनी अंतर को स्पष्ट करने के लिए, हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के प्रमोद सूर्यभान पवार बनाम महाराष्ट्र राज्य (2019) के फैसले का हवाला दिया।

हाईकोर्ट ने कहा:

“इसलिए, अदालत का यह कर्तव्य है कि वह जांच करे कि क्या झूठा वादा केवल शुरुआत में किया गया था या नहीं।”

READ ALSO  महिला के मासिक धर्म की स्थिति के आधार पर उनके बहिष्कार पर हो प्रतिबंध: हाई कोर्ट

मौजूदा तथ्यों पर इसे लागू करते हुए, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला:

“इस मामले के तथ्यों को देखते हुए… हमारी सुविचारित राय है कि यह दो वयस्कों के बीच चार साल से अधिक समय तक चलने वाला रिश्ता था, और इसलिए यह सहमतिपूर्ण प्रकृति का था। शिकायतकर्ता की सहमति किसी गलतफहमी या शादी के झूठे वादे के तहत प्राप्त नहीं की गई थी।”

फैसला

सुप्रीम कोर्ट के हरियाणा राज्य और अन्य बनाम भजनलाल और अन्य (1992) के मामले में निर्धारित मापदंडों का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि कार्यवाही को आगे जारी रखना “न्याय की विफलता” (miscarriage of justice) होगी।

परिणामस्वरूप, हाईकोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किए:

  1. नंदगांव पेठ पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर (अपराध संख्या 0324/2020) को रद्द कर दिया गया।
  2. अमरावती के विशेष सत्र न्यायाधीश के समक्ष लंबित चार्जशीट (संख्या 107/2020) को भी रद्द कर दिया गया।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles